दीपावली पर्व हिंदु जनमानस के लिए महापर्व है। किंतु इस पर्व की महिमा जितनी कही जाय कम है। माना जाता है कि यह रात्रि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु सर्वोŸाम है। इस पर्व पर लोग नाना प्रकार के पूजा-अनुष्ठान करते हैं तथा वर्ष पर्यंत निर्बाध रूप से धन प्राप्ति की कामना करते हैं।
किंतु कम ही लोग जानते हैं कि अमावस्या की यह काली रात अनेक सिद्धियों की प्राप्ति हेतु एकमात्र मुहूर्Ÿा है। दी पावली की रात्रि में प्रदोष काल से ही पूजन आरंभ हो जाते हैं। प्रदोषकाल के दौरान व पश्चात् पड़ने वाले स्थिर लग्न किसी भी पूजन के आरंभ हेतु सर्वोŸाम हैं। इसी प्रकार मध्य रात्रि में पड़ने वाले स्थिर लग्न सिद्धि प्राप्ति हेतु अत्यंत शुभ मुहूर्Ÿा हैं।
साधक यदि दृढ़ निश्चय के साथ पूर्ण श्रद्धा से उŸाम विधि-विधान द्वारा किसी भी सिद्धि हेतु अग्रसर होता है तो प्रभु कृपा की पूर्ण संभावना बनती है। आइए जानते हैं इसी प्रकार की कुछ सिद्धियां-
यंत्र सिद्धि: माना जाता है कि मंत्र जब तक सिद्ध नहीं होता, अपना पूर्ण फल नहीं देता। दैनिक पूजा में भी सामान्यतः हम अनेक मंत्रों का जप करते हैं। किसी भी दैनिक या कभी-कभी प्रयोग किये जाने वाले मंत्र को दीपावली की मध्य रात्रि स्थिर लग्न में सिद्ध किया जा सकता है।
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तत्पश्चात् सिद्ध मंत्र को दैनिक रूप से मात्र एक माला जप करने पर भी आश्चर्य जनक परिणाम प्राप्त हो जाते हैं। सिद्ध करने के लिए संबंधित देवता की मूर्ति या चित्र के सम्मुख सर्वप्रथम आवाहन करें। फिर अक्षत (चावल) भूमि पर छोड़ते हुए आसन दें। फिर चरण धोने हेतु जल दें। इसके पश्चात, पंचामृत स्नान कराकर शुद्धजल से या गंगाजल से स्नान कराएं। वस्त्र व अवस्त्र प्रदान करें। आवश्यक हो तो यज्ञोपवीत चढ़ायें। पुष्प आदि चढ़ाकर तिलक करें तथा भोग व फल आदि प्रदान करके आचमन हेतु जल दें। धूप-दीप दिखाएं तथा प्रभु से प्रार्थना करें कि मैं अमुक राशि/ नक्षत्र/गोत्र/ नाम का व्यक्ति आज इस दीपावली पर्व पर अमुक मंत्र सिद्धि हेतु जप कर रहा हूं, आप कृपा करें। तत्पश्चात् मंत्र का सवा लाख जप करने का विधान है। उक्त संख्या न करने की स्थिति में 11 हजार या 108 माला जप भी कर सकते हैं। जप के पश्चात् दशांश हवन किया जाता है।
इस प्रकार मंत्र सिद्धि हेतु उपरोक्त पूर्ण विधान है, यदि इस प्रकार कर पाने में असमर्थता महसूस हो तो मात्र 108 माला जप ही कर सकते हैं। हालांकि यह पूर्ण सिद्धि तो नहीं होगी किंतु फिर भी उŸाम परिणामदायी है।
तंत्र सिद्धि: मंत्र सिद्धि की अपेक्ष तंत्र सिद्धि कठिन व जटिल है। बिना गुरु की आज्ञा व उपस्थिति के तंत्र साधना खतरनाक हो सकती है। विशेषतः इस में प्रयुक्त विधान में तामसिक चीजों के उपयोग के कारण सामान्यतः गृहस्थ लोग इसे न करें। तंत्र का प्रयोग मानव कल्याण हेतु करने का संकल्प लेकर ही इस की सिद्धि होती है। कुछ तंत्र सिद्धियों हेतु जंगल, सुनसान जगह, श्मशान आदि स्थलों का चुनाव किया जाता है।
किंतु ध्यान रहे कि दीपावली की रात्रि को की जाने वाली तंत्र सिद्धि की साधना यदि किसी अमानवीय या गलत काम के लिए है, तो यह प्रतिक्रिया के रूप में साधक को शारीरिक क्षति भी पहुंचा सकती है। इसीलिए इसमें योग्य गुरु की उपस्थिति अनिवार्य है। क्योंकि योग्य गुरु कभी भी इस प्रकार की साधनाओं की आज्ञा नहीं देता। तंत्र सिद्धि हेतु माता कामाख्या, पीतांबरा, मां काली, भगवान शिव, माता प्रत्यंगिरा, भैरव जी आदि की साधना की जाती है।
यंत्र सिद्धि: दीपावली की शुभ रात्रि किसी भी प्रकार के यंत्र को सिद्ध करके स्थापित करने हेतु सर्वोŸाम है। पहले से ही स्थापित यंत्र को जो कि सिद्ध न किया हो, इस दिन सिद्ध कर सकते हैं। सिद्धि हेतु यंत्र को शुद्ध सफेद, लाल या पीले वस्त्र पर यंत्रानुसार आसन दें तथा मध्य रात्रि स्थिर लग्न में यंत्र का पूजन मंत्र सिद्धि में बताएं पूजा विधान के अनुसार करें। तत्पश्चात् यंत्र से सम्बन्धित मंत्र का जप भी मंत्र सिद्धि में बताये विधान के अनुसार करें। इस प्रकार पूजित सिद्ध यंत्र उत्तम परिणामदायक माना जाता है। फिर नित्य पूजा में यंत्र को जल का छींटा देकर तिलक आदि कर संबंधित मंत्र का 1 माला जप करें। तत्पश्चात् आरती करें तथा इच्छित मनोकामना मांगे।
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दीपावली की रात्रि की जाने वाली अन्य पूजाएं:
श्री लक्ष्मी सहस्त्रनाम: दीपावली की रात्रि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु सर्वोŸाम मानी जाती है। अतः इस रात्रि में श्री लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ सर्वोŸाम माना जाता है। शुद्ध आसन पर (यदि संभव हो तो कुशा के आसन पर) बैठकर सर्वप्रथम श्री गणेश-लक्ष्मी पूजन करें। फिर दीपक प्रज्जवलित कर श्री लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ 11 बार करें। इस पाठ में माता लक्ष्मी का आवाहन एक हजार नामों से किया जाता है। यदि 11 पाठ संभव न हों तो कम से कम 1 पाठ अवश्य करें। पाठ के उपरांत श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी की आरती करें तथा सदैव अपने घर आदि में अखंड वास की प्रार्थना करें।
श्रीसूक्त का पाठ: श्री लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ न कर पाने की स्थिति में मात्र श्री सूक्त के 16 श्लोकों का पाठ कर लेना भी उŸाम है। यह पाठ एक, ग्यारह या 108 बार करें। पाठ से पूर्व श्री गणेश-लक्ष्मी पूजन अनिवार्य है। पाठ के उपरांत श्री गणेश, लक्ष्मी जी की आरती करें तथा माता से इच्छित मनोकामना मांगे। इस पाठ को करने पर किसी भी प्रकार की दरिद्रता एवं धन संकट टल जाते हैं।
श्री विष्णु सहस्त्रनाम पाठ: माना जाता है कि जहां श्री हरि विष्णु जी का वास है वहां लक्ष्मी जी स्वतः चली आती हैं। अतः दीपावली की मध्य रात्रि श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है। कुछ स्थानों पर यह पाठ अखंड रूप से प्रातः काल तक किया जाता है। किंतु कम से कम एक या सामान्यतः 11 पाठ कर लेना उŸाम है प्रयास करें कि इस पाठ के साथ श्री लक्ष्मी सहस्त्रनाम का भी पाठ करें। पाठ करने से पूर्व श्री विष्णु भगवान का आवाहन पूजन कर दीप प्रज्वलन करें। फिर पाठ के उपरांत आरती कर इच्छित मनोकामना मांगे।
श्री गोपाल सहस्त्रनाम पाठ: दीपावली की पवित्र रात्रि को श्री विष्णु सहस्त्रनाम की भांति ही श्री गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करने का भी प्रचलन है। बहुत से स्थानों एवं परिवारों में यह संपूर्ण रात्रि पर्यंत अखंड रूप से किया जाता है। प्रातः सूर्योदय होने पर इसका समापन किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु का सान्धिय चाहती हैं। तथा भगवान कृष्ण भी विष्णु जी का ही रूप हैं। पूजन व सिद्धि विधान श्री विष्णु सहस्त्रनाम की भांति है।
बगलामुखी सिद्धि साधना: तंत्र में रुचि रखने वाले साधक माता बगलामुखी की सिद्धि हेतु दीपावली की अंधेरी रात का उत्सुकता से इंतजार करते हैं। यह साधना अत्यधिक सावधानी से नियम व विधान के साथ होती है। अतः इसके लिए योग्य गुरु का उपस्थित होना अनिवार्य है। कुशल दिशा-निर्देश से ही यह सफल हो पाती है अन्यथा शक्तिपात जैसी घटनांए साधक को हानि पहंुचा सकती हैं।
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