आज शारीरिक रोगों के अलावा अवसाद रोग तेजी से फैलता जा रहा है। इसे डिप्रेशन के नाम से भी जाना
जाता है। यह मनोभावों से जुड़ा रोग है। जिस व्यक्ति में यह रोग प्रभावी होता है, वह निराश, अलग-थलग,
चुप, अकेला, भावनाओं को छुपाना, बंद कमरे में रहना और सामाजिक गतिविधियों में रुचि कम लेता है। एक
शोध के अनुसार विश्व में लगभग 121 मिलियन लोग इस रोग से प्रभावित हंै। विशेष रुप से महिलाएं
इसके प्रभाव में आती हैं और 18 से 44 वर्ष की आयु में यह रोग जल्द होने की संभावनाएं बनती है। अन्य
रोगों की तरह यह एक अनुवांशिक रोग भी है। अवसाद को चिंता और तनाव की अंतिम सीढ़ी कहा जा
सकता है जो कि रोगी को आत्महत्या तक ले जा सकती है।
अवसाद का जीवन पर प्रभाव
- अवसाद का प्रत्यक्ष प्रभाव रोगी के वैवाहिक सुख पर पड़ता है। नकारात्मक विचारधारा के चलते उसे जीने की चाह
नहीं रहती है। आत्मविश्वास की कमी के कारण उसे किए गए कार्यों में असफलता का भय रहता है।
- व्यक्ति की भूख कम हो जाती है। व्यक्ति को मीठा खाना अच्छा लगता है। इसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता
है। उदासी और भावनाओं में असंतुलन की स्थिति में रहता है। ऐसे लोग जल्द रोने लगते हंै, व्यर्थ की बातों पर
क्रोध करना, तेज गुस्सा और बात-बात पर रोने लगते हैं।
- यह रोग 44 साल की आयु में चरम सीमा पर होता है। इसका कारण यह हो सकता है कि अधेड़ आयु में जब
व्यक्ति की उच्च महत्वाकांक्षाएँ समाप्त होती हैं तो वह इसे स्वीकार नहीं कर पाता है। इस आयु में सपने टूटने का
दर्द झेलना कठिन होता है।
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अवसाद का विभिन्न वर्गों पर प्रभाव
महिलाओं में अवसाद
पुरुषों की अपेक्षा यह रोग महिलाओं को जल्द होता है। इसका कारण महिलाओं पर घर और बाहर दोनों की
जिम्मेदारियां होना है। इसके अतिरिक्त सामाजिक परिवेश भी इसका एक बड़ा कारण है। अत्यधिक कार्य भार होने के
कारण अधिक चिंताग्रस्त रहती हैं। यही वजह है कि तनाव और चिंता के कारण अवसाद का शिकार होती हैं। ऐसे में
मूड स्विंग, हार्मोंस में बदलाव, ज्यादा खाना, ज्यादा सोना, वजन बढ़ना जैसी समस्याएं सामने आती हंै। महिलाओं
में प्रसव के बाद अवसाद होने का प्रतिशत बढ़ जाता है।
पुरुषों में अवसाद
पुरुषों में असफलता अवसाद का सबसे बड़ा कारण है। जल्द थकावट होना, नींद कम आना, गुस्सा आना, आक्रामक
होना, हिंसा करना, लापरवाह होना और नशीले पदार्थों का आदी हो जाना इसका परिणाम बनता है। पीठ दर्द, पाचन
में अनियमितता, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, बेवजह गुस्सा, तनाव और अंततः आत्महत्या के विचार व्यक्ति के
मन में आने लगते हैं।
किशोरावस्था में अवसाद
अधिक दबाव और अन्य बच्चों से तुलना करने की आदत के चलते किशोरावस्था के बालकों में अवसाद जन्म लेता
है। इससे उन्हें पढ़ाई में दिक्कतें होती हैं और वे नशा करना शुरु कर सकते हैं। क्रोध करना, बुरा व्यवहार करना और
स्कूल से भागने के लक्षण सामने आते हैं।
बुजुर्गों में अवसाद
आयु बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति की आय कम, शारीरिक शक्ति कम, दूसरों पर निर्भरता बढ़ना और आए दिन स्वास्थ्य
में कमी बुजुर्गों में अवसाद की वजह बनती है।
अवसाद के ज्योतिषीय योग
हमारी जन्मपत्री तीन मुख्य आधारों पर टिकी होती है। प्रथम चंद्रमा है, जो कि मन और मस्तिष्क का कारक है। द्वि
तीय सूर्य है जोकि आत्मा है, हमारा आत्मविश्वास है और तृतीय लग्न भाव है। यदि लग्न, सूर्य और चंद्रमा पीड़ित हैं
तो अवसाद होना निश्चित है। ज्योतिष शास्त्र में पाए जाने वाले मुख्य योग निम्न हैं:
- नीचराशिस्थ लग्न पर सूर्य की दृष्टि।
- चतुर्थ भाव के स्वामी का त्रिक भाव में होना।
- पंचम भाव के स्वामी का त्रिक भाव में होना।
- त्रिक भाव के स्वामियों का चतुर्थ और पंचम भाव में होना।
- चंद्रमा/शनि की युति।
- चंद्रमा/राहु/केतु की युति।
- चंद्रमा का त्रिक भाव में होना।
- चंद्रमा पर शनि की दृष्टि।
- शनि और मंगल का दृष्टि संबंध।
- चंद्रमा की बुध पर दृष्टि।
- बुध त्रिक भाव में, मंगल की बुध पर दृष्टि।
- अष्टम भाव के स्वामी का लग्न में होना।
अवसार पर शोध
ज्योतिष शास्त्र के योगों की जांच करने के लिए हमने 102 अवसादग्रस्त रोगियों की कुंडलियों व 100 अन्य कुंडलियों
के सैम्पल लिये जिसमें ये निम्न परिणाम आये।
उपरोक्त योगों में प्रथम 4 व अंतिम 4 निष्फल पाए गए। केवल चंद्रमा का शनि या राहु से युति या दृष्टि संबंध एवं
चंद्रमा का त्रिक भाव में होना अवसाद को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण निम्न थे -
- सूर्य का लग्न में होना, बुध, गुरु व शुक्र का द्वादश में होना, शनि व राहु का दूसरे भाव में होना अवसाद को
बढ़ाता है। साथ ही चंद्रमा को छोड़कर सूर्य पर्यंत शनि सभी ग्रह छठे, आठवें भाव में अवसाद के कारक नहीं हैं।
- सूर्य तुला राशि में, चंद्रमा कर्क, तुला, वृश्चिक व मीन राशि में, मंगल सिंह व धनु में, बुध कुंभ में, गुरु सिंह में,
शुक्र तुला में, शनि मेष में, राहु मेष, कर्क व सिंह राशि में अवसाद का कारक होता है। लेकिन मकर में सूर्य व
बुध, धनु व कुंभ का चंद्रमा, स्वगृही मंगल, मेष व वृषभ के गुरु, वृषभ व सिंह के शुक्र, धनु का शनि, वृषभ,
वृश्चिक एवं कुंभ के राहु अवसाद को काटने की क्षमता रखते हैं।
- चंद्रमा यदि पुनर्वसु, आश्लेषा, हस्त, शतभिषा व उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हो तो अवसाद रोग अधिक होता है साथ
ही मृगशिरा, उत्तराफाल्गुनी, मूल, उत्तराषाढ़ा व धनिष्ठा में अवसाद रोग कम पाया जाता है।
- तुला लग्न में अवसाद रोग सर्वाधिक होता है। कर्क व कन्या लग्न में भी अवसाद रोग के लक्षण अधिक पाये जाते
हैं। सिंह लग्न में सबसे कम अवसाद के लक्षण पाये जाते हैं।
- चन्द्रमा तो 6, 8, 12वें भाव में खराब पाया गया। लेकिन अधिकांश ग्रह 3, 11, 12वें भाव में अवसाद के कारक
दर्शित हुए। चंद्रमा को छोड़कर अन्य कोई भी ग्रह अष्टम भाव में अवसाद का कारक नहीं है।
आयुर्वेदिक उपाय
सेब खाने से डिप्रेशन दूर होता है क्योंकि इसमें विटामिन बी, फास्फाॅरस और पोटैशियम होता है जिनसे ग्लूटाॅमिक
एसिड का निर्माण होता है। काजू खाने से भी अवसाद कम होता है। इसमें विटामिन बी की मात्रा अधिक होती है।
एसपारागस की जड़ों से युक्त पानी पीने से डिप्रेशन से बचाव होता है। इलायची के बीज पानी में उबालकर या चाय
के साथ लेना इस रोग में लाभप्रद सिद्ध होता है। नींबू, तुलसी, चीनी, दालचीनी और सूखे अदरक को गर्म पानी में
ड़ालकर पीने से लाभ मिलता है। काली मिर्च, ब्राह्मी तेल, हल्दी का सेवन मौसमी अवसाद में कमी करता है। जटामासी
औषधि का सेवन मन को मजबूत करता है।
अवसाद के ज्योतिषीय उपाय
जिस ग्रह के कारण अवसाद हुआ है यदि उस ग्रह का संबंध 6, 8 और 12 भावों के स्वामियों से दृष्टि या युति से हो
तो उस ग्रह की पूजा एवं दान करना चाहिए। इसके अलावा चांदी के गिलास में पानी पीना, चांदी पहनना, दूध, चीनी
व चावल का सोमवार को दान करें, ‘ऊं नमः शिवायः’ का जाप करें, माता के साथ उत्तम व्यवहार करें, सोने से पहले
हरी ईलायची डालकर दूध पीयें और नित्य प्रातः प्राणायाम करें। रूद्राक्ष व चन्द्रमणि धारण करना भी विशेष लाभकारी है।