अंक ज्योतिष में अंकों को तीन श्रेणी में बांटा गया है। 2, 4, 8 शुभ श्रेणी में आते हैं, 3, 5, 7 अशुभ श्रेणी में जबकि 6 एवं 9 सम प्रभाव वाले होते हैं। इनकी दोस्ती दोनों प्रकार अर्थात शुभ व अशुभ दोनों ही अंकों से होती है, पर ये खासकर अशुभ अंकों की दोस्ती को लालायित रहते हैं। एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि शुभ व अशुभ को यहां सामान्य अर्थ में नहीं लेना है, यह मात्र अंकों को दो श्रेणी में करने में लिया जाता है। एक श्रेणी के लोगों में एक ही तरह का विचार पनपेगा एवं आचरण भी करीब-करीब एक ही जैसा होगा। अंक 1 किसी से भी मैच करता है।
इन अंकों का सभी नौ ग्रहों से अटूट संबंध है। यह सर्व विदित है कि पृथ्वी पर होने वाली हर क्रिया में इन्हीं ग्रहों का हाथ होता है। अंक 1 का स्वामी सूर्य, 2 का चंद्र, 3 का गुरु, 4 का राहु एवं यूरेनस (हिंदी मत वालों के लिए राहु एवं पश्चिम के मत वालों लिए यूरेनस) 5 का स्वामी बुध, 6 का शुक्र, 7 का केतु एवं नेप्च्यून, 8 का शनि और 9 का स्वामी मंगल होता है। अंकों के द्वारा भाग्य जानने के लिए कम से कम तीन तरह के अंकों का अध्ययन करना पड़ता है। ये तीनों तरह के अंक जन्म तिथि से ही प्राप्त होते हैं। ये हैं मूलांक, भाग्यांक एवं दिशा निर्देशक अंक।
पूर्ण जन्म तिथि में तिथि, मास एवं वर्ष तीनों का ही स्थान होता है। जहां मूलांक व्यक्ति के व्यक्तित्व को स्पष्ट करने के लिए होता है, वहां भाग्यांक, उसके भाग्य में क्या है, जानने के लिए होता है। दिशा निर्देशक अंक जन्म स्थान के स्थानीय समय से जाना जाता है। प्रत्येक अंक के लिए 2 घंटे 40 मिनट की अवधि होती है एवं इसकी गणना मध्य रात्रि से होती है। यह वह अंक होता है, जिसके सहारे मनुष्य अपने कर्म द्वारा भाग्य को बदल सकता है। जन्मकुंडली में जो स्थान लग्न का होता है, वही अंक ज्योतिष में दिशा निर्देशक अंक का। अगर किसी जातक के मूलांक, भाग्यांक एवं दिशा निर्देशक अंक तीनों एक ही वर्ग के हो जाएं, तो वह बड़ी ही आसानी से अपने भाग्य को बदल सकता है। पर अगर भाग्यांक एवं दिशा निर्देशक अंक दोनों भिन्न श्रेणी के हों तो भाग्य बदलने में ज्यादा परेशानी होती है। लोग अपनी मर्जी से पुकारू नाम कुछ भी रख देते हैं, पर यह तरीका ठीक नहीं है। इसका संबंध भाग्यांक से अथवा दिशा निर्देशक अंक से अवश्य होना चाहिए। जिस तरह से कुंडली में राशि का नाम जन्म नक्षत्र के चरण से संबंधित होता है, उसी तरह से पुकारू नाम ऊपर बताए गए दोनों अंकों में जो ज्यादा शुभ हो, उसी के अनुसार रखना चाहिए।
नाम को अंक में बदलने के लिए चाल्डीयन द्वारा बनाई गई एव अंक ज्योतिष के विशेषज्ञ कीरो द्वारा समर्थन प्राप्त तालिका का ही उपयोग करना बेहतर होगा। इसमें किसी भी अक्षर को 9 अंक से निर्देशित नहीं किया गया है। उनके अनुसार 9 का अंक भगवान का अंक होता है। पुकारू नाम से किसी को बार-बार पुकारने से एक विशेष कंपन होता है, जो भाग्य के खेल में परोक्ष रूप से काम करता है। जातक के जीवन में तीन तत्वों का स्थान महत्वपूर्ण होता है। दिल, दिमाग एवं धन। इन तीनों को भी अंक अपने अनुसार समर्थन देते हैं। इसके लिए तीन चक्रों का निर्माण करना होता है- धन का चक्र, भावना का चक्र- जिसका दिल से संबंध होता है और विद्वता का चक्र-जिसका संबंध दिमाग से होता है। प्रथम चक्र को 1, 4, 7 का समर्थन प्राप्त होता है,
द्वितीय को 2, 5, 8 का और तृतीय को 3, 6 एवं 9 का। जन्म तिथि के अंकों को इन्हीं तीन चक्रों में बांटा जाता है और जिस चक्र में ज्यादा अंक प्राप्त होते हैं, जातक जीवन में उसी के अनुसार काम करता है। यहां पर स्पष्ट है कि चक्र में अंकों का समावेश अंकों की शुभ या अशुभ श्रेणी पर निर्भर नहीं करता है। इन चक्रों में आए अंकों की स्थिति यह स्पष्ट करती है कि जातक के धन की स्थिति क्या है, वह किसी भी काम का निर्णय दिल से लेगा या दिमाग से। इसी बात को आधार मान कर उसे पढ़ाई के विषय एवं व्यवसाय का चुनाव करना चाहिए। बिना धन के आज के संसार में कुछ भी नहीं है। धन के चक्र में 1, 4 एवं 7 तीन अंक आते हैं।
1 अंक के प्रभाव से साफ-सुथरे धन की स्थिति प्राप्त होती है, वहीं 4 से काले धन की। 7 का अंक, केतु से संबंधित होता है, जो दान धर्म, मोक्ष से संबंधित होता है, अतः यह कमाए हुए हुए धन का खर्च दान धर्म द्वारा कराता है। इसकी स्थिति उस समय ज्यादा विस्फोटक हो जाती है जब 2 भाग्यांक हो एवं भावना चक्र में आया हो और धन चक्र में 7 भी हो। कहने का अर्थ यह है की जन्म-तिथि में 2 एवं 7 दोनों ही मौजूद हों एवं 2 भाग्यांक हो, अपनों से धोखा मिलता है एवं जातक अपनी पूरी संपत्ति दान कर देता है। इन नौ अंकों के अतिरिक्त एक दशम अंक है जिसे असीम शक्ति के लिए जाना जाता है। यह अति विशिष्ट ज्ञान का अंक कहलाता है,
अर्थात जन्म तिथि में अगर शून्य भी हो तो वह जातक दिमाग का तेज अवश्य होगा। जीवन में शादी एवं व्यवसाय भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अगर इनके लिए साथी के चुनाव की जरूरत हो तो अंकों का सहारा लेना चाहिए। किंतु जिन्हें साथ रहना है उनका स्वभाव मिलना एवं भाग्य का साथ देना भी जरूरी है। यहां अंकों की शुभ-अशुभ श्रेणी को देखा जाता है। शुभ के साथ शुभ, अशुभ के साथ अशुभ या सम मिले तो ठीक होगा। पर यह जरूरी नहीं कि मूलांक के साथ-साथ भाग्यांक भी मिले, अगर एक मिल रहा है तो दोनों में किसको चुनना चाहिए? यहां मूलांक की अपेक्षा भाग्यांक को ज्यादा महत्व देना चाहिए। भाग्य अगर साथ दे, तो लोग अपने आप ही मिल जाते हैं, पर इस भौतिक युग में स्वभाव मिले एवं भाग्य साथ न दे तो कुछ भी ठीक नहीं होता है। क्या अंक ज्योतिष के अनुसार जातक के जीवन की स्थिति एक समान होती है? नहीं। जिस तरह ज्योतिष में दशा समय के बदलने से जीवन की स्थिति भी बदलती रहती है उसी तरह इसमें भी अंकों की दशा समय बदलता है।
हर अंक का दशा समय नौ वर्ष बाद बदलता है। दशा समय में चलने वाला अंक अगर भाग्यांक का मित्र हो तो शुभ फल की एवं शत्रु होने पर अशुभ फल की प्राप्ति होगी। यही वजह है कि कभी-कभी मित्र भी आपस में शत्रु हो जाते हैं, पति-पत्नी के बीच संबंध विच्छेद हो जाता है। अंक ज्योतिष के आधार पर रत्न धारण करना चाहिए या नहीं। मेरी समझ से नहीं। इसके लिए कुंडली का सहारा लेना चाहिए। कुंडली में भाग्यांक की स्थिति शुभ हो, पर कमजोर हो, तो भाग्यांक का रत्न अवश्य धारण करना चाहिए और पूजा एवं जप भी करना चाहिए। अशुभ स्थिति में रहने वाला ग्रह रत्न धारण करने से शुभ नहीं होता बल्कि ताकत पाकर और भी अशुभ फल देगा।