अग्नि तत्व राशि एकादश भाव में सूय आचार्य किशोर शास्त्रों में सूर्य को पाप ग्रह कहा गया है इसलिए उपचय स्थान उसके लिए फलदायी होता है। उपचय स्थानों का सबसे महत्वपूर्ण स्थान एकादश भाव है। इस भाव में बैठे सभी ग्रह कुछ न कुछ शुभ फल देते ही हैं और पाप ग्रह इसमें अत्यधिक लाभ देते हैं। यदि सूर्य कारक होकर एकादश भाव में हो तो सोने पर सुहागा। लग्न केंद्र और त्रिकोण का स्वामी होकर वह स्वयं तो बलवान होता ही है, उसके साथ जो ग्रह रहता है, यदि वह अस्त न हो, तो वह भी बली हो जाता है। एकादश भाव से विशेषकर लाभ देखा जाता है, इसलिए अश्व, हाथी, वस्त्र लाभ, आयु, कन्या, मित्र आदि का भी विचार किया जाता है। पाश्चात्य ज्योतिष इस भाव से मित्र, प्रेम प्रसंग, उच्च आकांक्षा का विचार भी करते हैं। यदि एकादश भाव में सूर्य बलवान हो, तो जातक धन संपत्ति तो पाता है, किंतु साथ ही विपत्ति भी आती है। इसलिए तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में सूर्य, राहु या शनि हो, तो शिशु का अरिष्ट खंडन होता है। इस स्थान में सूर्य के होने से राज सत्ता में या उच्च सरकारी पद पर कार्य करने वाले, शक्तिशाली एवं धनी व्यक्ति से मित्रता होती है। भाग्य एवं कर्म स्थान के बल से भी लाभ मिलता है। अग्नि तत्व मेष राशि एकादश भाव में सूर्य अग्नि तत्व मेष राशि में सूर्य के होने से विशेषकर बड़े भाइयों को समाज में उच्च स्थान एवं यश, प्रसिद्धि मिलती है। जातक के मित्र भी उच्च पदस्थ होते हैं। जातक बुद्धिमान, चतुर और साहसी होता है, परंतु कम संतान वाला होता है। वह भोग-विलास तथा आडंबर प्रिय और तानाशाही प्रवृत्ति का होता है। यदि सूर्य के साथ चंद्र हो, तो जातक धनी, कृषि और धातुओं से धन कमाने वाला होता है। किंतु वह माता और कन्या के कारण चिंतित रहता है। यदि सूर्य मंगल के साथ हो, तो भाइयों से नुकसान होता है। जातक की प्रथम संतान का नाश हो सकता है। उसे प्रतियोगिता में कम कोशिश से भी विजय मिलती है। यदि सूर्य के साथ बुध हो, तो जातक बुद्धिमान, कार्यकुशल कर्मशील प्रचुर धन कमाने वाला और बंधु प्रिय होता है। यदि सूर्य के साथ गुरु हो तो जातक को उत्तम गुरु मिलता है। शत्रु भाव से छठा भाव होने के कारण स्वास्थ्य प्रतिकूल होता है, किंतु कार्य क्षेत्र से धन की आमदनी और गुरु, शास्त्री, ज्ञानी आदि व्यक्तियों से संसर्ग होता है। यदि शुक्र के साथ सूर्य हो, तो जातक भाग्यहीन, खर्चीला तथा विलासप्रिय होता है, उसे स्त्री से कष्ट मिलता है, परंतु उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। शनि का संबंध हो, तो जातक भाग्यहीन और अल्पायु होता है तथा उसका स्वास्थ्य प्रतिकूल होता है। प्रस्तुत कुंडली में मेष राशि में उच्च का सूर्य अग्नि तत्व राशि में है। लग्न में मंगल अग्नि तत्व ग्रह होकर स्थित है और अग्नि तत्व राशि में चंद्र पर मंगल की दृष्टि है अर्थात सूर्य, चंद्र और मंगल अग्नि तत्व से संबंधित हैं। इसलिए जातक क्रोधी, घमंडी, शूरवीर है। किंतु, वहीं वह झगड़ालू प्रवृत्ति का और बदले की भावना वाला है। फिर भी, उसे कई राजयोग भी मिले। सूर्य, गुरु और शुक्र उच्च राशि में हैं। बुध, मंगल तथा लग्न एकादश का संबंध और चंद्र-गुरु का परिवर्तन योग है। इन सारे योगों ने पत्नी सुख भी दिया। गुरु राहु के साथ गुरु चांडाल योग में दोषी है। क्रूर ग्रह मंगल लग्न में लग्नेश बुध, सूर्य के साथ एकादश भाव में सूर्य बुधादि योग का लाभ मिला। जन्म के समय केतु की महादशा जून 1948 तक रही, किंतु केतु के लग्न से अष्टम में होने के कारण स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहा। 1948 से 1968 तक उच्च के शुक्र के दशम भाव में मालव्य योग में होने के कारण पंचमहापुरुष योग का लाभ मिला। छात्र जीवन से ही राजनीति में प्रवेश हुआ। 1968 से 974 तक सूर्य की महादशा में संजय गांधी के साथ मित्रता हुई और युवा कांग्रेस के नेता बने। संजय गांधी के साथ उन्हीं की जैसी प्रवृत्ति हुई। लग्न के मंगल ने हर प्रकार के कुकर्म करने में सहायता की। सन् 1974 से 1984 तक चंद्र की महादशा केंद्र में मंत्री रहे, परंतु जब मंगल की महादशा आई तब राज और शक्ति का ह्रास हुआ। लग्न में अकारक ग्रह मंगल के कारण उन्होंने अपना नाश किया, उन्हें शत्रुओं से लड़ना पड़ा और आज तक कोई सफलता नहीं मिली। अग्नि तत्व सिंह राशि में एकादश भाव में यदि सूर्य हो, तो जातक की अपनी आय का धन स्थिर होता है, क्योंकि सिंह राशि स्थिर राशि है। ऐसे जातक को राजा या सरकार से धन का लाभ होता है, वह राजा, जमींदार, मंत्री और धनी लोगों से सहयोग या मदद लेकर बड़ा आदमी बन जाता है। उसके पुत्र उच्च राज काज से अपने प्रभुत्व का विस्तार करते हैं। जातक समाज में लोकप्रिय होता है। उसका हृदय विशाल होता है और उसका जन्म उच्च कुल में होता है। सूर्य के साथ यदि चंद्र हो तो कर्म जीवन में भाग्य का साथ मिलता है। कर्म में विशेष ध्यान न देने पर भी उसे लाभ प्राप्त होता है। यदि सूर्य के साथ मंगल हो तो प्रचुर भू-संपत्ति की प्राप्ति होती है। मंगल की इस स्थिति के कारण उसे बदमाश जन डर के मारे धन देते रहते हैं। यदि सूर्य के साथ बुध हो, तो सूर्य बुधादि राजयोग होता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति धनवान होता है और सम्मान पाता है। उच्च पदस्थ उसके अधीन होते हैं। उसे विभिन्न स्रोतों से धन प्राप्ति होती रहती है। किंतु कभी-कभी वह अपने बराबर के आदमी के साथ गुप्त कर्म करने के लिए बाध्य हो जाता है। यदि सूर्य के साथ गुरु हो तो जातक ब्राह्मण, पंडित और पुरोहित के धर्म कार्य से नाम प्राप्त करता है। उसके घर में नाना प्रकार के शास्त्रों का पाठ होता रहता है। यदि सूर्य के साथ शुक्र हो तो उसकी स्त्री बीमार रहती है और उसे स्त्री का पूर्ण सुख नहीं मिल पाता। यदि सूर्य के साथ शनि हो तो जातक नीच स्वभाव का होता है, उसकी बुद्धि हीन होती है और वह अक्सर बीमार रहता है। जातक के विवाह में विलंब होता है। बड़े लोगों से उसकी शत्रुता रहती है। उसके बच्चों का स्वभाव भी ठीक नहीं रहता। अग्नि तत्व सिंह राशि में सूर्य एवं मंगल दोनों अग्नि तत्व ग्रह भी हैं। इसलिए एकादश भाव में जातक को पिता की संपत्ति मिलती है, क्योंकि दशम भाव से दृष्ट एकादश भाव पिता के धन का भाव होता है और सूर्य पिता का कारक है। धनेश मंगल लाभ स्थान में सूर्य के साथ है इसलिए पिता से अत्यधिक धन मिल रहा है। लाभ स्थान में हर ग्रह कुछ न कुछ लाभ दिलाता है। इस जातक की कुंडली में सूर्य स्वयं अपनी ही राशि में अपनी मूल त्रिकोण राशि में लाभ दिला रहा है। इसके अलावा लग्नेश शुक्र भाग्य स्थान में, भाग्येश बुध कर्म स्थान में और लाभेश सूर्य लाभ स्थान में स्थित हैं। भाव 9, 10 और 11 में ग्रहों के होने के कारण जातक को बल मिल रहा है। सूर्य और मंगल की भाव 5 पर, भाग्येश बुध की सुख भाव 4 पर तथा योगकारक ग्रह शनि की भाव 10 पर दृष्टि है। तात्पर्य यह कि यहां पर एकादश भाव बलवान है और अग्नि तत्व राशि में सूर्य चंद्र से भाग्य स्थान में तुला लग्न के लिए सूर्य बाधक होने के बावजूद अपने ही घर में बलवान है। इसलिए जातक अत्यधिक धनवान है। यह स्त्री जातक एक डाॅक्टर है, परंतु अपने व्यवसाय को छोड़कर राजनीति में सक्रिय है, क्योंकि पिता राजनीति में है। उसने पिता से लाभ लेकर उच्च उच्च पद प्राप्त कर लिया है। एकादश भाव को, विशेष करके सूर्य के लिए, पिता से लाभ निश्चित रूप से दिलाता है। अग्नि तत्व राशि, सिंह राशि में सूर्य, बुध एवं गुरु है। यह एक पुरुष की कुंडली है। तुला लग्न के लिए सूर्य के बाधक होने के बावजूद जातक सुखी जीवन बिता रहे हैं क्योंकि कुंडली भावेश बुध लाभ स्थान में, कर्मेश चंद्र कर्म स्थान से भाग्य स्थान में और गुरु लाभ स्थान में साथ-साथ हैं। इस लग्न के लिए योगकारक ग्रह शनि लाभ स्थान को सूर्य बुध और गुरु को देख रहे हैं। कर्म स्थान में उद्दंड राहु कर्क राशि म ाुदशम भाव में बलवान है। इसलिए जातक का जन्म एक राजा के परिवार में हुआ है, क्योंकि जिस जातक की जन्मकुंडली में भाव 9, 10 और 11 बलवान हों, उसका जन्म उच्च कुल में होता है। अग्नि तत्व सिंह राशि में सूर्य गुरु और बुध के साथ भाव 5 को और पंचमेश शनि एकादश भाव को देख रहा है। दशम भाव में राहु और चतुर्थ भाव में केतु के केंद्र स्थान में बलवान होने से जातक बिना कर्म किए लाभ पाता है। विशेष रूप से तुला लग्न के लिए सूर्य से एकादश भाव में प्राकृतिक पाप ग्रह शनि एवं योगकारक ग्रह शनि के लग्न से भाग्य स्थान में बलवान होने और वर्तमान समय में दशम राहु की महादशा के कारण, जो 2022 तक चलेगी, उनका वर्तमान समय अत्यंत शुभ है और वह अत्यधिक सुख का भोग कर रहे हैं। राहु शनि जैसा फल देता है। प्राकृतिक पाप ग्रह शनि, राहु और सूर्य के भाव 9, 10, 11 में होने के कारण 2022 तक राहु की महादशा में जातक राजा जैसे सुख का भोग करते रहेंगे। तात्पर्य यह कि यदि पाप ग्रह पाप स्थान में बलवान हो, जैसे कि इस कुंडली में सूर्य बलवान है, और इसी तरह राहु, शनि भी केंद्र, त्रिकोण में बलवान है, तभी इस कलियुग में प्राकृतिक पाप ग्रह बली होता है और अग्नि तत्व राशि में अग्नि तत्व सूर्य का मित्र बुध और गुरु साथ में हैं। नवांश कुंडली में सूर्य बुध के घर में है और गुरु, राहु तथा केतु वर्गोत्तम में हंै इसलिए जातक अत्यधिक शक्तिशाली है। इस कुंडली में शुक्र नीच का और मंगल भाव 12 में अशुभ स्थान में है, परंतु नवांश में मंगल अपनी मूल त्रिकोण राशि मेष में और शुक्र उच्च राशि में बलवान है। इसी प्रकार चंद्र कर्मेश होकर मित्र गुरु की राशि में बलवान है। इन सारे योगों के कारण जातक का जीवन समस्यामुक्त है।