स्वास्थ्यप्रद जैतून का तेल स, इटली, तुर्की, ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों में जैतून के तेल का भोजन में प्रयोग ईसा पूर्व 3000 वर्ष से भी अधिक समय से होता आया है। इसका उत्पादन भी इन्हीं देशों में सर्वाधिक होता है। अमेि रका मं े इस े स्पने ी एव ं पतु र्ग ालियांे द्वारा सोलहवीं शताब्दी ईसा पूर्व लाया गया।
यह तेल जैतून के फल को पहले कूटकर फिर मशीनों द्वारा पेर कर निकाला जाता है। इसके पौधे को उगाने के लिए खास जलवायु की जरूरत होती है, जो केवल भूमध्य सागरीय क्षेत्र के देशों में ही होती है। चूंकि इसका उत्पादन विश्व के गिनती के देशों में, खास किस्म की भूमि पर होता है, इसलिए यह अत्यंत महंगा है।
यही कारण है कि आम लोग इसका रोजाना इस्तेमाल नहीं कर सकते। स्वास्थ्य लाभ - कई सर्वेक्षणों से पता चला है कि फ्रांस, इटली, पुर्तगाल आदि के निवासियों में हृदय रोग अन्य यूरोपीय एवं अमरीका जैसे उन्नत देशों के मुकाबले कम पाया जाता है।
इसका मुख्य कारण जैतून के तेल का नित्य इस्तेमाल है। विश्व के जिन देशों में तेल या चिकनाई का इस्तेमाल अधिक किया जाता है उनमें ऐथेरोस्क्ेलोरोसिस, मधुमेह, दमा, गठिया, आंत रोग, कैंसर जैसे भयावह रोगों से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, परंतु जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, भूमध्य सागरीय क्षेत्र के देशों में ये रोग कम होते हैं।
हृदय रोगों पर प्रभाव: ऐसा पाया गया है कि जैतून के तेल से बने एल. डी.एल. कोलेस्ट्रोल को आक्सीकृत करना आसान नहीं होता। चूंकि यह आक्सीकृत नही होता, इसलिए इससे बनने वाले थक्के भी नहीं होते या बहुत ही कम होते हैं। बस यही कारण है कि हृदय रोग या हृदय के दौरे और ऐथेरोस्क्लेरोसिस जैसे रोगों से बचाव हो जाता है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि जो लोग हाइड्रोजेनेटेड तेल अथवा घी का इस्तेमाल बंद कर जैतून के तेल का इस्तेमाल करने लगे, उनमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा 13 प्रतिशत कम हो गई और एल. डी. एल. का स्तर भी 18 प्रतिशत कम हो गया।
रक्तचाप पर असर: जिन लोगों के भोजन में फल, सब्जियां और जैतून का तेल मुख्य पदार्थ रहे उनमें रक्तचाप सामान्य पाया गया। इसके विपरीत जो लोग वसा (।दपउंस ंिज), मांस एवं मदिरा आदि का सेवन करते रहें, उनमें रक्तचाप अधिक रहा।
मधुमेह रोग: जैतून के तेल के सेवन से मधुमेह के रोगियों के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा नियमित या सामान्य रहती है। साथ ही इन रोगियों में पाई जाने वाली चर्बी (भ्पही ज्तपहसलबमतपकमे) का स्तर भी सामान्य हो जाता है।
शोथ निरोधी (।नजपदसिंउउंजवतल मििमबज): इस तेल के नियमित इस्तेमाल से शरीर में शोध निरोधी रासायनिक पदार्थों का निर्माण होता है। इसलिए दमा, गठिया, रूमेटाॅइड, आथ्र्राराइटिस आदि रोगों से बचाव हेतु इस तेल का भोजन में प्रयोग किया जा सकता है।
कैंसर से बचाव: जैतून के तेल के सेवन से आंत के कैंसर का खतरा कम हो जाता है। इसके विपरीत वसा या घी, मांस आदि के इस्तेमाल से आंत एवं अन्य कैंसर रोग बढ़ जाते हैं।
मोटापे से बचाव: 40 दिन के नियमित सेवन से मोटापे से ग्रस्त लोगों में 2 कि.ग्रा. तक वजन आसानी से कम हो जाता है। अगर इसके साथ-साथ नियमित व्यायाम किया जाए, फल तथा सलाद का अधिक से अधिक सेवन किया जाए और साप्ताहिक उपवास किया जाए तो परिणाम और भी अच्छा हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि यह सब इस तेल में पाए जाने वाले मूफा (डवदवनदेंजनतंजमक ंिजे) द्वारा चर्बी की वसा कोशिका को तोड़ने (ठतमंाकवूद व िंिज बमससे) से होता है, जबकि अन्य तेलों का, जहां पूफा (च्वसलनदेंजनतंजमक थ्ंजे) की मात्रा अधिक होती है, इसके विपरीत असर होता है, अर्थात वह वसा कोशिकाओं का निर्माण करता है।
एन्टीआॅक्सीडेंट: जैतून के तेल में एन्टीआॅक्सीडेंट, क्लोरोफिल (ब्ीसवतवचीलसस ) केरोटिनाइडस और पालीफिनोलिक पदार्थ, टाइरोसोल, हाइड्रोटाइरोसोल, ओलेयूरोपिन आदि भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। ये सभी तत्व हमें फ्री रेडिकल की मार से तो बचाते ही हैं, इस तेल से मिलने वाले विटामिन ‘ई’ को भी फ्री रेडिकल द्व ारा नष्ट होने से बचाते हैं।
एड़ियों को फटने से बचाने के लिए: सर्दियों में एड़ियां फट जाएं तो नहाने के बाद अलसी और जैतून के तेल तथा ग्वार पाठे (।सवम टमतं) के गूदे को मिलाकर लगाएं।
चेतावनी: जैतून का तेल उतना ही खरीदें, जो एक से दो माह तक चल सके क्योंकि ज्यादा दिन तक रखे तेल में प्रतिरोधी एन्टीआॅक्सीडेंट कम होते जाते हैं।
इस्तेमाल की विधि: इसे कच्चे सलाद पर छिड़क कर प्रयोग करें। सब्जियों को साफ एवं पकाकर उतार लें, फिर जैतून का तेल डाल कर इस्तेमाल करें।
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