तंत्र: यह शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है- तं और त्र। तं का अर्थ है तन अर्थात शरीर और त्र का त्राण अर्थात् रक्षा करना। अतः इसका अर्थ हुआ वह प्रक्रिया या क्रिया जिसके द्वारा शरीर की रक्षा की जा सके। तंत्र के विभिन्न रूप हैं। जो अपने अंदर षट्कर्मों को समेटे हुए है।
वे षट्कर्म इस प्रकार हैं:
Û मारण
Û मोहन .
Û वशीकरण
Û स्तंभन
Û उच्चाटन
Û विद्वेषण
ये षट्कर्म ही तंत्र के अंग हैं। तांत्रिक क्रियाओं में आने वाले इन षट्कर्मों का उपयोग मानव जीवन के कल्याणार्थ होना चाहिए। तंत्र परम तत्व से साक्षात्कार कराता है। इसके द्वारा सभी कामनाओं एवं इच्छाओं को पूर्ण किया जा सकता है। तंत्र एक रहस्य है जिसे जिसने जितना समझा उतना ही उसने स्वयं को पहचाना। तंत्र किसी भी निराश व्यक्ति के जीवन में विश्वास का सूत्रपात करता है। इससे प्राप्त फलों से व्यक्ति के अंदर ऊर्जा का संचार होता है। इसके प्रयोग से स्थूल से सूक्ष्म एवं सूक्ष्म से स्थूल का रहस्य ज्ञात होता है। तंत्र के द्वारा उस अभिजित शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है, जिसे आधुनिक विज्ञान कभी प्राप्त नहीं कर सकता है। तंत्र के द्वारा व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। तंत्र के द्वारा असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। इसका सही प्रयोग कर भाग्य को अनुकूल बनाया जा सकता है। यह मृत्यु के बाद के रहस्यों को भी उद्घाटित कर प्रस्तुत कर सकता है। इस पृथ्वी पर जो कल था वह आज नहीं है और जो आज है वह कल नहीं रहेगा, लेकिन तंत्र कल भी था, आज भी है, और कल भी रहेगा। उपर्युक्त तथ्यों से एक बात तो निश्चित हो गई है कि तंत्र साधना से मानव पुरुष से पुरुषोत्तम बन सकता है।
परंतु इसके लिए उसे कठोर तप और साधना करनी होगी। उसे अपने शरीर के साथ मन को, सभी इंद्रियों सहित, अपने वश में करके तपाते हुए साधना में लीन करना होगा एवं आदर्श साधक बनना होगा। ऐसा करने पर सफलता निश्चित है। कुछ तांत्रिक प्रयोग अत्यंत कठिन एवं कुछ अत्यंत सरल होते हैं। तांत्रिक प्रयोग सदैव अच्छे एवं विद्वान गुरु की देख रेख में ही करना चाहिए, अन्यथा इसका प्रतिकूल असर भी हो सकता है। प्रतिदिन सभी क्रियाएं नहीं की जातीं। पाठकों के लाभार्थ यहां एक सारणी प्रस्तुत है, जिसकी सहायता से यह आसानी से ज्ञात किया जा सकता है कि किस दिन कौन सा प्रयोग करना चाहिए। दिन तंत्र प्रयोग रविवार मारण सोमवार शांति मंगलवार विद्वेषण बुधवार उच्चाटन गुरुवार पौष्टिक शुक्रवार लक्ष्मी सिद्धि शनिवार वशीकरण इसके अतिरिक्त कुछ और नियम भी हैं। जैसे, क्रूर दिनों में क्रूर कार्य किए जाते हैं तथा शुभ दिनों में शुभ। शनिवार, मंगलवार, रविवार क्रूर दिन हैं और बुधवार, गुरुवार, सोमवार सौम्य। सौम्य दिनों में शुभ कार्य विशेष प्रभावी होते हैं। बुधवार एवं शुक्रवार को वशीकरण प्रयोग सर्वदा लाभकारी होता है। इन दिनों के साथ यदि तिथियों का भी ध्यान रखा जाए, तो फल और भी शुभ हो जाते हैं। पाठकों के लाभार्थ किस तिथि को कौन सी क्रिया करनी चाहिए इसका उल्लेख यहां प्रस्तुत है।
Û प्रथमा (एक्कम/पड़वा)- स्तंभन।
Û द्वितीया (दूज)- उच्चाटन।
Û तृतीया (तीज)- आकर्षण।
Û चतुर्थी (चैथ) - स्तंभन
Û पंचमी-मारण
Û षष्ठी (छठ)- उच्चाटन
Û सप्तमी- वशीकरण।
Û अष्टमी- मोहनार्थ ।
Û नवमी- मोहन
Û दशमी-इस दिन गुरुवार एवं पुष्य नक्षत्र हो तो कोई भी एक।
Û एकादशी- मारण
Û द्वादशी - मारण
Û त्रयोदशी- आकर्षण
Û चतुर्दशी (चैदश)- स्तंभन।
Û पूर्णिमा (पूर्णमासी)- मारण।
अमावस्या (अमावस) यह तो थी तिथियों के अनुसार क्रियाओं की रूप रेखा। इसके साथ एक और विशेष बात को ध्यान में रखना आवश्यक है और वह है ऋतु। ऋतु ही प्रकृति है। तो आइये देखें तालिका में कि किस ऋतु में किस क्रिया का निष्पादन किया जाए। हमारा तंत्र शास्त्र ऋतुओं के अनुसार कर्म के बल को स्वीकार करता है। परंतु ऋतु के आने तक यह प्रतीक्षा नहीं करता, बल्कि कहता है कि प्रतिदिन विशेष समय पर वर्ष भर की ऋतुओं का आगमन होता है। जैसे ग्रहण काल, दीपावली की रात्रि आदि। हमारे ऋषि महात्माओं ने कुछ अत्यंत छोटे एवं कारगर प्रयोग लोक लाभार्थ प्रस्तुत किए हैं जिनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं।
जन्म पर्यंत शुभता हेतु प्रयोग: जब आप चारों तरफ से निराश हो जाएं, हर तरफ अंघेरा ही अंघेरा दिखाई दे, मस्तिष्क कार्य करना बंद कर दे, घैर्य भी साथ छोड़ने लगे, तो निम्नलिखित प्रयोग करें। लाल गुड़हल के फूलों की माला बनाकर नीचे लिखे मंत्र से सौ बार अभिमंत्रित कर लें और देवी को चढ़ा दें। मंत्र: ¬ ख्रीं ढªीं छ्रीं ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं।’’ इस प्रयोग से दिन प्रतिदिन आपका मस्तिष्क शांत होता जाएगा। धन आने के स्रोत अपने आप बनते हुए प्रतीत होंगे। यह प्रयोग आपको जन्मपर्यंत शुभता देगा। करें और लाभ उठाएं।
आकर्षण हेतु: यदि कोई व्यक्ति आपका अहित चाह रहा हो, अकारण ही आपको तंग कर रहा हो, या आपका कार्य किसी के पास फंसा हुआ हो, तो ‘‘त्रीं त्रीं त्रीं’’ का जप करते हुए उसके पास तक जाएं, वह मना नहीं करेगा। यदि किसी को वशीभूत करना हो, तो इसका जप करते हुए उस व्यक्ति के सम्मुख प्रस्तुत हों, असर सामने होगा।
रुद्राक्ष द्वारा विशेष तांत्रिक प्रयोगः रुद्राक्ष को लगभग सभी लोग जानते हैं। रुद्राक्ष का तंत्र में विशेष महत्व है। यह सर्वसुलभ फल है। यहां रुद्राक्ष के कुछ विशेष तांत्रिक प्रयोग प्रस्तुत हैं। रुद्राक्ष को चंदन की भांति घिसकर माथे पर टीका लगाने से शिव का, वरदान शीघ्रता से प्राप्त किया जा सकता है। जिस किसी व्यक्ति को ऊपरी शिकायत हो, रुद्राक्ष को घिसकर उसके शरीर पर लेप लगाया जाए, शिकायत फौरन दूर हो जाएगी। इसी प्रकार और भी बहुत से प्रयोग हैं जो अति सरल हैं। विश्वास के साथ किए जाएं, तो फल सामने आता है।
स्तंभन प्रयोग: सूअर के दांत से प्रबल स्तंभन का तांत्रिक प्रयोग होता है। जो व्यक्ति सूअर के दांत को कंठ में धारण करता है, वह सर्वत्र विजयी होता है। उसे भूत प्रेतादि का कोई भय नहीं रहता। उसे कभी स्वप्नदोष भी नहीं होता। इस प्रकार तंत्र प्रयोग अति सरल एवं सुलभ भी होते हैं। तंत्र के प्रयोगों के द्वारा इन्सान मानव से देव की श्रेणी में आ सकता है। बशर्ते तंत्र साधना के पीछे उद्देश्य गलत नहीं हो। क्योंकि गलत भावना से किया गया तांत्रिक प्रयोग हानि पहुंचाता है, लाभ नहीं। ऐसे में तंत्र एवं तांत्रिक दोनों की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।