कैसा हो बच्चे का नाम
कैसा हो बच्चे का नाम

कैसा हो बच्चे का नाम  

गोपाल राजू
व्यूस : 5092 | मई 2006

सोलह संस्कारों में नामकरण संस्कार का अपना एक विशेष महत्व है, किसी भी पदार्थ, स्थान या व्यक्ति के गुण अथवा अवगुण आदि के निर्णय में उसका नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। धार्मिक तथा सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथों के चरित्र नायकों, खलनायकों तथा अन्यान्य पात्रों के नाम देखकर अचंभा होता है कि कैसे इनके चरित्रानुरूप नाम पूर्व में ही रख दिए गए थे। दुर्योधन के नाम से अकस्मात एक ऐसे योद्धा की छवि उतरकर सामने आ जाती है जो अन्यायपूर्ण युद्ध में विश्वास रखता हो। भीम नाम से भीमकाय तथा महाबली योद्धा का रूप सामने आ जाता है, अर्जुन नाम से ऐसे व्यक्ति का बोध होता है जो कठिन से कठिन परिस्थिति में भी स्थिर चित्त रहे। दुस्शासन नाम सुनते ही मन ग्लानि तथा धिक्कार से भर उठता है।

जहां राम, कृष्ण, शिव, सीता, ईसा, गुरु नानक आदि मर्यादा के आदर्शपालक होने के कारण स्वतः प्रत्येक प्राणी के मन में रमण करने लगते हैं वहीं रावण, कंस, भस्मासुर, मंथरा, कैकेयी आदि नाम सुनते ही मन विषाक्त हो उठता है। तात्पर्य यह है कि आर्य जाति में पूर्व में नामकरण से पहले गुण-अवगुण तथा चरित्र का खूब अच्छी तरह से विचार कर लिया जाता था। यथा नाम चारित्रिक गुण भी व्यक्ति में वैसे ही भर जाते थे। यदि किसी अल्प बुद्धि बालक को धूर्त कहीं का, पागल, भैंसे, गुड़गोबर सिंह, काहिल, सूअर, पाजी आदि नाम उपनामों से निरंतर संबोधित किया जाता है, तो कुछ समय बाद वह यथा नाम वैसे ही व्यवहार करने लगता है। अर्थात वैसा ही बन जाता है।

कायरता, वीरता, प्रेम रस, भक्ति रस आदि का प्रतीक किसी प्राचीन चरित्र का नाम यदि नियमित रूप से किसी के लिए प्रयोग किया जाता है तो उस चरित्र की छवि नाम के साथ हृदय में उतरने लगती है। व्यक्ति के भविष्य निर्माण में नाम एक प्रमुख भूमिका निभाता है। नाम की सार्थकता के साथ-साथ उसमें ध्वनि सौकर्य का भी ध्यान रखना चाहिए। कोई नाम भले ही सुंदर से सुंदर अर्थ वाला हो, यदि उसके उच्चारण में क्लिष्टता के कारण कठिनाई आती हो तो वह नाम लोकप्रिय नहीं हो पाता। सैकड़ों फिल्मी चरित्रों के बदले हुए नाम इस बात की स्वतः पुष्टि कर देंगे यथा दिलीप कुमार, प्रदीप कुमार, किशोर कुमार, निम्मी, मधुबाला, मीना कुमारी, लता, माधुरी, नौशाद आदि। शास्त्रकारों ने इसीलिए नाम चयन के लिए कुछ वैज्ञानिक तथा विवेचनात्मक नियम सुनिश्चित किए हैं। इन सबका वर्णन सर्वथा ध्वनि विज्ञान तथा मनोविज्ञान के आधार पर किया गया है।

सुझाव दिया गया है कि दो, तीन अथवा चार अक्षर वाले एसे नाम रखे जाएं जिनके अंत में घोष- ग घ, ज झ, ड ढ, द ध न, ब भ म, य र ल व ह में से कोई अक्षर होना चाहिए। मध्य में अंतस्थ य र ल व में से कोई तथा अंत में दीर्घ स्वर संयुक्त, कृदंत नाम रखें तद्धित नहीं। स्त्रियों के नाम विषम अक्षर के अकारांत होने चाहिए जिससे पुरुषों की तुलना में उनसे अधिक कोमलता ध्वनित हो। कृदन्त का अर्थ है धातुओं से विकार लगाकर बने हुए शब्द जैसे राम, चंद्र, प्रकाश, आनंद आदि शब्द रम, चदि, कासृ, नदि आदि धातुओं से विकृत होकर बने हैं। इसलिए नाम ऐसे हों जिनके अंत में उपर्युक्त शब्द आएं। तद्धित का अर्थ है संज्ञावाचक शब्दों से विकृत होकर बने शब्द यथा पांडव, वासुदेव, भगवान दयालु, कृपालु आदि। ये पांडु, वसु, भग, दया, कृपा आदि शब्दों से तद्धित प्रत्यय लगाकर बने शब्द हैं। तद्धित नाम क्लिष्ट होने के कारण ही त्याज्य माने गए हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.