यहां सबकी भरती है झोली
यहां सबकी भरती है झोली

यहां सबकी भरती है झोली  

राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
व्यूस : 4681 | नवेम्बर 2017
  • पवित्र, पुनीत और ऐतिहासिक मगध की धरती प्रारंभ काल से ही ऋषि-मुनि, साधक-संत, दरवेश, सूफी संत और फकीरों की साधना स्थली से भरा-पूरा है। आज भी इस पूरे क्षेत्र में एक से बढ़कर एक ऐसे-ऐसे स्थान हैं जहां दवा से ज्यादा दुआ का असर है और दुआ भी ऐसा, जहां रहमत का करम सदैव बरकरार है। स्थापना काल से आज तक जन-सामान्य व पीड़ित मानवता की सेवा में ऐसे स्थलों का सुनाम है और उसी चमत्कारी शक्ति के कारण भारत की सरजमीं पर इनकी कृति यादगार बनी है और इनमें हजरत सैयद शाह मकदूम दुर्वेश अशरफ रहमतुल्ला की जगह बीथोशरीफ की महिमा दूर-दूर तक प्रचारित प्रसारित है। पटना शहर से करीब 100 किमीऔर गया से 11 किमी. दूरी पर गया-पटना सड़क मार्ग के किनारे बीथो मोड़ द्वार से यहां तक आया जा सकता है जो मुख्यमार्ग से ढाई किमी. अंदर फल्गु नदी के ठीक किनारे अवस्थित है। नगर प्रखंड गया के कंडी पंचायत में अवस्थित बीथो हिंदू मुस्लिम सौहार्द का प्रतीक स्थल है जहां साल के सभी दिन दीन-दुखियों का आगमन बना रहता है।

 

  • संपूर्ण मगध अथवा बिहार ही नहीं वरन् पूर्व देशीय भारत में दःुख निवारण का यह स्थान पुराकाल से चर्चित है जिसका वर्णन विवरण अरबी, फारसी व उर्दू कृतियों में उपलब्ध है। हजरत मुखदूम की संतान पुश्तैनी सोलहवें गद्दीनशीन व पुतवल्ली प्रो. डाॅ. सैयद शाह शाहिद हुसैन अशरफ बताते हैं कि यह स्थान पागल, मतवाले व दिमाग फिरकों के लिए बड़ा ही मशहूर है जहां की दवा व दुआ से रोग जड़ से ठीक हो जाता है। आगरा के मानसिक आरोग्यशाला व काँके (रांची) का पागल हस्पताल के ऐसे मरीजों का भी यहां चमत्कार हुआ है जिसे वहां के लोगों ने लाइलाज बता दिया। इतिहास स्पष्ट करता है कि प्राच्य काल में यहां कोल्ह एवं सेवतार वंश के लोगों का निवास था और नदी किनारे चारों तरफ जंगल झाड़ का साम्राज्य कायम था। यह बस्ती पहले बिथूर (बिथौर) के नाम से जाना जाता था। 847 हिजरी (1443 ई.) में बाबा के आगमन के साथ यहां की तस्वीर व तकदीर दोनों में आश्चर्यजनक तब्दीली हुई। कहते हैं पिता के आदेश व बाद में जिक्रे इलाही की रजा मानते बाबा का यहां आगमन हुआ और मुस्लिम समुदाय में कोई भी संत फकीर इनके पूर्व इधर नहीं आए।

 


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  • बाबा न सिर्फ यहां आए, जन-जन की सेवा की वरन् इसी मिट्टी में सदा सर्वदा के लिए रच बस गए। विवरण है कि दक्षिण दिशा में जाकर मानवता की सेवा करने का आदेश स्वीकारते जब बाबा यहां आस-पास में सूफी संत हजरत बाजीद शहीद के स्थान के पास ही अपनी कुटिया बनायी और अपने निज कर्म में लग गए। तभी से इस स्थान को ‘‘बैतहु शरीफ’’ कहा जाने लगा। इस पूरे स्थान का मालिकाना हक जिन्हें प्राप्त था उन्हें बिथरौरा राजा कहा गया है। एक कथा कही जाती है कि एक बार राजा की सुंदर बेटी पागल हो गयी। बहुत इलाज कराया पर कोई असर नहीं। राजा-रानी दोनों चिंता में दिन रात सुध-बुध खो दिए इसी बीच सूचना मिलते राजा अपनी पुत्री को ‘बाबा’ के पास ले गया। वहां जाते ही बाबा ने बगैर बताए कहा- जा तेरी बेटी चंगा हो गयी। और सचमुच बाबा की बेटी पर पागलपन का कुअसर समाप्त हो गया। राजा ने अपार धन-दौलत से बाबा का स्वागत किया पर ये तो ठहरे फक्कड़ संत उन्होंने उसी राशि से हुजरा (प्रार्थनागृह), बड़ा मस्जिद, दानकाह व आने वालों के ठहरने के लिए आवास बनवा दिया जिसे आज भी देखा जा सकता है। जन सेवा करते-करते तारीख 10, हिजरी 902 (13 अप्रैल 1497 ई.) को बाबा अल्लाह को प्यारे हो गये। आज भी हरेक वर्ष शब्बे बारात के माह में तारीख 9, 10, 11 और 12 को यहां वार्षिक उर्स मनाया जाता है जिसमें दूर-दूर के बाबा के मुरीद जरूर आते हैं।

 

  • उर्स महोत्सव में यहां मेला लग जाता है जिसमें रात-रात भर ज्ञान-विज्ञान व मनोरंजन के धर्म तत्व प्रदर्शित किए जाते हैं। बाबा का यह स्थान न सिर्फ हिंदू और मुस्लिम वरन् अंग्रेजों के बीच भी प्रतिष्ठित बना रहा और तो और गया के गयापाल समाज में भी बाबा को मानने वाले लोग विद्यमान हैं। इस स्थान में दरगाह शरीफ के साथ-साथ ऐतिहासिक मस्जिद, समाखाना, मुसाफिर खाना, जामा मस्जिद, लंगर खाना, चिराग मुकद्दस, हुजरा-मुबारक आदि शान को बढ़ा रहे हैं। इस जगह में अंदर में दो मजार के बाद एक पुराना काले पत्थर का छोटा व मोटा स्तंभ देखा जा सकता है जिस पर कुछ लिपि अंकित है। इसे ‘‘कड़ाह’’ कहा जाता है। गया के पुराने वरिष्ठ पत्रकार शंभु शरण इसे बड़ा प्राचीन और चमत्कारी बताते हैं। शैतानी हरकत का शमन-दमन भी यहां किया जाता है। इस स्थान के ठीक सामने में पीपल पेड़ के नीचे आगे की ओर ब्रह्म बाबा का स्थान भी जाग्रत है जहां पर 14 मनौती स्तूप व 11 मूत्र्तखंड के खंडावशेष रखे हैं। इनमें उमामहेश्वर, विष्णु, सूर्य, भैरव व बुद्ध के रूप में पहचान की जा सकती है। बीथो के आगे कंडी व रसलपुर में भी पुरामहत्व के गढ़ व मूत्र्त विग्रह इस स्थान के प्राचीनता के प्रमाण हैं जिन पर पालकालीन आभा है। ऐसे मार्ग में पुराने मजार भी यात्रियों का स्वागत करता प्रतीत होता है। यहां के एक सहयोगी मो. तकरीम मुर्तजा बताते हैं कि आप यहां सिर्फ आ जाइए बाबा सब काम करवा देंगे। मगध के बड़े इलाके में जादुई करिश्मा के अन्यान्य स्थल यथा सिदुली, काको, मटोकर शरीफ, अमझर शरीफ, मनेर, बिहार शरीफ, बुतला शहीद के बीच बाबा का यह स्थान आदि काल से आज तक कितने ही लोगों को सफल जीवन प्रदान कर चुका है और आज भी यहां सैकड़ों लोग रोज आते हैं और बाबा की कृपा से भला चंगा होकर चले जाते हैं।

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