भारत में हिन्दू पर्व निर्णय अक्सर विवादास्पद स्थिति में आ जाते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि हमारे धर्मग्रंथों में पर्व निर्णय सूत्रों में भ्रांति है, बल्कि गणना की जटिलता एवं भारत की सीमाओं के विस्तार के कारण ऐसा हो जाता है। भारत के पूर्व में एक तिथि होती है तो पश्चिम में दूसरी तिथि रहती है, जो पर्व निर्णय में विविधता का कारण बनती है। ऐसा ही कुछ इस वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर हुआ। नीचे प्रस्तुत है, इसका कारण एवं विवेचन। साथ ही होलिका दहन मुहूर्त का भी विवरण दिया गया है।
पर्व एवं मुहूर्त निर्णय से पूर्व कुछ मुख्य परिभाषाओं को समझना आवश्यक है जो कि निम्नलिखित हैं:
मुहूर्त काल: दिन और रात्रि में पृथक्-पृथक् 15-15 मुहूर्त होते हैं। अपने स्थान के दिनमान और रात्रिमान के घंटे मिनट को अलग-अलग 15 से भाग देने पर क्रमशः दिन और रात्रि के एक-एक मुहूर्त का मान होता है।
प्रदोष काल: सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त का समय प्रदोष काल कहलाता है।
निशीथ काल: रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है।
महाशिवरात्रि निर्णय
पौराणिक तथ्यानुसार शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की लिंग रूप में उत्पत्ति हुई थी। प्रमाणांतर से इसी दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ है। अतः सनातन धर्मावलंबियों द्वारा यह व्रत एवं उत्सव दोनों में अति महत्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है परंतु इसके निर्णय के प्रसंग मंे कुछ आचार्य प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी को तो कुछ निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी में महाशिवरात्रि मानते हैं परंतु निर्णय सिंधु व अधिकतर विद्वान निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के ही मतावलम्बी हैं।
कुछ आचार्यों जिन्होंने प्रदोष काल व्यापिनी को स्वीकार किया है वहां उन्होंने प्रदोष का अर्थ अत्र प्रदोषो रात्रिः कहते हुए रात्रिकाल को ही माना है। ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि -
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदि देवो महा निशि । शिवलिंग तथोद्यूतः कोटि सूर्य सम प्रभः ।। तत्काल व्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रि व्रते तिथि ।।
अर्थात् फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की मध्य रात्रि में आदि देव भगवान शिवलिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्भूत हुए। अतः अर्द्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही शिवरात्रि व्रत में ग्राह्य है। यदि चतुर्दशी दो दिन निशीथ व्यापिनी होती है तो, या दोनों दिन निशीथ व्यापिनी नहीं होती है तो भी पर्व दूसरे दिन मनाया जाता है। लेकिन चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथ के एक देश को और पहले दिन संपूर्ण भाग को व्याप्त करे तो पर्व पहले दिन मनाया जाता है।
धर्मशास्त्रीय उक्त वचनों के अनुसार इस वर्ष दिनांक 13.2.2018 को चतुर्दशी का आरंभ रात्रि 10ः35 पर हो रहा है तथा इसकी समाप्ति अगले दिन 14.2.2018 को रात्रि 12ः47 पर हो रही है। अतः चतुर्दशी 13 फरवरी को निशीथकाल एवं 14 फरवरी को प्रदोषकाल में व्याप्त हो रही है। ऐसी स्थिति में निशीस्थ के द्वारा ही इस वर्ष शिवरात्रि का निर्णय किया जायेगा। निशीथ का अर्थ सामान्यतया लोग अर्द्धरात्रि कहते हुए 12 बजे रात्रि से लेते हैं किंतु निशीथ काल निर्णय हेतु भी दो मत मिलते हैं। माधव ने कहा है कि रात्रिकालीन चार प्रहरों में द्वितीय प्रहर की अन्त्य घटी एवं तृतीय प्रहर की आदि की एक घटी को मिलाकर दो घटी निशीथ काल होती है। धर्मसिन्धु के अनुसार रात्रिकालिक 15 मुहूर्तों में 8वां मुहूर्त निशीथकाल होता है।
इस वर्ष दिल्ली में 13 फरवरी को निशीथकाल 24 घं. 09 मि. 16 से. से 25 घं. 00 मि. 44 से. तथा 14 फरवरी को 24 घं. 09 मि. 20 से. से 25 घं. 00 मि. 40 से. तक रहेगा। 14 फरवरी को (रात्रि 24 घं. 09 मि. 20 से. से 25 घं. 00 मि. 40 से.) पूर्ण निशीथ काल के पूर्व 24 घं. 47 मि. पर चतुर्दशी समाप्त हो रही है। अतः 14 फरवरी को पूर्ण निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी नहीं मानी जा सकती है।
अतः स्पष्ट रूप से धर्मशास्त्रीय वचनानुसार दिल्ली में दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि व्रतोत्सव मनाया जाना चाहिए।
इस वर्ष महाशिवरात्रि के साधन में मुख्य रोचक बात यह है कि लखनऊ व उससे पूर्व में चतुर्दशी निशीथकाल में 14 फरवरी को भी पूर्ण रूप से व्याप्त है। चतुर्दशी दो दिन निशीथकाल में पूर्ण रूप व्याप्त होने के कारण धर्मसिन्धु के अनुसार शिवरात्रि दूसरे दिन ही मनाई जानी चाहिए। अतः भारत के पूर्व स्थित प्रदेशों में इसका 14 फरवरी को मनाना ही शास्त्रसम्मत है। यही कारण भी है कि भारत में इस महापर्व को लेकर इतनी चर्चा हुई है।
महाशिवरात्रि एक महापर्व है। मीडिया व समाचार पत्रों में यह मतांतर रहा कि इस वर्ष शिवरात्रि 13 को मनायी जाये या 14 को मनायी जाये या भारत के पूर्वी भाग में 14 को मनायी जानी चाहिये और पश्चिमी भारत में 13 को मनायी जानी चाहिये। परंतु अनेक विद्वानों का मत है कि महापर्वों की गणना किसी एक स्थान को केंद्र मानकर की जानी चाहिए क्योंकि महापर्व किसी न किसी स्थान से संबंधित होते हैं। महाशिवरात्रि के लिए काशी केंद्रबिंदु उचित है और यदि हम काशी को केंद्र मानकर गणना करते हैं तो यह लखनऊ से पूर्व दिशा में होने के कारण 14 फरवरी ही उचित तिथि थी।
होलिका दहन पर्व एवं मुहूर्त निर्णय
प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा हो तो होलिका दहन दूसरे दिन ही किया जाता है और यदि दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा न हो तो पहले ही दिन होलिका दहन किया जाता है।
लेकिन यदि पूर्णिमा पहले दिन प्रदोष व्यापिनी हो और दूसरे दिन साढ़े तीन प्रहर से अधिक हो, साथ ही प्रतिपदा की अवधि पूर्णिमा की अवधि से अधिक हो तो होलिका दहन दूसरे दिन किया जाता है। ध्यान रहे कि एक दिन में 8 प्रहर होते हैं और एक प्रहर का समय 3 घंटे होता है।
भारत में पूर्णिमा तिथि काल 1 मार्च 2018 प्रातः 8:58 से अगले दिन प्रातः 6:21 बजे तक है। इस आधार पर होलिका दहन दिनांक 1 मार्च 2018 को निश्चित है। इसमें कोई संशय की स्थिति नहीं है।
होलिका दहन मुहूर्त सूत्र एवं निर्णय
- होलिका दहन प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा की भद्रारहित तिथि को किया जाता है।
- यदि प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा तिथि, भद्रा व्यापिनी हो और मध्य रात्रि से पूर्व समाप्त हो जाये तो होलिका दहन भद्रा काल के बाद प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा में किया जाता है।
- यदि प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा तिथि, भद्रा व्यापिनी हो और मध्य रात्रि के बाद तक लागू हो तो होलिका दहन भद्रा काल मंे भद्रा के पूंछ काल के समय किया जाना चाहिए।
- किसी भी अवस्था में होलिका दहन भद्रा के मुखकाल में नहीं किया जाना चाहिए।
- यदि प्रदोष और मध्यरात्रि के बीच कोई भी भद्रा पूंछ का समय न हो तो प्रदोष काल में दहन किया जा सकता है।
- यदि फाल्गुन पूर्णिमा तिथि के समय न तो प्रदोष काल हो और न ही भद्रा पूंछ का समय हो तो प्रदोष काल के बाद होलिका दहन किया जा सकता है।
- बिना शुभ समय के किसी भी काल में किया गया होलिका दहन लाभ नहीं देगा परंतु अशुभ समय में किया गया होलिका दहन राष्ट्र, नगर और प्रदेश के लिए अशुभफलदायक हो जाता है।
भद्राकाल 1 मार्च को 8:58 से 19:37 तक है अतः होलिका दहन का समय, भद्रा काल के पश्चात से प्रदोषकाल की समाप्ति तक होगा। भारत के मुख्य शहरों के 1 मार्च 2018 को सूर्यास्त एवं सूर्योदय काल के आधार पर होलिका दहन मुहूर्त निश्चित किया गया है।
होलिका दहन मुहूर्त सारणी
दल्ली |
18.21 |
6.46 |
12.25 |
18.212.29 = 20.50 |
19.37.20.50 |
मुंबई |
18.44 |
6.58 |
12.14 |
18.442.27 = 21.11 |
19.37.21.11 |
कलकत्ता |
17.40 |
5.58 |
12.18 |
17.402.28 = 20.08 |
19.37.20.08 |
चेन्नई |
18.17 |
6.25 |
12.08 |
18.172.26 = 20.43 |
19.37.20.43 |
बेंगलोर |
18.28 |
6.35 |
12.07 |
18.282.25 = 20.53 |
19.37.20.53 |
हैदराबाद |
18.22 |
6.34 |
12.12 |
18.222.26 = 20.48 |
19.37.20.48 |
अहमदाबाद |
18.42 |
7.01 |
12.19 |
18.422.28 = 21.10 |
19.37.21.10 |
उज्जैन |
18.30 |
6.48 |
12.18 |
18.302.28 = 20.58 |
19.37.20.58 |
जयपुर |
18.27 |
6.50 |
12.23 |
18.272.29 = 20.56 |
19.37.20.56 |
कानपुर |
17.53 |
6.09 |
12.16 |
17.532.27 = 20.20 |
19.37.20.20 |