सृष्टि में सदियों से सैकड़ों तरह की सिद्धियां हैं-तंत्र - मंत्र, जादू-टोना, सम्मोहन, वशीकरण, तारण, मारण, स्तंभन आदि। इन सिद्धियों का अपना विशेष महत्व है। एक प्रश्न हर जिज्ञासु मन को विचलित करता है कि इनके मापदंड क्या हैं। किसी भी सिद्धि की जड़ में जाने का मतलब है गहरे समुद्र में गोता लगाना। ऐसी ही एक सिद्धि है तांत्रिक जड़ी-बूटी जिस पर दुर्भाग्य से ज्यादा शोध नहीं हुआ है। यद्यपि भारत के प्राचीन सिद्ध साधकों ने इनके प्रभाव को महत्वपूर्ण बताया। इस प्रक्रिया से वनस्पति इतनी जीवंत व प्रभावी हो सकती है कि सारा जीवन ही बदल दे। किसी विशेषज्ञ की मदद से कोई भी व्यक्ति तांत्रिक जड़ी-बूटी का सहारा लेकर असंभव कार्य संभव कर सकता है।
सम्मोहन व वशीकरण से यश, कीर्ति, शत्रु - शमन, धन-वैभव की प्राप्ति, रोग निवारण, कर्जमुक्ति, राजनीति में उच्च पद आदि की मनोकामना पूरी कर सकता है। जिन वनस्पतियों को हम हीन दृष्टि से देखते हैं वे कितनी फलदायी व उपयोगी हैं, इसका विवरण उनसे संबंधित प्राचीन ग्रंथों में देखा जा सकता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में वनस्पति को तीन वर्गों में बांटा गया है - देवगण, मानवगण व राक्षसगण। जिस वनस्पति को जिस गण में शामिल किया गया है उसमें उस गण के गुण होते हैं। वैदिक, दैहिक व भौतिक क्रियाएं हमारे संपूर्ण जीवन चक्र का आधार हैं। विभिन्न वनस्पतियों में प्राणियों निरोग रखने की अपार क्षमता होती है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने उनकी इन्हीं क्षमताओं को पहचानकर जीवन चक्र में आने वाली कमियों व समस्याओं के निराकरण खोजे। ये जड़ी बूटियां हमारी मित्र हैं, हमारे जीवन को सुखमय बनाती हैं और हमारे शत्रुओं का शमन करने में हमारी सहायता करती हैं। किंतु, इनका उपयोग शास्त्रोक्त विधि विधान के अनुसार किसी विशेषज्ञ से परामर्श लेकर करना चाहिए। इन जड़ी बूटियों में गुलतुरा (दिव्यता प्रदानकर्ता ), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), शंखपुष्पी (अलक्ष्मी व भूत-प्रेत निवारक), काली हल्दी (तांत्रिक क्रिया हेतु अचूक), विष्णुकांता (मूठ क्रिया व शत्रुनाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), हाथहोड़ी (वशीकरण), गुग्गुल (चामुंडा सिद्धि हेतु), अगस्त (पितृ दोष नाशक), अपामार्ग (बाजीकरम), बांदा (चुंबकीय शक्तिदाता), श्वेत व काली गुंजा (भूत-प्रेत व पिशाच बाधा नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिखा (दुष्टात्मा नाशक), एकाक्षी नारियल आदि प्रमुख हैं।
वृक्षों में छुपा परिमल बदल सकता है जीवन हमारे ऋषि मुनियों ने रंगों, दिशाओं, राशियों, वनस्पतियों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि का गहराई से अध्ययन किया। जन साधारण के हितार्थ पूजन की कई विधियां विकसित कीं। उन्हें मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक विकासों में आ रही बाधाओं को दूर करने में महारत हासिल थी। हमारी लापरवाही या यों कहें कि हमारे दुर्भाग्य से उनकी खोजें लुप्त होने की कगार पर हैं। आयुर्वेद एक उत्कृष्ट विज्ञान है जिसे जन कल्याणार्थ सही दिशा में पुनः स्थापित करने की जरूरत है।
हम अपनी अनमोल धरोहर को पहचानें और इसमें छुपे हुए रहस्यों के प्रयोग से अपनी शारीरिक परेशानियों से मुक्त हो अपने आर्थिक व मानसिक परिवेश को बदलें। पांडुलिपियों से पता चलता है कि हर राशि का अपना एक वृक्ष होता है और उसके कुछ नक्षत्र होते हैं। नक्षत्रों के भी कुछ वृक्ष तय हैं। राशि के अनुरूप दिन, रंग, वार, दिशा आदि के अनुसार ध्यानपूर्वक पूजा-अर्चना कर वृक्ष को सिद्ध किया जाए तो वह अपने अंदर छिपे अदृश्य परिमल का उत्सर्जन करेगा। ु