शंखों की उत्पत्ति और महिमा प्रेम प्रकाश ‘विद्रोही’ सफलता व उन्नति की प्राप्ति हेतु शंख का विशेष महत्व है। प्राचीन ऋषि मुनियों ने आध्यात्मिक साधना में शंख को विशेष महत्व दिया है। सब देवालयों में शंख द्वारा भगवान का पूजन कर उसके जल के छींटे भक्तों को इसीलिए दिए जाते हैं कि उन्हें भगवत कृपा, मोक्ष और आरोग्य की प्राप्ति हो और उनकी मनोकामनाएं पूरी हों। शंखों की उत्पत्ति: शास्त्रों के अनुसार शंखों की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई। पांच जन्य शंख समुद्र मंथन से निकला था जिसे भगवान विष्णु ने अत्यंत उपयोगी जानकर स्वयं धारण कर लिया। कथा है कि दुर्वासा ऋषि ने कंुती को शंख देकर कहा था कि इसका पूजन करने से वांछित फल की प्राप्ति होगी। कुंती ने सूर्य भगवान का आह्वान किया जिससे सूर्य देव प्रकट हुए। फिर कुंती ने उनसे उन्हीं के समान तेजस्वी पुत्र मांगा। वह अविवाहित थी, परंतु शंख की कृपा से उसे कर्ण जैसे वीर व दानी पुत्र की प्राप्ति हुई। तात्पर्य यह कि शंख संतान हीन को संतान, निर्धन को धन और मोक्षार्थी को मोक्ष देने के साथ-साथ साधक की अन्य सभी कामनाएं भी पूरी कर सकता है। अतः हर व्यक्ति को अपने पूजा स्थल पर इसकी स्थापना करनी चाहिए। शंखों की प्राप्ति: शंख समुद्रों में पाए जाते हैं। समुद्रों में जब ज्वार भाटे आते हैं तो कुछ शंख, सीप आदि किनारे छोड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त गोताखोर गोता लगाकर उŸाम श्रेणी के शंख निकालते हैं। समुद्रों के अतिरिक्त कुछ शंख गंगा और उस जैसी अन्य बड़ी नदियों में भी पाए जाते हैं। शंख विभिन्न आकारों के होते हैं। पूजा अनुष्ठानों के अतिरिक्त आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में विभिन्न रोगों के उपचार में इनकी भस्म का उपयोग किया जाता है। पता: ज्योतिष अनुसंधान केंद्र मोहल्ला-बोहरान, पो.-राजगढ़, अलवर (राजस्थान) पिन-301408 प्रेम प्रकाश ‘विद्रोही’ शंखों के भेद: शंख के पांच प्रमुख भेद हैं - पूजा शंख, दक्षिणावर्ती शंख, मोती शंख, गणेश शंख और कछुआ शंख। दोषमुक्त शंख मूल्यवान होते हैं। इन्हें विश्वसनीय प्रतिष्ठानों से ही खरीदना चाहिए और खरीदते समय यथासंभव सावधानी बरतनी चाहिए। शंखों के विविध प्रयोग: पूजा अनुष्ठान तथा अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर शंखनाद किया जाता है। शंखनाद से आसपास के हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इस बात को विद्वानों ने प्रयोग करके सिद्ध कर दिया है। अक्सर देखा गया है कि नित्य शंखनाद करने वालों का स्वास्थ्य उŸाम रहता है। शंख में रखा पानी हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। यही कारण है कि मंदिरों में पुजारीगण भक्तों पर शंख से जल छिड़कते हैं व उसी को चरणामृत स्वरूप भक्तों में वितरित करते हैं। गणेश शंख की आकृति भगवान गणेश के सदृश होती है। पूजन में इसके प्रयोग से अभीष्ट की सिद्धि होती है। वांछित फल की प्राप्ति के लिए किसी शुभ मुहूर्त में चैकी या पट्टे पर चांदी, ताम्र या सोने के पात्र में स्वास्तिक पर श्री गणेश शंख को विधिपूर्वक स्थापित कर भगवान गणेश और शंख का षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। संतान प्राप्ति के इच्छुक साधकों को निम्नलिखित गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। संतानप्रद गणपति स्तोत्र: नमोऽस्तु गणनाथ सिद्धि युताय च। सर्वप्रदाय देवाय पुत्र-वृद्धि प्रदाय च।। गुरु दराय गुरुवे गोप्त्रे सुह्यसितायते। गोप्याय गोपिताशेष भुवनाय चिदात्मने।। विश्वमूलाय मिव्याय विश्व सृष्टि कराते। नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिने।। एक दतं ाय शुद्धाय सुमुरवाय नमा े नमः। पय्र त्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने।। शरणं भव देवेश संतति सुदृढ़ा कुरु। भूमिष्यंति च ये पुत्रा मत्कुलेगणनायक।। ते सर्वेतव पूजार्थ निरताः स्युर्वरो मतः। पुत्र प्रद मिदं स्तोत्र सर्वसिद्धि प्रदायकम्।। मोती शंख घर के मंदिर में रखकर इसके समक्ष कनकधारा स्तोत्र का नित्य पाठ करने से निर्धन को धन व बेरोजगार को रोजगार की प्राप्ति होती है। शंख वादन का अपना विशेष महत्व है। इसे ध्यान से सुनने पर ¬ का स्वर सुनाई देता है। यह ध्वनि मोक्षप्रदायिनी है। शंदनाद के इन्हीं गुणों के कारण सभी मंदिरों में पूजन के पश्चात शंख बजाया जाता है। एक छोटा शंख, चांदी के चांद और सूरज, तांबे का पैसा तथा चांदी का छोटा महामृत्युजंय यंत्र बच्चे को पहनाने से नजर दोष व बीमाीर से उसकी रक्षा होती है। शीघ्र विवाह हेतु गणेश श्ंख का पूजन कर निम्नलिखित मंत्र का सवा लाख जप करना चाहिए। मंत्र: ¬ वक्रतुण्डै दंष्ट्राये क्लीं ींीं श्री गं गणपतेश्वर वरद सर्वोजन मे वशमानय स्वाहा। विद्वानों से शंख की पहचान कराकर उसकी स्थापना करनी चाहिए। स्थापना के पूर्व इष्टदेव की पूजा करनी चाहिए। फिर शंख का पंचगव्य तथा पंचामृत से संस्कार तथा पूजा कर ¬ शं शंखाय नमः मंत्र का एक माला जप करना चाहिए। इस पूजा से वांछित फल की प्राप्ति होती है।