ऊर्जा का स्रोत - नव रत्न गीता मैन्नम पिछले अंक में हमने आपको, ऊर्जा का प्रभाव मानव-स्वास्थ्य व वास्तु में किस प्रकार से होता है, बताया तथा इंद्रधनुष के सात रंगों तथा राहु और केतु को मिलाकर नौ रंगों की कंपन्न शक्तियों के बारे में भी बताया था। पूरा ब्रह्मांड इन्हीं नौ कंपनशक्तियों के सहारे घूमता है। किसी भी सजीव या निर्जीव वस्तु में किसी एक कंपनशक्ति की अधिकता होती है तथा किसी एक कंपनशक्ति की कमी होती है इसी प्रकार मनुष्य में जन्म के समय ग्रहों की दशा के अनुसार इनमें से किसी कंपनशक्ति की अधिकता या कमी पायी जाती है। इसी प्रकार हम नवग्रह, नवरत्न, नवधान्य, नौ पेड आदि के बारे में बताते हैं। इन सबमें एक-एक अलग कंपनशक्ति की अधिकता होती है जिसके कारण वह उस कंपनशक्ति से संबंधित ऊर्जा को प्रवाहित करता है। आजकल के प्रदूषित वातावरण में केवल नवरत्न ही एक ऐसा स्रोत है जिससे हमारे शरीर के अंदर जिस कंपनशक्ति की कमी है उसे रत्न के द्वारा कुछ हद तक पूरी कर सकते हैं। नवरत्न, नवधान्य व नवग्रह एक-दूसरे से संबंधित होते हैं, जैसे- माणिक्य को सूर्य से संबंधित रत्न माना जाता है, इस ग्रह से संबंधित धान है गेंहू। सूर्य की कमी से पेट से संबंधित बीमारियां होने की समस्या उत्पन्न हो जाती हंै। सूर्य की कंपनशक्ति की कमी को पूरा करने के लिए व्यक्ति को माणिक्य पहनने की सलाह दी जाती है। मोती: मोती चंद्रमा ग्रह से संबंधित रत्न है तथा इससे संबंधित अन्न है। धान। चंद्रमा की कंपनशक्ति की कमी होने पर मोती पहनने की सलाह दी जाती है। मूंगा: मंगल ग्रह से संबंधित रत्न तथा इससे संबंधित धान्य है साबुत अरहर। मंगल की कंपनशक्ति की कमी से कभी-कभी हड्डियों में कमजोरी आने लगती है इस कंपनशक्ति को पूरा करने के लिए मूंगा धारण किया जाता है। पन्ना: यह बुध ग्रह से संबंधित रत्न है तथा इससे संबंधित धान्य है साबुत हरी मूंग। इस कंपनशक्ति की कमी से हृदय रोग होने की संभावना रहती है इस बुध की कंपनशक्ति को पूरा करने के लिए पन्ना पहनने की सलाह दी जाती है। पुखराज: यह बृहस्पति ग्रह से संबंधित रत्न है तथा इससे संबंधित धान्य है काला चना। गुरु की कंपनशक्ति को पूरा करने के लिए पुखराज धारण किया जाता है। हीरा: यह शुक्र ग्रह से संबंधित रत्न है तथा इससे संबंधित धान्य है लोविया। आजकल अधिकतर लोग हीरा धारण करते हैं विशेषतौर पर स्त्रियां। परंतु उन्हें यह जानकारी नहीं होती है कि इस रत्न की कंपनशक्ति की उनको आवश्यकता भी है या नहीं। वस्तुतः शुक्र ग्रह की कंपनशक्ति को पूरा करने के लिए हीरा धारण किया जाता है। नीलम: शनि ग्रह से संबंधित रत्न है नीलम तथा इससे संबंधित धान्य है काला तिल। नीलम की कंपनशक्ति बहुत अधिक होती है। इसलिए इसको धारण करने के लिए इसकी मात्रा का सही आकलन बहुत ही आवश्यक होता है। गोमेद: यह राहु ग्रह से संबंधित रत्न है तथा इससे संबंधित धान्य है काला साबुत उड्द। राहु की कंपनशक्ति की कमी होने पर गोमेद रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है। लहसुनिया: यह केतु ग्रह से संबंधित रत्न है तथा इससे संबंधित धान्य है कुलथी दाना। लहसुनिया केतु की कंपनशक्ति को पूरा करने के लिए धारण किया है। प्राचीन समय में यदि किसी मनुष्य में किसी ग्रह की कंपनशक्ति की कमी पायी जाती थी तब उसे उस ग्रह से संबंधित धान्य का प्रयोग करने की सलाह दी जाती थी क्योंकि उस समय के धान्य में इतनी ताकत होती थी कि उसके खाने से मनुष्य में उस कंपनशक्ति की कुछ मात्रा तक पूर्ति हो जाती थी परंतु आजकल हर स्थान इतना प्रदूषित है कि जब हम खेतों में अनाज उगाते हैं तो उस समय हम उनमें इतना खाद, उर्वरक व कीटनाशक का प्रयोग करते है कि खाद्य पदार्थों में भी सही ऊर्जा का संचार नहीं हो पाता है जिससे उससे संबंधित ऊर्जा (कंपनशक्ति) हमें नहीं मिल पाती है। अतः आजकल के वातावरण में केवल रत्न ही एक ऐसा ऊर्जा का स्रोत रह गया है जिससे हम मनुष्य को कुछ सीमा तक ऊर्जा दे सकते हैं परंतु इसके लिए हमें सही जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है। आजकल हम अधिकतर मनुष्यों को देखते हैं कि वह बड़े-बड़े चार, पांच रत्न पहने हैं तथा गले में मोटे-मोटे रुद्राक्ष की माला पहने हुए हैं परंतु फिर भी उनको शारीरिक व मानसिक शक्ति का अनुभव नहीं होता है इतनी अधिक ऊर्जा प्रवाह करने वाले रत्न पहनने के बाद भी परेशान रहते हैं इसका मुख्य कारण है कि सभी ऊर्जा प्रवाह करने वाले रत्न एक-दूसरे की ऊर्जा को काटकर 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हम तक नहीं कर पाते हैं तथा कभी-कभी आवश्यकता से अधिक ऊर्जा हो जाती है। मनुष्य किसी भी ज्योतिषज्ञ के पास जाते हैं तथा वह मनुष्य की ग्रह दशा व जन्मकुंडली देखकर उसको पांच, सात या नौ रŸाी का रत्न पहनने की सलाह दे देता है लेकिन कभी उसको पहनने के बाद भी मनुष्य कोई सकारात्मक प्रभाव महसूस नहीं कर पाता है या बहुत कम महसूस कर पाता है। इसका मुख्य कारण है कि आजकल के रत्नों की कटाई सही प्रकार से न होने के कारण 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह नहीं हो पाना या उस रत्न की ऊर्जा की मात्रा हमारी शारीरिक ऊर्जा के अनुरूप न होना। ज्योतिषज्ञ आज भी मनुष्य को उसके शारीरिक वजन के अनुसार रत्न धारण करवाते हैं जिसका प्रभाव कभी-कभी ठीक रहता है, कभी इसका प्रभाव मनुष्य महसूस नहीं कर पाता या कभी आवश्यकता से अधिक ऊर्जा होने पर उसको मानसिक परेशानी उत्पन्न होती है। आजकल सात या नौ रŸाी का रत्न धारण करना उपयुक्त नहीं है इसका कारण यह है कि जब कई सौ वर्ष पहले ज्योतिष शास्त्र लिखा गया था तब मनुष्य की आयु 100 से 200 वर्ष तक होती थी तथा मनुष्य प्राकृतिक वातावरण में रहता था, ताजी फल-सब्जियां ग्रहण करता था तथा उसका ऊर्जा क्षेत्र 10 मीटर तक होता था। उस समय ज्योतिषज्ञ उसके वजन के अनुसार उसको रत्न पहनाते थे तथा उस समय में रत्न की कटाई भी इस प्रकार होती थी कि उसमें 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा होती थी। तब मनुष्य उसको धारण करता था तथा उसके प्रभाव को भी महसूस करता था। परंतु आजकल के मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र 2.5 से 3 मीटर तक ही सीमित हो गया है। इसका कारण है हमारे आस-पास का वातावरण जिसे हम अपनी आधुनिकता की दौड़ में खत्म करते जा रहे हैं। नकारात्मक ऊर्जाएं जैसे जियोपैथिक स्ट्रेस, नेगेटिव अल्ट्रा वायलेट तथा नेगेटिव इन्फ्रारेड की कंपनशक्तियां मनुष्य को शारीरिक व मानसिक रूप से अस्वस्थ बना रही हैं। टी.वी., कम्प्यूटर व मोबाइल फोन का प्रयोग बहुत ज्यादा बढ़ गया है। हर जगह हायर टेंशन वायर जा रही है। इन सबसे मनुष्यों के स्वास्थ्य पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ रहा है। मनुष्य चारों तरफ से परेशान है इसके लिए हमें मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र इतना बढ़ाना पड़ेगा जिससे वह अपने आपको इन सबसे सुरक्षित रख सके। हम कोई भी रत्न या रुद्राक्ष पहनकर ऊर्जा क्षेत्र को नहीं बढ़ा सकतेहैं क्योंकि हर रत्न या रुद्राक्ष की एक अपनी कंपनशक्ति होती है। इसी प्रकार हर मनुष्य की भी एक अपनी कंपनशक्ति होती है यदि उसमें तालमेल न हो, तो सही परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। हम सभी किसी न किसी माध्यम से रत्न धारण करते हैं। जबकि कुछ लोग इनके प्रभाव को महसूस भी करते हैं कुछ लोग इनके कुप्रभावों को भी महसूस करते हैं तथा अधिकतर पहनने के बाद भूल जाते हैं। रत्न ऊर्जा का स्रोत है तथा यह रत्न आपको तभी लाभ देगा जब इसका चुनाव सही हो। उसकी आंतरिक संरचना आपकी शारीरिक संरचना के अनुरूप हो तथा उससे मिलने वाली ऊर्जा आपके अनुकूल हो, जैसे किसी दवाई का सही असर तभी देख सकते हैं जब वह सही जांच कराने के बाद ली जाये अन्यथा या तो वह बेअसर होगी या दुष्प्रभाव करेगी। रत्नों मंे तथा पत्थरों में स्त्री पत्थर और पुरुष पत्थर दो प्रकार के पत्थर होते हैं। प्राचीन समय के शिल्पकार तथा रत्नों की कटाई करने वालों को इसकी पहचान होती थी। यदि हम मां की मूर्ति पुरुष पत्थर में बना दें तो वह प्रतिमा हमंे 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा प्रदान नहीं करेगी। ऐसे मंदिर वीरान हो जाते हैं, मिस्र के पिरामिड को बनाते समय एक स्त्री पत्थर तथा एक पुरुष पत्थर का प्रयोग किया गया है इसलिए वह इतने वर्षों से बिना सीमेंट आदि के आज भी खड़ा है। इसी प्रकार इस बात की भी जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है कि आप जो रत्न धारण कर रहे हैं वह आपको 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह प्रदान करेगा। यूनीवर्सल थर्मो-स्कैनर की सहायता से हम आपको यह बता सकते हैं कि किस मनुष्य के अंदर कौनसे रत्न या ग्रह की कंपनशक्ति की कमी है तथा उसकी शारीरिक संरचना के अनुरूप उसको 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला कौन सा रत्न धारण करना चाहिए तथा रत्नों में कितनी सकारात्मक ऊर्जा है, वह आपके अनुरूप है या नहीं- उसको पहनने के बाद आपके ऊर्जा क्षेत्र में कितनी वृद्धि हुई, इस सबकी जानकारी हम यूनीवर्सल थर्मो स्कैनर की सहायता से कर सकते हैं।