हर की पौडी़ हर की पौडी़ का वास्तु आकर्र्षित करता है भक्तों को वास्तुगुरु कुलदीप सलूजा वैसे तो गंगा भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक भूमि को सींचती हुई जाती है, परंतु कुछ स्थानों पर इस पावन पवित्र नदी का धार्मिक महत्व बहुत ही ज्यादा है। आखिर ऐसा क्यों हैं कि, एक ही नदी है और जल भी वही है? वास्तुशास्त्र के अनुसार केवल वही स्थान विशेष धार्मिक आस्था का केंन्द्र बनता है जिन स्थानों की भौगोलिक स्थिति धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक वास्तुसंगत होती है। प्रत्येक हिंदू के मन में एक अभिलाषा रहती है कि, जीवन में एक बार गंगा नदी में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करे और उसके लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध स्थान है हरिद्वार स्थित ब्रह्मकुण्ड। वही ब्रह्मकुंड जिसके समीप ही पत्थर से बने एक मंदिर में भगवान विष्णु के चरण चिन्ह हैं। ब्रह्मकुंड में भक्तजन स्नान करते हैं। उस मंदिर के साथ लगा हुआ जो घाट हैं, उसे ही हर की पौड़ी कहते हैं। आईए देखते हैं कि हरिद्वार और वहां स्थित हर की पौड़ी के आसपास के क्षेत्र में ऐसी कौन सी भौगोलिक वास्तुनुकुलताएं हैं जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। हरिद्वार के एक ओर हिमालय की पर्वत माला है जहां पूर्व और पश्चिम की ओर से मिली हुई शैवालिक पर्वत की दो शाखाएं हैं। पश्चिम स्थित शैवालिक पर्वत की एक शाखा बिल्वा पर्वत जहां पर मनसादेवी का मंदिर है। बिल्वा पर्वत की पूर्व दिशा की तलहटी पर हर की पौड़ी स्थित है। हर की पौड़ियां भी इस पर्वत को काट कर बनाई गई है। हर की पौड़ी के सामने वह घाट है जहां घंटाघर स्थित है और इस घाट के बाद पूर्व दिशा में गंगा की दूसरी नहर एवं गंगा की मुखय धारा बह रही है। कुल मिलाकर हर की पौड़ी के ठीक निकट पश्चिम में ऊंचाई और सामने दूर तक पूर्व दिशा में ढलान है। हर की पौड़ी के पश्चिम में भीम गोड़ा रोड एवं गंगा सभा कार्यालय ऊंचाई पर है। हर की पौड़ी के एकदम पास वाली सड़क अपर रोड़ के अंतिम छोर पर जो पुल पर समाप्त होती है इस पुल का यह छोर सड़क के लेवल के बराबर है। जबकि पुल का दूसरा छोर हर की पौड़ी के सामने उस घाट तक है जहां घंटाघर है वहां पर 15-16 फीट की ढलान है। इसलिए घंटाघर वाले घाट पर जाने के लिए सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। हरिद्वार में गंगा नदी उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बह रही है। किंतु हर की पौड़ी से लगभग 150-200 मीटर पहले श्मशान के पास जहां पर पंजाब सिंध क्षेत्र का भवन है, वहां से घूमकर ईशान कोण से हर की पौड़ी की तरफ आती है और हर की पौड़ी के बाद कुछ मीटर दूरी पर ही उपरोक्त पुल के नीचे पुनः पूर्व की ओर मुड़ कर गंगा नदी दक्षिण वाहिनी हो जाती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस प्रकार पश्चिम में ऊंचाई और पूर्व दिशा में ढलान और वहां पर पानी हो तो ऐसा स्थान लोगों की ऐसी धार्मिक आस्था का केंद्र बन जाता है, जहां भक्तजन मोक्ष पाने की और सन्यांसी सिद्धी पाने की कामना करते हैं। यूं तो हरिद्वार की जमीन समतल है। किंतु हर की पौड़ी से दक्षिणी दिशा की ओर जहां मेन बाजार, अपर रोड, मोती बाजार, सब्जी मंडी, भल्ला रोड़ तथा रिक्शा स्टैण्ड के आसपास की जमीन की ढलान दक्षिण दिशा से हर की पौड़ी की तरफ उत्तर दिशा की ओर है। वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में ऊंचाई हो और उत्तर दिशा की ओर ढलान हो वह स्थान, भवन, शहर प्रसिद्धि पाता है। जैसे जयपुर की पिंक सिटी वाले भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर ढलान है, गुडगांव में भी दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर ढलान है। ताज महल के उत्तर दिशा में यमुना नदी बह रही है। उत्तर दिशा की यह वास्तुनुकूलता ही हर की पौड़ी वाले क्षेत्र को विशेष प्रसिद्धि दिलाने में अत्यधिक सहायक है। हर की पौड़ी एवं उसके आस-पास की इसी भौगोलिक स्थिति के कारण ही यहां के घाटों का सौंदर्य विस्मयपूर्ण है। जब जब रोजाना हजारों दीये एवं गेंदे के फूल पवित्र जल पर तैरते हुए प्रदीप्त होते हैं व सांध्यकाल में सूर्यास्त के बाद यहां होने वाली गंगा आरती यहां आने वाले पर्यटकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। फेंग शुई का एक सिद्धांत है कि, यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो, और ढलान के बाद पानी का झरना, कुंड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंग शुई के इस सिद्धांत में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। हर की पौड़ी की पश्चिम दिशा में बिल्वा पर्वत की ऊंचाई है। उसके बाद गंगा सभा कार्यालय भवन है। फिर पौड़ियां हैं और उसके बाद हर की पौड़ी स्थित ब्रह्मकुंड, भगवान विष्णु का मंदिर है। इसके आगे पूर्व दिशा की ओर गंगा नदी की धाराएं बह रही है। जो क्रमशः गहरी है। इस प्रकार हर की पौड़ी वास्तु एवं फेंग शुई दोनों सिद्धांतों के पूर्णतः अनुरूप होने से भारत ही नहीं अपितु विश्व भर में प्रसिद्ध है