शरीर के सात चक्र
शरीर के सात चक्र

शरीर के सात चक्र  

अनीता शर्मा
व्यूस : 27430 | अकतूबर 2010

चक्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है पहिया। मानव शरीर में छोटे, मध्यम एवं प्रमख कुुल मिलाकर 41 चक्र हैं, ये चक्र लगातार चक्कर लगाते हुए ऊर्जा केंद्र हैं जो औरा (प्रभामंडल) के अत्यंत महत्वपूर्ण अंग हैं। शरीर में कुल सात प्रमुख चक्र हैं एवं प्रत्येक चक्र करीब 4 इंच व्यास के होते हैं। स्थूल शरीर में सात अंतः स्रावित ग्रंन्थियां (इन्डोक्राइन ग्लैंड) हैं जो शरीर के रासायनिक कारखाने के रूप में कार्य करती हैं। प्रत्येक अंतः स्रावित ग्रंथियों के ऊपर एक प्रमुख चक्र है जो शरीर के संवेदनशील एवं प्रमुख अंगों के कार्यों को नियंत्रित एवं ऊर्जान्वित उसी प्रकार करते हैं जैसे विद्युत-उत्पादन केंद्र (पावर स्टेशन) विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति कर कल-कारखानों को चलाते हैं। ये चक्र संपूर्ण स्थूल शरीर को नियंत्रित करते हुए उन्हें ऊर्जान्वित करते हैं। अगर अंतः स्रावित ग्रंथियों में कोई खराबी आ गई है तो संबंधित चक्र को क्रियान्वित कर उस खराबी को दूर किया जा सकता है। चक्रों के दूषित हो जाने पर स्थूल शरीर में तत्काल अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

शरीर के प्रमुख सात चक्र:

Û मूलाधार: यह चक्र पुरुषों की रीढ़ की सबसे नीचे की तिकोनी हड्डी एवं महिलाओं के अंडाशय के मध्य क्षेत्र में अवस्थित है। यह चक्र शरीर में भौतिक जीवन शक्ति का स्थान है जो जीवन के लिए प्रेरित करता है। यह कुंडलिनी शक्ति के जागरण एवं प्रचतुरता का परिचायक है। संबंधित अंग: सुपरारीनल गं्रथि, किडनी एवं सुषुम्ना, तत्व-पृथ्वी, रंग-लाल, कार्य-भौतिक शक्ति, सृजन। चक्र का यंत्र-चतुष्कोण ग्रह, ग्रह-शनि, लोक-भू चक्र का बीज तत्व-लं, चक्र के कमल दल-चार, चक्र का ध्यान-गुदा, वाहन-ऐरावत, चक्रदल-चार, चक्र के ध्यान का फल-वक्ता, मनुष्यों में श्रेष्ठ, सर्व विद्याओं का ज्ञाता, आरोग्य, आनंद चिŸा वाला, काव्य शक्ति संपन्न। प्रतिकूल प्रभाव- उदासी, भारीपन, शारीरिक जड़ता, अस्थि रोग।

Û स्वाधिष्ठान चक्र: नाभि के करीब तीन इंच नीचे यह चक्र अवस्थित है। यह चक्र संबंधित अंग-ग्रोनड गं्रथि, प्रजनन अंग एवं दोनों पां, आकार- अर्द्धचंद्राकार, रंग-संतरी, कार्य-किसी व्यक्ति के प्रति मनोभाव सीधे चक्र के द्वारा प्राप्त होते हैं, भावनात्मक विचार, तत्व-जल, ग्रह-गुरु, चक्र का बीज तत्व-वं, चक्र का यंत्र- अर्द्धचंद्राकार, लोक-भूमि, चक्र दल-6 (छः), चक्र का वाहन-मगरमच्छ, चक्र के अधिष्ठाता देवता-भगवान विष्णु, चक्र के ध्यान का फल- ऐसा मनुष्य श्रेष्ठ योगी, काव्य रचना करने वाला एवं अहंकार से परे होता है। प्रतिकूल प्रभाव- कफ, खांसी, श्वास, मूत्र रोग।

Û मणिपुर चक्र: नाभि से करीब तीन अंगुल ऊपर वास्तविक केंद्र है, जहां से भौतिक ऊर्जा का वितरण होता है। यह चक्र ‘शक्ति एवं बुद्धिमानी’ का प्रतीक है। अगर हम किसी बात से बहुत डर जाते हैं तो इस अंग में स्वतः कड़ापन आ जाता है तो भूख बंद हो जाती है। संबंधित अंग-लीवर, पैन्क्रियाज, पेट, पाचन शक्ति, एपेन्डिक्स, फेफड़े, गाॅलब्लाडर। तत्व-अग्नि, रंग-पीला, कार्य-शक्ति एवं बुद्धि, चक्र का लोक-स्वः, चक्र के कमल दल-10, , चक्र का बीज तत्व रं, चक्र का यंत्र- त्रिकोणाकार, चक्र का वाहन-मेष अथवा मेढ़ा, ग्रह-मंगल, चक्र के अधिष्ठाता देवता-वृद्धि रुद्र। चक्र के ध्यान का फल- ऐसा मनुष्य वाक्य रचना में निपुण होता है, जिसकी जिह्वा पर साक्षात् सरस्वती निवास करती है। वह संसार पालन में समर्थ होता है। प्रतिकूल प्रभाव-रक्त संबंधी विकार, अतिसार, वायु-विकार, पीठ की तकलीफ और स्फूर्ति में कमी।

Û हृदय चक्र या अनाहत चक्र: दिल के करीब सीने के बीच में यह चक्र अवस्थित है। संबंधित अंग-थाईमस ग्रंथि, हृदय, फेफड़े, रक्त प्रवाह। यह चक्र निश्चल प्रेम, अपनापन, आध्यात्मिक विकास, भक्ति, साधना एवं प्रेम का प्रतीक है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस चक्र को जाग्रत करने पर विशेष बल दिया है। बिना किसी शर्त के प्यार करना इस चक्र की उच्च स्थिति है। इस चक्र का कार्य-प्रेम और प्रवित्र भावना है। तत्व-वायु, रंग-हरा, चक्र का तत्व बीज-यं, चक्र का वाहन- मृग, चक्र का गुण- स्पर्श, चक्र का कमल दल-द्वादश। ग्रह-शुक्र, चक्र के ध्यान का फल- ऐसा मनुष्य योगीश्वर होता है। वाक्य रचना में सामथ्र्यवान, इंद्र के समान विजयी एवं परकाया प्रवेश में समर्थ होता है। प्रतिकूल प्रभाव- शारीरिक पीड़ा, निराशा, प्रेम का अभाव, अकेलापन।

Û विशुद्ध चक्र: यह संचार का चक्र है। अपनी अभिव्यक्ति एवं क्रियाशीलता, अपने मनोभावों को दूसरों तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण विभाग है। जो सच है, सत्य है उसकी अभिव्यक्ति करते रहने से इस चक्र का सतत विकास होता है। वाणी में ओज एवं प्रभाव होता है। इस चक्र द्वारा अंतरात्मा की आवाज एवं उच्च स्तर से आने वाले संदेश गृहीत होते हैं। संबंधित अंग-थाईराइड ग्रंथि, गला, फेफड़े, वायु प्रवाह, रक्त प्रवाह, हृदय। तत्व-आकाश, चक्र का तत्व बीज- हं, चक्र का वाहन- हाथी, चक्र के ग्रह-बुध, चक्र के स्वामी-सदाशिव, चक्र का रंग-हल्का आकाशीय नील, चक्र के कमल दल-सोलह। प्रतिकूल प्रभाव-पिŸा, कफ एवं बाल संबंधी रोग।

Û आज्ञा चक्र: यह चक्र ललाट, दोनों भौहों के मध्य जरा ऊपर अवस्थित है। यह चक्र बाह्य ज्ञान का केंद्र है। व्यक्ति के अंतज्र्ञान (इन्टयूषन) का विकास इसी चक्र से होता है। इस चक्र से भविष्य में होने वाली घटनाओं की सूक्ष्म जानकारी प्राप्त होती है एवं इसके विकसित और जाग्रत होने से लोग प्रभावषाली रहते हैं। अध्यात्मिक विकास के लिए आज्ञा चक्र का बहुत महत्व है। संबंधित अंग सुषुम्ना नाड़ी, बायीं आंख, नाक, कान, नाड़ी संस्थान इत्यादि। यह चक्र विद्युत के प्रकाश की भांति उज्जवल है। इस चक्र का रंग गहरा नीला है, तत्व-महः, चक्र का बीज तत्व ऊँ, वाहन-नाद, चक्र के अधिष्ठाता देवता- अर्द्धनारीश्वर, चक्र का ग्रह-पूर्ण चंद्रमा, चक्र के कमल दल-दो। चक्र के ध्यान का फल- ऐसा मनुष्य वाक् सिद्ध हो जाता है। यह अंतःप्रेरणा और इच्छाओं का चक्र।

Û सहस्रार चक्र: सिर के ऊपर मध्य में यह चक्र अवस्थित है। यह चक्र उच्चतम आध्यात्मिक साधना का स्थल है, उच्चतम स्थिति में ज्ञान को प्राप्त कर समाधि की अवस्था होती है। निर्विकार, कोई भाव नहीं, कोई विचार नहीं- उच्चतम स्थिति है। संबंद्ध अंग- ऊपरी दिमाग, दायीं आंख, रंग-जामुनी, पिनियल गं्रथि, आध्यात्मिक प्रगति, चक्र का तत्व- तत्वातीत, तत्व बीज विसर्ग, ग्रह-सूर्य, वाहन- बिंदू, देवता-परंब्रह्म। ऐसा व्यक्ति अमरत्व को प्राप्त करता है। वह आकाशगामीे व समाधियुक्त होता है। इस चक्र के कमल दल हजार हैं जिसे सहस्ररंध्र भी कहते हैं।



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