दक्षिण में भूमिगत जल स्रोत महिलाओं की स्वास्थ्य हानि एवं अनचाहे खर्चों का कारक होता है पं. गोपाल शर्मा कुछ दिन पूर्व इलाहबाद (उत्तर प्रदेश) के एक व्यापारी के घर का वास्तु निरीक्षण किया गया। बातचीत के दौरान उनकी पत्नी ने बताया कि काफी समय से उनका स्वास्थ्य खराब है, रीढ़ की हड्डी में बहुत दर्द रहता है। उनकी बहू का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है। उनके बेटे की शादी को काफी वर्ष हो गए हैं, परंतु उनके कोई संतान नहीं है। कुछ समय से व्यापार में भी भारी नुकसान हो रहा है। व्यापारिक समस्याओं में उलझे रहने के कारण उनके पति अपने परिवार को समय नहीं दे पाते। घर में अनचाहे खर्चे लगातार बने रहते हैं। वंशवृद्धि न होने के कारण एवं गंभीर आर्थिक समस्याओं की वजह से हर समय घर में मानसिक तनाव बना रहता है। वास्तु निरीक्षण करने पर निम्नलिखित दोष पाए गए। दक्षिण-पश्चिम में मुख्यद्वार था जो कि घर के मालिक के लिए समस्याओं का कारक होता है। इससे आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बनी रहती हैं एवं मालिक घर से दूर रहता है। दक्षिण में बोरिंग (भूमिगत जल स्रोत) एक गंभीर वास्तुदोष है जो कि महिलाओं के स्वास्थ्य हानि एवं अनचाहे खर्चों का कारक होता है। रसोईघर में दक्षिण की तरफ मुख करके खाना बनाने से स्त्रियों को स्वास्थ्य संबंधी कष्ट विशेषतया सर्वाइकल, हड्डियों में दर्द, कमर में दर्द आदि होते हैं। खाना बनाने वाली की पीठ की तरफ द्वार होने से भी कमर तथा कंधों में दर्द होता है। उत्तर-पूर्व में शौचालय था और उत्तर पूर्व में ही स्टोर बना था जो कि वंशवृद्धि में बाधक होता है। इस दोष के फलस्वरूप परिवार के सदस्यों में मानसिक तनाव बना रहता है। व्यापारी के पुत्र का शयनकक्ष भी उत्तर-पूर्व में था। यह दोष संतान उत्पत्ति में बाधक होता है। दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम का खुला होना एवं उत्तर और उत्तर-पूर्व के कोने का बंद होना भी भारी खर्च एवं बीमारी का कारक होता है। सुझाव: दक्षिण-पश्चिम में बने मुख्यद्वार को दक्षिण की ओर स्थानांतरित करवाया गया। दक्षिण में बनी बोरिंग को बंद करके गड्ढे को अच्छी तरह से बंद करवाया गया और पश्चिम में बनाने की सलाह दी गई, क्योंकि उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व में जगह नहीं थी। दक्षिण में रखी गैस को दक्षिण पूर्व में करवाया गया और पूर्व की ओर मुख करके खाना बनाने के की सलाह दी गई। गैस के सामने पूर्व की तरफ शीशा लगवाया गया ताकि दरवाजा दिख सके और बार-बार पीछे मुड़ना न पड़े। उत्तर पूर्व में बने शौचालय को पश्चिम में बैठक के साथ बनाने के लिए कहा गया। उत्तर-पूर्व के शौचालय की जगह हल्के सामान का स्टोर और स्टोर की जगह मंदिर बनाने की सलाह दी गई। व्यापारी के पुत्र के शयन कक्ष को उनके अपने शयन कक्ष, जो कि उत्तर, उत्तर-पश्चिम में था, से आपस में बदलने के लिए कहा गया। दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में आगे की तरफ शौचालय की सीध में कुछ हिस्सा प्लास्टिक शीट से कवर करने को कहा गया। इस तरह व्यापारी महोदय को परिवार की महिलाओं के अनुकूल स्वास्थ्य, वंषवृद्धि तथा व्यापार में उन्नति के लिए उपर्युक्त उपाय बताकर उन्हें कार्यान्वित करने की सलाह दी गई।