विदेश यात्रा का आकर्षण प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। पहले विद्या प्राप्ति या धन प्राप्ति के लिए ही विदेश यात्रा की जाती थी। समय के साथ विदेश यात्रा का स्वरूप भी बदला है। अब व्यक्ति इलाज के लिए या सिर्फ भ्रमण के लिए भी विदेश जाते हैं। कुछ सरकारी या विभागीय कार्य के लिए भी विदेश जाते हैं। विदेश यात्रा किस प्रयोजन से होगी, कब होगी, किस दिशा में होगी, कितने समय के लिए होगी, क्या विदेश में बस जाने का योग है, आदि कई प्रश्न आजकल पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कुछ नियमों व योगों का उल्लेख यहां किया जा रहा है। यदि व्यक्ति विद्या प्राप्ति के लिए विदेश जाना चाहता है तो पंचमेश, नवमेश व द्वादशेश के संबंध को देखंेगे। यदि व्यापार या विभागीय कार्य से विदेश जाना चाहता है तो दशमेश व द्वादशेश का संबंध होना चाहिए। यदि नौकरी या इलाज के लिए विदेश जाना चाहता है तो षष्ठेश का संबंध द्वादशेश से होना चाहिए। यदि धन कमाने के लिए विदेश जाना चाहता है तो द्वितीयेश, एकादशेश व द्वादशेश का संबंध होना चाहिए।
विदेश यात्रा से संबंधित कारण, कार्येश, लग्नेश व द्वादशेश का संबंध बनने पर विदेश यात्रा होती है। विदेश यात्रा को भी दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला किसी कार्य विशेष के लिए जाना और दूसरा विदेश मंे जाकर बस जाना। विदेश यात्रा के कुछ योग इस प्रकार है:
Û लग्नेश और व्ययेश का स्थान परिवर्तन हो या दोनों की युति हो, या दोनों का दृष्टि संबंध हो।
Û लग्नेश द्वादश भाव में हो या द्वादश भाव में स्थित ग्रह से संबंध हो।
Û द्वादशेश लग्न में हो, या लग्नेश से संबंध हो।
Û पंचमेश द्वादश भाव में हो, या द्वादशेश से संबंध हो।
Û दशमेश द्वादश भाव में हो, या द्वादशेश से संबंध हो।
Û षष्ठेश द्वादश मंे हो, या द्वादशेश से संबंध हो।
Û नवमेश द्वादश भाव में हो, या द्वादशेश से संबंध हो।
Û लग्नेश व धनेश नवम् भाव में चर राशि में हो।
Û लग्न चर राशि का हो और लग्नेश भी चर राशि में हो और लग्न को या लग्नेश को चर राशिगत ग्रह देखते हो तो जातक के भाग्य का उदय विदेश में होता है।
Û राहु, शुक्र या शनि का संबंध द्वादश भाव से हो।
Û सूर्य की महादशा में चंद्र या केतु की अंतर्दशा हो।
Û मंगल की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा हो।
Û राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा हो।
Û शनि की महादशा में शनि या मंगल की अंतर्दशा हो।
Û केतु की महादशा में सूर्य या शनि की अंतर्दशा हो।
Û द्वादशेश की महादशा या अंतर्दशा हो।
Û द्वादश भाव में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा हो।
Û द्वादशेश की महादशा हो और द्वादश भाव में स्थित ग्रह की अंतर्दशा हो तो जातक विदेश में जाकर ही बस सकता है।
विदेश यात्रा की दिशा: जो ग्रह विदेश यात्रा का योग बना रहा हो, उन ग्रहों से संबंधित दिशा में ही विदेश यात्रा के योग बनते हैं। विभिन्न ग्रहों से संबंधित दिशाएं इस प्रकार हैं:- सूर्य - पूर्व दिशा, चंद्र - उत्तर दिशा, बुध - उत्तर दिशा बृहस्पति - उत्तर पूर्व दिशा, शुक्र - दक्षिण पूर्व दिशा, शनि - पश्चिम दिशा, राहु, केतु - दक्षिण पश्चिम दिशा विदेश यात्रा का प्रयोजन: जो ग्रह विदेश यात्रा के योग बना रहे हैं, वे ग्रह किस-किस भाव से संबंध रखते हैं, उन भावों से संबंधित कार्यों के लिए ही विदेश यात्रा होगी। विदेश यात्रा की अवधि: यदि विदेश यात्रा के योग बनाने वाले ग्रह स्थिर राशि में हो तो यात्रा लंबे समय के लिए होगी। यदि विदेश यात्रा के योग बनाने वाले ग्रह चर राशि में हो तो यात्रा कम समय के लिए होगी। यदि लग्नेश और द्वादशेश का राशि परिवर्तन योग हो या दोनों की युति हो तो जातक विदेश में जाकर ही बस सकता है। यदि द्वादशेश की महादशा में द्वादश भाव में स्थित ग्रह की अंतर्दशा हो तो जातक विदेश में जाकर ही बस सकता है।
उदाहरण कुंडलियां: कुंडली 1: जातक 6 अगस्त 2001 को विभागीय कार्य के लिए विदेश गया। इस जातक को बताया कि तुम 7 अगस्त 2001 से 27 अगस्त 2001 के बीच में विदेश जा सकते हो, लेकिन जातक की टिकट 1 अगस्त 2001 की आ गई। लेकिन विभागीय कारणों से वह टिकट रद्द करानी पड़ी और यह जातक 6 अगस्त 2001 को यू. के. गया। उस जातक की बुध की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा, गुरु की प्रत्यंतर दशा व शुक्र की सूक्ष्म दशा थी। बुध कर्मेश होकर एकादश स्थान में और एकादशेश द्वादश भाव में बैठा है। लग्नेश धन भाव में है।
जातक का अगला प्रश्न था कि मै यू. एस.ए. जाऊंगा या यू.के. जाऊंगा। मैंने बताया कि या तो तुम बुध की उत्तर दिशा में जाओगे या शुक्र की दिशा दक्षिण पूर्व में जाओगे। चूंकि यू. के. उत्तरी ध्रुव के पास है इसलिए यू. के. जाने की संभावना ही बनती है। बुध चर राशि में होने से जातक 3 महीने में ही अपना कार्य समाप्त करके स्वदेश लौट आया। कंुडली संख्या-2 का जातक 15.8.1997 को यू.एस.ए. की यात्रा पर विभागीय कार्य से गया। उस समय शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा चल रही थी। शनि द्वादश भाव में स्थित है और शुक्र लग्नेश है।
6 अगस्त 2001 को यह जातक यू.के. की यात्रा पर गया। उस समय शनि की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा चल रही थी। चंद्र कर्म भाव में है जिसे मंगल, बुध, गुरु, सूर्य व केतु देख रहे हैं। बुध धनेश व गुरु एकादशेश है। कुंडली संख्या-3 का जातक 24.8.2001 को यू.एस.ए व 6.8.2001 को यू.के. गया। उस समय गुरु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा चल रही थी। गुरु कर्म भाव में है और एकादशेश और धनेश को देख रहा है। लग्नेश व्यय भाव में है। कुंडली संख्या-4 का जातक तीन बार यू.के. की यात्रा कर चुका है। दो बार 11.1.1997 व 20.7.1997 को शनि की महादशा में शुक्र की अंर्तदशा में और तीसरी बार 6.8.2001 को शनि की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा के समय। चंद्र द्वादशेश होकर एकादश भाव में बैठा है। षष्ठेश, शनि व कर्मेश शुक्र युति नवम भाव में है। कुंडली संख्या 5 का जातक 10.6.2001 को यू.के की यात्रा पर गया।
उस समय गुरु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा चल रही थी। गुरु एकादशेश होकर व्यय भाव को देख रहा है और व्ययेश मंगल लग्न में है। लग्नेश व द्वादशेश की युति है। कुंडली संख्या 6 का जातक 11.8.2001 को यू.के. की यात्रा पर गया। उस समय सूर्य की महादशा में गुरु की अंतर्दशा चल रही थी सूर्य व गुरु की युति चतुर्थ भाव में है। व्ययेश गुरु का संबंध कर्मेश शुक्र के साथ भी है। लग्नेश शनि, गुरु, सूर्य, चंद्र, केतु व शुक्र को देख रहा है। कुंडली संख्या 7 का जातक दिसंबर 1995 में सिंगापुर घुमने के लिए गया। उस समय जातक की गुरु की महादशा में बुध की अंतर्दशा चल रही थी।
कुंडली मंे लग्नेश मंगल का व्ययेश शुक्र के साथ दृष्टि संबंध है। धनेश गुरु की युति कर्मेश सूर्य के साथ है और बुध एकादशेश होकर व्ययेश शुक्र युति कर रहा है। कुंडली संख्या 8 की महिला का विवाह विदेश में बसे एन.आर.आई. से फरवरी 1980 में हुआ और नवंबर 1980 में यह जातिका विदेश में जाकर बस गई। उस समय शुक्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा चल रही थी। लग्नेश बुध और व्ययेश शुक्र की युति है। केतु द्वादश भाव में बैठा है। द्वादशेश की महादशा व द्वादश भाव स्थित केतु की अंतर्दशा में ही विदेश में जाकर बस गई। राहु व केतु की दिशा नैर्ऋत्य कोण है। जातिका यू.एस.ए. में रह रही है।