व्यक्ति का जन्म जिस ग्रह स्थिति और नक्षत्र में होता है, उसी के अनुसार जीवन में शुभ तथा अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के फलित ग्रंथों में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति से बनने वाले अशुभ योगों की शांति के लिए उपायों का विधान भी दिया गया है। मूल, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, अश्विनी और रेवती नक्षत्र गंडमूल संज्ञक हैं। गंडमूल संज्ञक नक्षत्रों में जन्में लोगों के लिए ये नक्षत्र प्रायः अशुभ होते हैं। गोस्वामी तुलसीदास का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था, फलस्वरूप उन्हें बाल्यावस्था में ही मातृ-पितृ सुख से वंचित होना पड़ा। परंतु इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले सभी जातकों पर इनका अशुभ प्रभाव पड़े ही यह आवश्यक नहीं।
नक्षत्र के चरण के अनुसार फल शुभ या अशुभ फल होता है। अश्विनी नक्षत्र: इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक अपने पिता के लिए अरिष्टकारी, दूसरे चरण में जन्म होने पर धन का अपव्ययी, तीसरे चरण में जन्म लेने पर भ्रमणशील और चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर स्वयं शारीरिक कष्ट से पीड़ित होता है। मघा नक्षत्र: इसके प्रथम चरण में जन्म लेने पर जातक माता-पिता तथा मामा आदि के लिए कष्टकारी माना गया है। दूसरे चरण में जन्म हो तो पिता को कठिनाई तीसरे चरण में हो तो शुभ होता है। चतुर्थ चरण में जन्म होना शिक्षा एवं धन के लिए शुभ होता है।
Û आश्लेषा नक्षत्र: प्रथम चरण में जन्म होना सामान्य दोषकारक होता है। दूसरे चरण में जन्म होने से पैतृक धन की हानि, तीसरे चरण में माता-पिता के लिए अशुभ, चतुर्थ चरण में पिता के लिए कष्टकारी होता है।
Û ज्येष्ठा नक्षत्र: प्रथम चरण में उत्पन्न होने पर बड़े भाई के लिए कष्टकारी, दूसरे चरण में जन्म लेने पर छोटे भाई के लिए अरिष्टकारी, तीसरे चरण में जन्म लेने पर पिता के लिए अरिष्टकारक और चतुर्थ में उत्पन्न होने पर व्यक्ति अपने तथा अपने पिता के लिए अशुभकारी होता है।
मूल नक्षत्र: प्रथम चरण में जन्म लेने पर व्यक्ति पिता के लिए तथा दूसरे चरण में माता के लिए अशुभ होता है। तीसरे चरण में जन्म लेने पर धन की हानि होती है, किंतु चैथे चरण में जन्म लेने पर कोई अशुभ नहीं होता है। रेवती नक्षत्र: प्रथम चरण में जन्म लेने से विशेष सुख, दूसरे में सामान्य सुख और तीसरे में धन लाभ होता है किंतु, चैथे में जन्म होने पर व्यक्ति माता-पिता के लिए अनिष्टकारी होता है।
अभुक्त मूल: मूल नक्षत्र के प्रारंभ की दो और ज्येष्ठा नक्षत्र के बाद की दो घटियां अभुक्त मूल गंड नक्षत्र मानी जाती हैं। इनमें जन्मे पुत्र, कन्या, सेवक, पशु कुल के लिए अशुभकारी होते हैं।
इनमें उत्पन्न नवजातशिशु के पिता नक्षत्र शांति करवाने के पश्चात बच्चे के दर्शन करें। इन छः गंडमूल नक्षत्रों में उत्पन्न जातक के गंडमूल नक्षत्र की शांति अवश्य करवानी चाहिए चाहे चरण भेद के अनुसार वह शुभफलदायक ही क्यों न हो, क्योंकि इन नक्षत्रों में जन्म लेने पर नक्षत्र दोष लगता है।
शांति विधान: जिस गंडमूल नक्षत्र में जन्म हो वह नक्षत्र जब 27वें दिन दोबारा आए उस समय शांति करवानी चाहिए। यदि इसमें न करवा सकें तो 27 वें मास में और यदि 27वें मास में भी संभव न हो तो 27वें वर्ष में गंडमूल नक्षत्र की शांति करवानी चाहिए।