अकस्मात मृत्यु के योग एवं शांति के उपाय
अकस्मात मृत्यु के योग एवं शांति के उपाय

अकस्मात मृत्यु के योग एवं शांति के उपाय  

व्यूस : 13026 | आगस्त 2013
प्रश्न: अकस्मात मृत्यु के कौन-कौन से योग हैं? विस्तार से इनकी व्याख्या करें तथा ऐसी मृत्यु से बचाव के लिए किस प्रकार के उपाय सार्थक हो सकते हैं? मानव शरीर में आत्मबल, बुद्धिबल, मनोबल, शारीरिक बल कार्य करते हैं। चन्द्र के क्षीण होने से मनुष्य का मनोबल कमजोर हो जाता है, विवेक काम नहीं करता और अनुचित अपघात पाप कर्म कर बैठता है। अमावस्या व एकादशी के बीच तथा पूर्णिमा के आस-पास चन्द्र कलायें क्षीण व बढ़ती हैं इसलिये 60 : ये घटनायें इस समय में होती हैं। तमोगुणी मंगल का अधिकार सिर, एक्सीडेन्ट, आगजनी, हिंसक घटनाओं पर होता है तो शनि का आधिपत्य मृत्यु, फांसी व वात सम्बन्धी रोगों पर होता है। छाया ग्रह राहु-केतु का प्रभाव आकस्मिक घटनाओं तथा पैंर, तलवों पर विशेष रहता है। ग्रहों के दूषित प्रभाव से अल्पायु, दुर्घटना, आत्महत्या, आकस्मिक घटनाओं का जन्म होता है। आकस्मिक मृत्यु के स्थान का ज्ञान 1- लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है। 2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो। 3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो। 4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो। 5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है। 6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो। 7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है। 8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध$शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो। 9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है। मृत्यु फांसी के द्वारा 1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो। 2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों 3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो। 4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो। 5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो। 6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है। 7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है 8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है। दुर्घटना से मृत्यु योग 1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो। 2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो। 3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो। 4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है। 5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो। 6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है। 7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो। 8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो। 9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो। 10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो। 11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो । 12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। 13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है। आत्म हत्या से मृत्यु योग 1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों 2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो। 3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो । 4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है 5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है। ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग 1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है। 2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है। 3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। 4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो। 5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है 6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो। 7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है। 8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है। 9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो। 10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो 11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो। 12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है। 13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है 14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है। 15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है। 16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो 17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है। 18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो। 19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो । 20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है। लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान 1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो 2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो। 3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना, 4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो। 5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु। 6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो। 7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो। 8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से। 9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो। 10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु। 11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो। 12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो। गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान 1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी। 2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी। 3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी। 4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु। अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु 1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है। 2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है। 3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है। 4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है। 5- छिद्र ग्रह सात होते हैं 1. अष्टमेश, 2. अष्टमस्थ ग्रह, 3. अष्टमदर्शी ग्रह, 4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी, 5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह, 6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति, 7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह। इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी। 1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें। 2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें। 3. गोचर कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें। 4. मंगल का वाहन दुर्घटना यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें। 5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें। 6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टक व गणेश स्तोत्र का पाठ करें। गणित पद्धति से अरिष्ट दिन मृत्यु समय के लग्न, अरिष्ट मास का ज्ञान अरिष्ट मास: 1- लग्न स्फूट और मांदी स्फुट को जोड़कर जो राशि एवं नवांश हो उस राशि के उसी नवांश पर जब गोचर में सूर्य आता है तब जातक की मृत्यु होती है। 2- लग्नेश के साथ जितने ग्रह हां उन ग्रहों की महादशा वर्ष जोड़कर 12 का भाग दें। जो शेष बचे उसी संख्यानुसार सौर मास में अरिष्ट होगा। अरिष्ट दिन: 1- मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़कर 18 से गुणन करें उसमें शनि स्फुट को जोड़कर 9 से गुणन कर जोड़ दें। जब गोचर चन्द्र उस राशि के नवांश में जाता है तो उस दिन अरिष्ट दिन होगा। मृत्यु समय लग्न का ज्ञान: 2- लग्न स्फुट मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़ देने से जो राशि आये उसी राशि के उदय होने पर जातक की मृत्यु होती है। अकस्मात मृत्यु से बचाव हेतु उपाय: सर्व प्रथम जातक की कुण्डली का सूक्ष्म अवलोकन करने के पश्चात निर्णय लें कि किस ग्रह के कारण अकस्मात मृत्यु का योग निर्मित हो रहा है। उस ग्रह का पूर्ण विधि-विधान से जप, अनुष्ठान, यज्ञ, दानादि करके इस योग से बचा जा सकता है। बृहत पराशर होरा शास्त्रम् के अनुसार: ‘‘सूर्यादि ग्रहों के अधीन ही इस संसार के प्राणियों का समस्त सुख व दुःख है। इसलिए शांति, लक्ष्मी, शोभा, वृष्टि, आयु, पुष्टि आदि शुभफलों की कामना हेतु सदैव नव ग्रहों का यज्ञादि करना चाहिए।’’ मूर्ति हेतु धातु: ग्रहों की पूजा हेतु सूर्य की प्रतिमा ताँबें से, चन्द्र की स्फटिक से, मंगल की लाल चन्दन से, बुध व गुरु की स्वर्ण से, शुक्र चांदी से, शनि की लोहे से , राहु की सीसे से व केतु की कांसे से प्रतिमा बनानी चाहिए। अथवा पूर्वोक्त ग्रहों के रंग वाले रेशमी वस्त्र पर उनकी प्रतिमा बनानी चाहिए। यदि इसमें भी सामथ्र्य न हो तो जिस ग्रह की जो दिशा है उसी दिशा में गन्ध से मण्डल लिखना चहिए। विधान पूर्वक उस ग्रह की पूजा करनी चाहिए, मंत्र जप करना चाहिए। ग्रहों के रंग के अनुसार पुष्प, वस्त्र इत्यादि लेना चाहिए। जिस ग्रह का जो अन्न व वस्तु हो उसे दानादि करना चाहिए। ग्रहों के अनुसार समिधाएं लेकर ही हवनादि करना चाहिए। ग्रहों के अनुसार ही भक्ष्य पदार्थ सेवन करने व कराने चाहिए। जिस जातक की कुण्डली में ग्रह अशुभ फल देते हों, खराब हों, निर्बल हों, अनिष्ट स्थान में हों, नीचादिगत हो उस ग्रह की पूजा विधि-विधान से करना चाहिए। इन ग्रहों को ब्रह्माजी ने वरदान दिया है कि इन्हें जो पूजेगा ये उसे पूजित व सम्मानित बनाएंगे। ग्रह-पीड़ा निवारण प्रयोग (दत्तात्रेय तंत्र के अनुसार): एक मिट्टी के बर्तन में मदार की जड़ (आक की जड़), धतूरा, चिर-चिरा, दूब, बट, पीपल की जड़, शमीर, शीशम, आम, गूलर के पत्ते, गो-घृत, गो दुग्ध, चावल, चना, गेहँ, तिल, शहद और छाछ भर कर शनिवार के दिन सन्ध्याकाल में पीपल वृक्ष की जड़ में गाड़ देने से समस्त ग्रहों की पीड़ा व अरिष्टों का नाश होता है। मंत्र: ऊँ नमो भास्कराय अमुकस्य अमुकस्य मम सर्व ग्रहाणां पीड़ानाशनं कुरु कुरु स्वाहा। इस मंत्र का घट गाड़ते समय 21 बार उच्चारण करें व नित्य 11 बार प्रातः शाम जप करें । इसके अतिरिक्त महामृत्युंजय का जाप व अनुष्ठान की अकस्मात मृत्यु योग को टालने में सार्थक है। इसके भी विभिन्न मंत्र इस प्रकार हैं एकाक्षरी ‘‘हौं’’ त्राक्षरी ‘‘ऊँ जूँ सः’’ चतुरक्षरी ‘‘ऊँ वं जूं सः’’ नवाक्षरी ‘‘ऊँ जं सः पालय पालय’’ दशाक्षरी ‘‘ऊँ जूं सः मां पालय पालय’’ पंचदशाक्षरी ‘‘ऊँ जं सः मां पालय पालय सः जं ऊँ’’ वैदिक-त्रम्बक मृत्युंजय मंत्र ‘‘त्रम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।’’ मृत्युंजय मंत्र ‘‘ऊँ भूः ऊँ स्वः ऊँ त्रम्बकं यजामहे.................माऽमृतात् ऊँ स्वः ऊँ भुवः ऊँ भूः ऊँ।’’ मृत संजीवनी मंत्र ‘‘ऊँ हौं जूं सः ऊँ भूर्भुव स्वः ऊँ त्रम्बकं यजामहे....... माऽमृतात् ऊँ स्वः ऊँ भुवः भूः ऊँ सः जूं हौं ऊँ।। उपरोक्त उपायों को बुद्धिमत्ता पूर्वक विधि-विधान से किए जायें तो यह उपाय अकस्मात मृत्यु को टालने में सार्थक हो सकते हैं।



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