तंत्र की शिक्षा-भूमि : तारा पीठ
तंत्र की शिक्षा-भूमि : तारा पीठ

तंत्र की शिक्षा-भूमि : तारा पीठ  

व्यूस : 11862 | अकतूबर 2012
तंत्र की शिक्षा-भूमिः तारा पीठ डाॅ. अशोक शर्मा तंत्र शास्त्रों के महत्वपूर्ण ग्रंथों में एक ग्रंथ ‘‘मुण्ड माला तन्त्रम्’’ के प्रथम पटल के छठे एवं सातवें श्लोक में भगवान शिव ने दस महाविद्या के विषय में कहा है कि काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, धूमावती, मातंगी और कमला, ये दश महाविद्या सिद्ध विद्या कही गई है। इन महाविद्याओं के मूल स्थानों का संबंध शक्ति-पीठों से भी है एवं सभी पूजा, उपासना, हवन आदि कार्यों में दशों महाविद्याओं का समान महत्व है। तंत्र साधना के लिए सर्वाधिक सिद्धि-दायक स्थान कामरूप क्षेत्र के नील पर्वत पर स्थित माँ कामाख्या का पवित्र धाम है जहां तंत्र-साधना में महाविद्या षोडशी कामाख्या का प्राकृतिक योगदान मानव मस्तिष्क की सोच तथा समझ से परे है। तंत्र-साधना का प्रथम सोपान कुमारी पूजन विधान इसी स्थान पर किया जाता है। जो साधक तंत्र साधना में प्रवेश करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इस स्थान पर कुमारी पूजन अनिवार्य रूप से करना होता है। अन्य साधनाओं में अम्बूवाची योग में यहां सर्वाधिक सिद्धिदायी साधना विश्व प्रसिद्ध है। तंत्र साधना में शीघ्र सिद्धि-प्राप्ति हेतु श्मशान में साधना की जाती है। इसके लिए महाश्मशान ही प्रस्तर हैं। जाग्रत श्मशान में साधना भी शीघ्र फलदायी कही गई है। चक्रतीर्थ श्मशान, उज्जैन तथा मणिकर्णिका घाट जाग्रत श्मशान हैं जबकि बंगाल के वीरभूमि जिले में रामपुराहाट के समीप तारापीठ का श्मशान महाश्मशान कहालाता है। तंत्र साधना की पराकाष्ठा इसी श्मशान की साधना में निहित है। मां तारा को विपदुद्धारिणी तारा- विपदुद्धारिणी मां तारा, तारिणी मां तारा कहा जाता है। सभी आपदाओं से, विपदाओं से तारने वाली मां तारा मृत्यु के पश्चात भी तारने वाली शक्ति मातंगी के चरण कमल इस स्थान पर महा श्मशान में प्रतिष्ठित हंै जहां साधना, पूजन, हवन आदि कार्य किया जाता है। महापुरुषों व अवतारों की साधना स्थली: भगवान राम, बुद्ध, महावीर, ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र, देवगुरु बृहस्पति, महर्षि दधीचि जैसे महाऋषियों ने इस स्थान पर साधनाएं कर सिद्धियां प्राप्त की थीं। वामाक्षेपा नामक महान तांत्रिक जिन्हें मां तारा ने स्वयं स्तन पान कराया था वह इस स्थान के प्रथम पूज्य महामानव हंै। तंत्र के षटकर्मों का अध्ययन इसी श्मशान भूमि में साधना करके ही किया जा सकता है। प्रत्येक अमावस्या को यहां मेला जैसा लगता है। सबसे बड़ा मेला और सिद्धि-प्राप्ति का वार्षिक महोत्सव प्रत्येक भाद्रपद माह की अमावस्या पर होता है। इस महापर्व पर, ग्रहण की अमावस्या पर्व पर तथा दीपावली की अमावस्या पर अनुभवी और विशिष्ट तांत्रिकगण अपने शिष्यों को यहां गुप्त तंत्र सिद्धियां-प्राप्ति हेतु गुह्यतम साधनाएं सम्पन्न कराते हैं। इस स्थान में अनेक तंत्र साधिकाएं जिन्हें भैरवियां कहा जाता है, निवास करती हैं तथा अनेक तंत्र साधकों की साधनाओं में सहायता करती हंै। इस स्थान पर अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग साधनों से हवन सामग्रियों से विभिन्न विशेष मुहूर्तों में हवन किया जाता है। सर्वमनोकामनाओं की पूर्ति, भूमि, भवन, वाहन, सुख, स्मृति, ऋणनाश, क्लेश नाश, दाम्पत्य, संतान, परिवार, कुटुम्ब आदि के सुख के लिए शत्रु नाश, वाद-विवाद, चुनाव, प्रतियोगिताओं में, परीक्षा में विजय व सफलता के लिए आरोग्य-प्राप्ति, ग्रह शांति, रोग नाश तथा शांति आदि की प्राप्ति सहित अनेक कार्यों हेतु तंत्र विधि से शीघ्र फलदायी हवन किया जाता है। कलियुग में तंत्र साधना शीघ्र फलदायी होती है वेदों के ये शब्द इसी स्थान पर सत्य अवश्य सिद्ध होते हैं। ऐसा इस स्थान के साधकों का मानना है। मां तारा त्वरित फल देने वाली आशुसिद्धिदायी दयामयी माता है।



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