जीवन रेखा के माध्यम से जातक का स्वास्थ्य, हृदय की कार्य प्रणाली, विशेष शुभाशुभ फलों, कुलपरंपराओं आदि का विचार किया जाता है। प्राच्य हस्तरेखा विद्व ान इसे पितृ रेखा, मित्र रेखा, गोत्र रेखा आदि नामों से भी संबोधित करते हैं। पाश्चात्य विद्वानों द्वारा हृदय रेखा को ही आयु की रेखा माना जाता है।
प्राचीन भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के विद्वानों के मतानुसार प्रगूढ़ रेखा कहलाने वाली इस जीवन रेखा को ग्यारह भागों में विभक्त किया गया है जिसका उल्लेख इस प्रकार है।
संगूढ़देहा: स्थूल, आरंभ से लेकर मणिबंध तक, बीच में न टूटी हुई, वर्तुलाकार प्रगूढ़ रेखा को संगूढ़देहा कहा जाता है। ऐसी रेखा वाला जातक यशस्वी, दीर्घायु, गठी हुई देह वाला, स्वाभिमानी तथा सुख भोगने वाला होता है।
विगूढ़देहा: यदि उपर्युक्त संगूढ़देहा रेखा स्पष्ट, सरल तथा स्थूल हो, परंतु वर्तुलाकार न होकर, शुक्र क्षेत्र को प्रभावित करती सीधी चली गई हो तो यह विगूढ़देहा रेखा कहलाती है। ऐसी रेखा वाला जातक सामान्यतः अल्पायु होता है।
गौरी: अपने मध्य भाग में उन्नत दिखाई देने वाली प्रगूढ़ रेखा गा. ैरी कहलाती है। ऐसी रेखा वाला जातक अमावस्या के आसपास जन्म लेता है। वह भाग्यशाली, ऐश्वर्यपूण्र् ा जीवन जीने वाला, धनी व सुखी होता है। उसकी आयु 80 वर्ष से ऊपर होती है।
निगूढ़देहा: यदि प्रगूढ़ रेखा अपने उद्गम स्थल पर किसी अन्य रेखा से संयुक्त हो रही हो, तो वह निगूढ़देहा कहलाती है। ऐसा जातक कृष्ण पक्ष में ही उत्पन्न होता है। वह स्वस्थ, सुखी, धनवान, पुत्र पौत्रों से युक्त होता है, परंतु उसकी आयु मध्यम होती है।
रमा: मध्य भाग में अपने वाम पक्ष से किंचित दबी हुई सी दिखाई देने वाली प्रगूढ़रेखा को रमा कहते हैं।
अतिलक्ष्मी: जो प्रगूढ़रेखा अपने उत्पŸिा स्थल से वर्तुलाकार होकर मध्य भाग में सीधी दिखती हो, वह अतिलक्ष्मी कहलाती है। इसके नाम के अनुरूप जातक अत्यधिक धन का स्वामी होता है परंतु दीर्घायु नहीं होता।
परमूढ़ा: यदि प्रगूढ़ रेखा कलाई (मणिबंध) के समीप किसी अन्य रेखा से मिलती हो, तो वह परगूढ़ा कहलाती है। ऐसी रेखा वाला जातक सभी संपŸिायों का भोग करता है, पर वह भी अल्पायु ही होता है।
सर्वसौख्य-विनाशिनी: प्रगूढ़रेखा यदि उद्गम स्थल से निकलकर मध्यम भाग तक पहुंचते पहुंचते अदृश्य हो जाए या संपूर्ण रेखा ही स्पष्ट न हो, तो वह अपने नाम के अनुरूप ही सभी सुखों को नष्ट करने वाली होती है तथा आयु को क्षीण करती है।
सुख भोगदा: जब प्रगूढ़ रेखा उत्पŸिा स्थान तथा अपने अंतिम छोर पर, दोनों जगह किसी रेखा या रेखाओं से मिलती है, तो जातक परम ऐश्वर्यशाली तथा सुखी होता है। किंतु आचार्यों के अनुसार ऐसी रेखा वाला जातक भी दीर्घायु नहीं होता।
कुबुद्धिकारिणी: यदि जीवन रेखा बीच बीच में टूटी हुई हो, तो कुबुद्धि कारिणी कहलाती है। दुष्ट बुद्धि वाला, अपमानित होने वाला तथा क्रूर कर्म करने वाला होता है। वह हर जगह अपमानित होता है, किंतु आयु लंबी होती है।
गज रेखा: यदि जीवन रेखा अपने उत्पŸिा या समाप्ति स्थल पर या दोनों स्थानों पर काले तिल से युक्त हो, तो गजरेखा कहलाती है। दक्षिण भारतीय कार्तिकेय पद्धति में इस आयु रेखा को ‘रोहिणी’ नाम दिया गया है। यदि रोहिणी नामक इस आयु रेखा के ऊपर किसी भी स्थान पर यदि कृष्ण वर्ण का चिह्न हो, तो उस आयु खंड में जातक को घोर अपमान का सामना करना पड़ता है।
यदि यह रेखा किसी आयु विशेष में विच्छिन्न अर्थात टूटी हुई हो, तो उस आयु में जातक को बीमारी, दुर्घटना आदि कष्टों का सामना करना पड़ता है।
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