नूतन गृह प्रवेश मुहूर्त विचार
नूतन गृह प्रवेश मुहूर्त विचार

नूतन गृह प्रवेश मुहूर्त विचार  

राजेंद्र कुमार मिश्र
व्यूस : 4664 | दिसम्बर 2006

वास्तु निर्माण के पश्चात सर्वाधिक बली फल ‘नूतन गृह प्रवेश’ का माना गया है। नव गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु स्वामी को चाहिए कि वह अपने अभीष्ट, संपूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति एवं वास्तु दोष के शमन के लिए ‘वास्तु शांति’ कार्य संपन्न करें। अथ प्रवेशे नव मंदिरस्य वास्त्वर्चनं। सुख धनानि बुद्धिश्य संतति सर्वदानृणाम्।। गृह निर्माण संपूर्ण हो जाने पर उसमें निवास के पूर्व किए जाने वाले यज्ञादि धार्मिक कृत्य, अनुष्ठान वास्तु शांति कहलाते हैं।

कई बार वास्तु शांति एवं गृह प्रवेश दोनों ही प्रयोजन एक साथ ही सिद्ध हो जाते हैं। वास्तु शांति के लिए मृदु, धु्रव, क्षिप्र तथा चर नक्षत्रों अर्थात अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उŸारा, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा रेवती तथा शतभिषा नक्षत्रों को मान्यता दी गई हैं। इन नक्षत्रों के साथ दोनों पक्षों की 1, 2, 3, 5, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13 एवं पूर्णिमा तिथियों और सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा शनिवार को शुभ माना गया है। अतः इन योगों में वास्तु शांति या नूतन गृह-प्रवेश करना शास्त्रानुसार निःसंदेह शुभ है। नए घर में प्रवेश के लिए उŸारायण के वैशाख, ज्येष्ठ, माघ तथा फाल्गुन मास दोष रहित माने गए हैं।

कुछ विद्वान देशांतर मत से कार्तिक, श्रावण और मार्गशीर्ष मासों को भी दोष रहित मानते हैं। तिथियों में 2, 3, 5, 7, 10 एवं 13 तथा वारों में सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और नक्षत्रों में अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, तीनों उŸारा, हस्त, चित्रा, स्वाति अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा तथा रेवती नक्षत्रों के आधार पर गणना करनी चाहिए। इस प्रकार मुहूर्तों में साम्यता होने पर वास्तु शांति एवं गृह प्रवेश दोनों देववशात् एक साथ सिद्ध हो जाते हैं। लग्नों में 2, 5, 8, 11 शुभ और 3, 6, 9, 12 मध्यम हैं।


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वास्तु शास्त्र में द्वार की दिशा को अति महत्वपूर्ण माना गया है। इसी पक्ष को दृष्टि में रखते हुए ज्योतिष शास्त्र में द्वार की दिशा पर आधारित मुहूर्त का विधान किया गया है। यदि वास्तु का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में हो, तो पूर्णा (5, 10 एवं पूर्णिमा) तिथियों को गृह प्रवेश करना चाहिए। द्वार दक्षिण में होने पर नंदा (1, 6, 11) तथा पश्चिम में होने पर भद्रा (2, 7, 12) तिथियों को मुहूर्त शुभ होता है। यदि वास्तु का मुख्य द्वार उŸार दिशा में हो, तो जया (3, 8, 13) तिथियों को गृह प्रवेश श्रेयष्कर होता है।

जन्म लग्न जन्म राशि से उपचय (3, 6, 10, 11) भावों में स्थित राशि के और स्थिर संज्ञक (कुंभ, वृष, सिंह) लग्नों में ही गृह प्रवेश करना शास्त्रों में शुभ माना गया है। जन्म राशि एवं जन्म लग्न से अष्टम राशि का लग्न वर्जित है, अतः ऐसे लग्न में गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए। गृह प्रवेश लग्न के समय केंद्र, त्रिकोण, धन एवं आय भावों में सौम्य ग्रह बलवान हो तथा चतुर्थ एवं अष्टम भाव ग्रहों से रहित हों, तो यह योग घर में रहने वालों के लिए शुभ होता है।

दग्धा, रिक्त तथा शून्य तिथियों एवं चर लग्नों का सर्वथा त्याग करना चाहिए। रविवार, मंगलवार, अमावस्या, चैत्र एवं आषाढ़ मास, भद्रा एवं द्वादशी तिथियों एवं शुक्रवार के योग का भी त्याग करना चाहिए। सम्मुख राहु में गृह प्रवेश न करें। ‘सम्मुखे राहौ नवै गृह प्रवेशः नव गृह प्रवेश के समय वाम सूर्य का विचार करना परम आवश्यक है। प्रवेश लग्न के अष्टम भाव से द्वादश भाव पर्यंत सूर्य स्थित हो, तो पूर्वाभिमुख गृह में प्रवेश के समय वाम सूर्य होता है।

पंचम से नवम भाव पर्यंत सूर्य के स्थित होने पर दक्षिण द्वार वाले गृह तथा एकादश भाव से क्रमशः पांच स्थानों में सूर्य संस्थित होने पर उŸाराभिमुख गृह में प्रवेश के समय वाम मार्ग जानना चाहिए। दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार हो, तो नव गृह प्रवेश का लग्न उस समय का होना चाहिए जब सूर्य 5, 6, 7, 8 अथवा 9वें भाव में स्थित हो।

पूर्व दिशा में मुख्य द्वार हो, तो गृह प्रवेश के लग्न उस समय का होना चाहिए जब सूर्य 8, 9, 10, 11 या 12वें भाव में हो। गृह प्रवेश के समय कलशचक्र को भी ध्यान में रखना चाहिए। कलश चक्र का सूत्र इस प्रकार है: प्रवेश कलशेऽर्कक्र्षात्प´्चनागाष्टषट् क्रमात्। अशुभंचशुभं ज्ञेय मशुभंचशुभंतथा।। सूर्य नक्षत्र से पहले के पांच नक्षत्र तक के मुहूर्त अर्थात नक्षत्र में गृह प्रवेश करना अशुभ होता है 6 से 13 नक्षत्र शुभ, 14 से 21 नक्षत्र अशुभ एवं अंतिम 6 नक्षत्र (22 से 27) शुभ फल देने वाले माने गए हैं।


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अतः कलशचक्र के अनुसार अशुभ फलदायक नक्षत्रों में गृह प्रवेश वर्जित है। त्रिकोण और केंद्र स्थानों में शुभ ग्रह में ऐसा स्थिर लग्न देखकर और तीसरे, छठे तथा लाभ स्थानों में पाप ग्रह हो तो बली चंद्रमा में गृह प्रवेश करना शुभ होता है। त्रिकोणकेंद्रगैः शुभैस्त्रिषष्ठ लाभ संस्थितैः। असद्ग्रहैः स्थिरोदयेगृहं विशेद्बलेविद्यौ।। तीसरे, छठे या 11वें स्थान में पाप ग्रह शुभ और 8/12 स्थान में इतर स्थानों में शुभ ग्रह हो, तो शुभ होता है, परंतु चंद्रमा लग्न, षष्ठ द्वादश तथा अष्टम स्थानों में न हो।

त्रिषडायगतेः पापैरष्टान्त्येन्तरगैः शुभैः। चंद्रे लग्ने रिन्घ्रान्त्यवर्जितेस्याच्छुभंगृहम्।। लग्न के 2, 1, 4, 7, 10, 5, 8 स्थानों में क्षीणचंद्र स्थित हो, तो अशुभ होता है और स्वराशि का शत्रु नवांश में हो तो भी अशुभ होता है। क्षीणचंद्र कृष्ण पक्ष की पंचमी से जाना जाता है। खरीदे हुए, अपने पुराने घर के स्थान पर नव निर्मित, अग्नि, जल व शासन कोप एवं प्राकृतिक आपदा के कारण ध्वस्त होने पर पुनः निर्मित भवन के प्रवेश में पूर्वाक्त मासों के साथ कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं श्रावण मास तथा शतभिषा, पुष्य, स्वाति एवं धनिष्ठा नक्षत्र भी शुभ होते हैं।

ऐसे घर में प्रवेश के समय गुरु, शुक्र के अस्तादि का विचार नहीं करना चाहिए। दिए गए चक्र का भावार्थ पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है। सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि, अभिजित आदि मुर्हूतों की उत्कृष्टता बढ़ाने वाले सुयोग में न्यून कुयोग निष्प्रभावी होता है। वास्तु स्वामी को किसी दैवज्ञ ज्योतिषी द्वारा बताए गए मुहूर्त को अपने अभीष्ट की प्राप्ति हेतु निःसंकोच स्वीकार करना चाहिए।

इस तरह शुभ लग्न में पुष्य गंधादि से सुशोभित, मंगलाचरण, वेद ध्वनि एवं वाद्य ध्वनि से गुंजायमान घर में मंगल लक्षणों एवं चिह्नों सहित मुख्य द्वार से प्रवेश कर अग्रजों का सम्मान एवं कुलदेव की अर्चना करनी चाहिए। वास्तु स्वामी को शिल्पज्ञ, ज्योतिषी एवं विज्ञ पुरोहितों का यथोचित सम्मान कर अपने वास्तु की मंगलकामना करनी चाहिए। चंद्रमा से सप्तम स्थान में सूर्य शनि या मंगल हो, तो गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए।



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