विश्व स्वास्थ्य संगठन ;ॅभ्व्द्ध के अनुसार लगभग 26 प्रतिशत महिलाओं और 12 प्रतिशत पुरूषों
में डिप्रेशन रोग पाया जाता है। इसमें आयु, शिक्षा स्तर, आर्थिक स्थिति या वैवाहिक स्तर का कोई प्रभाव
नहीं पाया जाता। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति दुखी,निराश, स्वयं को अपराधी मानता है। उसमें किसी भी
समय गुस्सा व्याप्त हो सकता है, स्मरण शक्ति कम हो जाती है, निर्णयक्षमता कम हो जाती है, एकाकी या
अकेलापन अच्छा लगने लगता है, भूख की कमी व वजन में कमी देखी जा सकती है।
कुछ वर्ष पूर्व एक पूंजी पति महिला ज्योतिषीय सलाह के लिए बार-बार आग्रह किया करती थी, उसे शंका थी की
उसका पति कार्य के बहाने अन्यत्र कहीं जाता है। किसी भी तरह व अपने पति को पूर्णतः नियंत्रण में रखना चाहती थी।
इसके लिए वह देर रात्रि भी फोन कर आग्रह करती थी कि कोई उपाय बताएं, जिससे उसके पति कहीं न जायें। अच्छा
संतान सुख, धन व जीवन केसभी प्रकार के ऐशो-आराम होने के बावजूद उसे जीवन में किसी प्रकार की संतुष्टी नहीं
थी। पारिवारिक जीवन में शक और संदेह ने उसे तनाव ग्रस्त कर दिया था। ऐसी स्थिति में उसे सलाह और मार्गदर्शन
के माध्यम से तनावमुक्त करने की कोशिश की गई लेकिन उसके मन में पति के प्रति संदेह घर कर गया था। वह
स्वीकार करना ही नहीं चाहती थी कि उसे मात्र संदेह है। इससे अधिक कुछ भी नहीं। कुछ मंत्र और उपाय दिए गए,
पर उसने न मंत्र जाप किया और न ही उपाय किए। कुछ समय पश्चात खबर आई की उसने आत्म हत्या जैसा गलत
कदम उठाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली है। यह एक उदाहरण है कि तनाव किसी कमी के कारण नहीं अपितु एक मानसिक स्थिति के कारण जन्म लेता है। जिसे
यदि सुधारा नहीं गया तो वह कुछ भी कर सकता है। ऐसा व्यक्ति अपनी जिंदगी से लेकर दूसरों की जिंदगी से खेल
सकता है। यहीं नहीं यदि यह स्थिति किसी शक्तिशाली राजा की हो जाए तो युद्ध भी करा सकता है।
चिकित्सा क्षेत्र में डिप्रेशन
चिकित्सा क्षेत्र में 4 प्रकार के डिप्रेशन बताये गये हैं
- 1. डिप्रेशन: व्यक्ति निराश रहता है
- 2. बायोपोलर डिसोर्डर: बायोपोलर डिसोर्डर में रोगी का मूड अचानक बदल जाता है। कभी भी अधिक उच्च स्तर का और कभी निम्न स्तर पर बदल जाता है। उसके स्वभाव में जल्द बदलाव होते हैं।
- 3. एनक्जायटिक डिसआॅर्डर: व्यर्थ की अधिक चिंता, भय,निराशा करने का स्वभाव
- 4. नशीले पदार्थों का आदि हो जाना: चिकित्सा क्षेत्र में डिप्रेशन को ठीक करने की तीन तरह की पद्धतियां प्रयोग में लायी जाती हैं।
- साइको थैरेपी: इस थैरेपी में काउंसलर आपको सामने बैठाकर बात-चीत के द्वारा रोगी का मार्गदर्शन करता है।
- दवाईयां: इस पद्धति में दवाइयों के द्वारा रोग निदान किया जाता है। लेकिन दवाइयों के अनेक विपरीत प्रभाव होते हैं। अतः केवल आवश्यक स्थिति में ही दवाइयां दी जाती है।
- न्यूरोमोडूलेशन: इसमें बिजली या मैग्नेटिक करंट देकर रोगी का इलाज किया जाता है। चिकित्सा जगत में डिप्रेशन को ठीक करने के लिए इस पद्धति को अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस पद्धति को शाॅक ट्रीटमेंट के नाम से भी जाना जाता है।
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ज्योतिष में डिप्रेशन
ज्योतिष में डिप्रेशन तीन प्रकार का हो सकता है -
पितृ दोष के कारण डिप्रेशन: यह माना गया है कि पूर्वजों का लेखा जोखा संतान को उठाना पड़ता है। जिस प्रकार से
कोई व्यक्ति अपने माता-पिता या बाप-दादा की पूंजी का आनंद लेता है, उसी प्रकार उनके किए हुए कर्म का भुगतान
भी उसे करना होता है। यह पितृ दोष के रूप में कुंडली में दिखाई देता है। चिकित्सा, जगत में डिप्रेशन को वंशानुगत
रोग की संज्ञा दी गई है, जिसमें कि बाप-दादाओं के क्ण् छण् ।ण् कि विसंगति संतान कोभोगनी पड़ती है।
जन्म कुंडली में पितृ दोष पंचम भाव से देखा जाता है। यदि पंचमभाव या पंचमेश राहु या शनि से पीड़ित हो या सूर्य
व चंद्रमा या विश्व स्वास्थ्य संगठन ;ॅभ्व्द्ध के अनुसार लगभग 26 प्रतिशत महिलाओं और 12 प्रतिशत पुरूषों में
डिप्रेशन रोग पाया जाता है। इसमें आयु, शिक्षा स्तर, आर्थिक स्थिति या वैवाहिक स्तर का कोई प्रभाव नहीं पाया
जाता। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति दुखी, निराश, स्वयं को अपराधी मानता है। उसमें किसी भी समय गुस्सा व्याप्त हो
सकता है, स्मरण शक्ति कम हो जाती है, निर्णय क्षमता कम हो जाती है, एकाकी या अकेलापन अच्छा लगने लगता
है, भूख की कमी व वजन में कमी देखी जा सकती है। लग्नेश शनि या राहु से पीड़ित हो तो पितृ दोष होता है। इस
दोष के कारण परिवार में किसी न किसी कारण से कलह रहती है। कन्याओं के विवाह में अड़चन आती है। पुत्र संतान
की कमी रहती है। गंदे सपने दिखाई देते है।
उपाय:
- पितृदोष की शांति हेतु त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, महामृत्युंजय मंत्र जाप एक अच्छा उपाय है।
- पितृदोष की शांति के लिए-पितरों की शांति के लिए पिंडदान कराना अचूक उपाय है।
- श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन पितरों को जल और काले तिल अर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं तथा पितृ दोष दूर होता है।
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जन्म कुंडली में डिप्रेशन: ज्योतिषानुसार व्यक्ति को उनके पूर्व जन्म के कर्म ही फल स्वरूप इस जन्म में प्राप्त होते
हैं। ऐसी स्थिति में चंद्रमा शनि या राहु द्वारा पीड़ित हो या निर्बल हो या अमावस्या का निर्बल चंद्रमा हो या नीच का
चंद्रमा हो या ग्रहणदोष से पीड़ित चंद्रमा हो तो व्यक्ति डिप्रेशन में आ जाता है।
उपाय:
- सोमवार के दिन जल और दूध से भगवान शिवजी की पूजा करने से भी अवसाद रोग का निवारण हो जाता है।
- प्रतिदिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्यदेव को नमस्कार करने पर आत्म विश्वास प्राप्त होता है।
- पशु-पक्षियों को रोटी आदि खिलाने से सभी प्रकार के दोषों का शमन हो जाता है।
- लग्नेश का रत्न धारण करें।
ग्रह गोचर और दशा: इस जन्म के कर्म फल हमें अपने ग्रह गोचर और दशानुसार प्राप्त होते हैं। जब भी शनि की
साढ़ेसाती आती है या अष्टमेश, अष्टम स्थिति में हो और इसकी दशा आतीहै तो मन को भारी पीड़ा रहती है और
इसका भोग हमें अपने कर्मानुसार भोगना पड़ता है। इसीलिए ज्योतिष में शुभ कर्मों और आचरण को प्रमुखता दी गयी
है जिससे कि हमारे बुरे समय में फल अति कष्टदायक न हों।
उपाय:
- शनिवार को तेल छाया दान करें।
- पहनुमान चालीसा या संुदरकांड पढ़ें।
- राहु व शनि के मंत्रों का जाप करें।
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अध्यात्म में डिप्रेशन
अध्यात्म में मनुष्य को जीवन में रंगमंच में पात्र की संज्ञा दी गई है। जिसे केवल यह देखना चाहिए कि उसके चारों
ओर क्या घटित हो रहा है न कि उसमें लिप्त होना चाहिए, ठीक उसी तरह से जैसे किसी पटकथा में चरित्र का अभिनय
करते हुए पात्र। अध्यात्म में मनुष्य न कर्ता है न भोक्ता। उसे वही करना होता है जो परिस्थितियां उससे करवाती हैं
या उसे वही प्राप्त होता है जो विधाता ने उसके लिए लिखा है। यह केवल प्रतीत होता है कि हमने कुछ किया और हमें
उसका फल प्राप्त हुआ। कर्म और फल का गहन संबंध अध्यात्म में कहीं नहीं है। भगवान जिसे जो चाहते हैं उसे वह
बिना किसी कर्म के भी दे सकते हैं।
देखा गया है कि जिनको डिप्रेशन होता है वे अपने संबंधित व्यक्तियों के लिए अति चिंतित रहते हैं और सर्वदा यह सोचते
रहते हैं कि मेरे माता-पिता, भाई-बहन और अन्य संबंधियों को मेरेकारण कितना कष्ट झेलना पड़ रहा है और मैं उनके
लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं। जब यह कुंठा अधिक हो जाती है तो वह आत्महत्या का रूप ले लेती है। एक और भी
सोच होती है कि मेरे माता-पिता और संबंधियों ने मेरे लिए कुछ नहीं किया जबकि मंैने सबके लिए बहुत कुछ किया
या उसने मुझको धोखा दिया या तबाह कर दिया। ऐसे में व्यक्ति दूसरे की जान ले सकता है। अध्यात्म में ये दोनों ही
रूप निरर्थक हैं क्योंकि न कोई कुछ हमारे लिए कर रहा है और न हम किसी के लिए कुछ कर रहे हैं। यह एक जीवन
चक्र है जिसमें कोई न कोई किसी न किसी के लिए कुछ अवश्य करता है और हम भी किसी न किसी के लिए अवश्य
करते हैं, चाहे वह परिवार हो, समाज हो, देश हो या विश्व हो।
उपाय:
- इच्छाओं का दमन करें।
- इच्छा की पूर्ति दूसरी इच्छा की जननी है।
- अपने को कर्ता न मानंे और सेवा भाव से कार्य करें।
- सभी में भगवत रूप का दर्शन करें।
इस प्रकार वैचारिक स्थिति बनाना प्रायः आसान नहीं होता लेकिन यदि इसके लिए बार-बार प्रयास किया जाए तो यह
स्थिति प्राप्तहो सकती है। अध्यात्म से जीवन में हर्षोल्लास के साथ पूर्णता का भाव प्राप्त होता है। ऐसा व्यक्ति कदापि
डिप्रेशन को प्राप्त नहीं होता।
सारांश: डिप्रेशन में चिकित्सीय उपचार निम्न श्रेणी के हैं क्योंकि इनके प्रचार के साथ-साथ अनेक विपरीत प्रभाव है
एवं ये पूर्णतः रोग का निवारण नहीं करते हैं। ज्योतिषीय उपाय मध्यम वर्गीयहै क्योंकि इन उपायों से मनुष्य में विश्वास
उत्पन्न होता है एवं उस विश्वास से मस्तिष्क की ग्रंथियां स्वयं कार्यश्ीाल हो जाती हैं। आध्यात्मिक उपाय उच्च श्रेणी में
आते हैं। यदि सद्गुरु प्राप्त होजाए तो डिप्रेशन तो दूर हो ही जाता है, मन प्रफुल्लित व शरीर ऊर्जावान रहता है एवं
मस्तिष्क की अंर्तगं्रथियां भी पूर्ण रूप सेकार्य करने लग जाती हैं।
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