धनागमन का उपाय
धनागमन का उपाय

धनागमन का उपाय  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 704 | नवेम्बर 2002

धनागमन का मुख्य उपाय लक्ष्मी-कुबेर का स्तोत्र माना गया है। कुबेर देवताओं के कोषाधिपति हैं। आर्थिक उन्नति के लिए इनकी उपासना की जाती है। कुबेर यंत्र को पूजा के स्थान में रखने का बहुत महत्व है।

विधि

दीपावली से पूर्व कुबेर पूजा (धन तेरस) के दिन, अथवा आश्विन माह कृष्ण अष्टमी को इसकी पूजा-उपासना श्रेष्ठ मानी गयी है। लाल वस्त्र पर कुबेर एवं लक्ष्मी यंत्र (धातु का बना) को प्रतिष्ठित कर के, लाल पुष्प, अष्ट गंध, अनार, कमल गट्टा, कमल पुष्प, सिंदूर आदि से पूजन कर के, कमल गट्टे की माला पर कुबेर के मंत्रों का जप करें। जप के पश्चात कनकधारा स्तोत्र का पाठ, लक्ष्मी-गायत्री का पाठ करना शुभ फलों की वृद्धि करता है। पाठ के पश्चात् माला को गले में धारण कर लें।

 

मंत्र: ओऽम् यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्यादि पतये धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।

 

विष्णु-लक्ष्मी का पूजन-अर्चन कर के, तांबे के बर्तन में शहद का शर्बत बना कर, ब्राह्मण को दान कर के अधिक लाभ पाया जा सकता है। हजार बेल पत्र को धो कर, विष्णु एवं लक्ष्मी के नामाक्षरों में नमः लगा कर, उन्हें अर्पण करना लक्ष्मी की तुष्टि का उपाय है। धन संग्रह: कई बार आय तो होती है, परंतु उसका अपव्यय होता रहता है। न चाहने पर भी, जातक अनेक तरह से खर्चों में पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में निम्नलिखित उपाय सटीक माना गया है:

दीपावली, या किसी भी माह के सर्वार्थ सिद्धि योग, चैत्र शुक्ल पंचमी, अक्षय तृतीया, गुरु पुष्य, भीष्मा एकादशी में से किसी एक दिन जातक, सुबह स्नानादि कर के, मां भगवती के श्री सूक्त का पाठ करें। लक्ष्मी की प्रतिमा को लाल अनार के दाने का भोग लगा कर, आरती आदि कर के, घर से उत्तर दिशा की ओर से प्रस्थान कर, पौधशाला, अथवा अन्यत्र से बेल का छोटा पेड़ घर लाएं।

इस बेल के पेड़ को शुद्ध मिट्टी के नये गमले में, लक्ष्मी का सूक्त पढ़ते हुए, लगा दें। इस बेल को घर के उत्तर दिशा में साफ-सुथरे स्थान पर रखें तथा प्रत्येक शाम को इसके पास शुद्ध देशी घी का दीपक जलाएं। जब तक इस बेल की पूजा होती रहेगी, तब तक जातक के घर में लक्ष्मी की वृद्धि होगी एवं अपव्यय बंद हो जाएगा।

कर्ज से छुटकारा

कर्ज़ पाने के लिए कुबेर देव तथा कर्ज चुकाने के लिए दक्षिणावर्ती गणेश की उपासना की जाती है। यदि कर्ज चुकाने की रकम इतनी अधिक हो जाए कि जातक उसे चुकाने में असमर्थ हो, तो ऐसे जातकों को ‘गजेंद्रमोक्ष’ नामक स्तोत्र का पाठ करने से अधिक लाभ होता है।


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विधि:

नारद पुराण के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को, या दीपावली के दिन, विधिपूर्वक दक्षिणावर्ती गणेश (जिस गणेश की सूंड दाहिनी ओर घुमावदार हो) की मूर्ति, अथवा तस्वीर को चांदी के सिंहासन पर स्थापित कर के ‘गणपति’ यंत्र को उसके साथ स्थापित कर के, यंत्र के दाहिनी ओर ‘कुबेर यंत्र’ को स्थापित करें। कर्ज संबंधी कार्य के निमित्त कुबेर मंत्र, अथवा श्री गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का दस हजार की संख्या में जप करें। जप के पश्चात हवन, तर्पण, मार्जन आदि करना आवश्यक अंग माना गया है।

चोरों से धन की रक्षा

बार-बार चोरों द्वारा धन चुराने, या व्यापार में बार-बार हानि होने की स्थिति से निपटने के लिए विष्णु के संग रहने वाली लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए।

विधि:

ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी (भीष्मा एकादशी) या दीपावली के दिन, गंगादि पुण्य स्थल में, अथवा गंगा जल मिश्रित जल से घर में स्नान कर के, कसौटी पत्थर, अथवा गंडकी नदी से प्राप्त शालिग्राम को श्वेत कमल एवं लक्ष्मी यंत्र को लाल कमल के पुष्प पर स्थापित कर के, पुरुष सूक्त, लक्ष्मी सूक्त को आपस में संपुटित कर पाठ करना अति लाभकारी है। कमल गट्टे को घी में डुबो कर ज्येष्ठा लक्ष्मी के मंत्रों से यथाविधि हवन करने से चिरकाल तक लक्ष्मी का निवास होता है तथा चोरों से रक्षा होती है।

 

मंत्र: क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम। अभूतिंसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात्।।

 

बुरी आत्माओं से धन की रक्षा

जहां भी धन रखने का स्थान होता है, वहां लाल कपड़े में, सिंदूर के साथ, कुबेर, लक्ष्मी, गणेश आदि का यंत्र बांध कर रखना चाहिए। धन के स्थान पर अन्य सामग्री रखने से धन हानि, अथवा अधिक धन खर्च आदि के साथ-साथ अन्य कई प्रकार की हानि की शंकाएं बनी रहती हैं।

विधि

सूर्य ग्रहण, अथवा चंद्र ग्रहण को, अथवा दीपावली की रात्रि को (अर्धरात्रि) धन रखने वाले स्थान पर डाकिनी का आवाहन कर के सूखा मेवा, लाल चंदन, नारियल का गोला, थोड़ी सी सरसों (पीली) लाल पुष्प आदि को लाल कपड़े में बांध कर, डाकिनी के 108 मंत्र पढ़ कर, जल से अभिमंत्रित कर के धन संग्रह के स्थान पर रखने से जातक के धन पर बुरी आत्माओं का कुप्रभाव नहीं पड़ता है।

 

मंत्र:. ओऽम् क्रीं क्रीं क्रीं क्लीं ही ऐं डाकिनी हुँ हुँ हुँ फट् स्वाहा।


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