जन्म लेते ही चाहत हर व्यक्ति के जीवन से जुड़ जाती है बचपन में यह माता-पिता, खेल तथा चाकलेट आदि के प्रति होती है तो युवावस्था में युवा साथी के प्रति। चाहत के अनुरूप चाहत मिलती है तो मन खिल उठता है पर जरूरी नहीं कि चाहत का जबाब चाहत से ही मिले तब जन्म लेती है कुंठा और हिंसक भावनाएं। यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही हर किशोर और किशोरी का मन एक दूसरे के प्रति प्राकृतिक रूप से आकर्षित होता है।
नये दोस्त बनाने के लिए मन चंचल हो उठता है और घर के वातावरण से दूर युवा दोस्तों के साथ घूमना-फिरना व मौज-मस्ती में ही उन्हें असीम सुख मिलता है और जो बच्चे यह सब करने से चूक जाते हैं तो कहीं न कहीं उनकी कोमल भावनाएं दब जाती हैं और कभी-कभी यही भावनाएं एक छोटी सी चिंगारी मिलने पर भी इस कदर भड़कती हंै कि व्यक्ति विक्षिप्त - सा प्रतीत होता है। इसी तरह से आजकल अखबार में और टेलीविजन पर राधिका और राधिका जैसे अनेक किस्से पढ़ने को मिलते हैं जहां एक तरफा प्रेम के चक्कर में, नवयुवक किसी भी युवती को चाहने लगते हैं।
उनके सपने देखने लगते हैं। और अपने सपनों की दुनिया में इस कदर खो जाते हैं कि वे अपनी एकतरफा चाहत को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा समझने लगते हैं और धीरे-धीरे यह प्यार, एक अधिकार का रूप ले लेता है क्योंकि उन्हें लगता है कि इतना तो कोई किसी को चाह नहीं सकता इसलिये उनका अधिकार है कि सामने वाला भी उन्हें उसी तरह से चाहे और जब उन्हें उनके मन का चाहा नहीं मिलता या समाज से उपेक्षा या ताड़ना मिलती है
तो वे सहन नहीं कर पाते और अपनी कुंठा और अपमान का बदला लेने के लिए वे हिंसक हो उठते हैं और दूसरे को पीड़ा पहुंचा कर, उसे चोट पहुंचा कर अथवा हत्या करके उन्हें यह खुशी मिलती है कि तू मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी। अपनी ख्वाहिशों के पूरा न होने पर इसी तरह की भावनाएं व्यक्ति के मन में जन्म ले लेती हैं।
लेकिन ऐसा हमेशा युवकों के साथ ही नहीं होता, नवयुवतियां भी इस बीमारी की शिकार हो जाती है और अपने नाकाम प्रेम की कुंठा में या तो विक्षिप्त हो जाती है या फिर जब उनकी चाहत पूरी नहीं होती तो अपनी ही जीवन लीला समाप्त कर लेती है। अनेक बार देखा गया है कि युवा अवस्था में हर लड़की सुंदर और स्मार्ट लड़के को ही जीवनसाथी के रूप में चाहती है और उसी के साथ अपने भावी जीवन की कल्पना करती है।
ऐसा भी देखा गया है कि विवाह के लिए आए रिश्तों को भी अपने सपनों के राजकुमार जैसा न होने के कारण रिजेक्ट कर दिया जाता है और जब अक्ल आती है तो उम्र ढल चुकी होती है और तब कैसे भी लड़के से विवाह होना मुश्किल हो जाता है। फिर जन्म लेती है कुंठाएं, बेबसी और डिप्रेशन की भावनाएं। हमारी इस कहानी की नायिका है ऋतु। ऋतु बचपन से ही बहुत चुप-चाप रहती थी, उसको अकेले ही अपने आप में रहना अच्छा लगता था। अपनी मां के कहने पर भी वह न तो खेलने जाती, न ही किसी से ज्यादा बात करती।
पिता की भी बचपन में ही मृत्यु हो गई थी जिसने उसे और अकेला बना दिया। स्कूल और कालेज में भी ऋतु अकेला ही रहना पसंद करती व ज्यादा लड़कियों से बात नहीं करती थी और पढ़ाई के बाद उसने अपना ध्यान ईश्वर की साधना में लगाने की कोशिश की और उसे सफलता भी मिली। वह घंटों भगवान के ध्यान में बैठी रहती और उनसे बाते करतीं। घर में मां काफी परेशान रहती। एक दो साल तक ऋतु का मन ईश्वरीय साधना में लगा लेकिन फिर धीरे-धीरे उसका मन यहां से भी उचटने लगा।
उसके आस-पास की सभी लड़कियों का विवाह हो गया था और रिश्तेदारी में भी सभी बहनें विवाहित थी तथा एक दो बच्चों की मां भी बन चुकी थी। उन सबको देखकर अचानक ऋतु अपने आप को बहुत अकेला और उपेक्षित महसूस करती। वैसे तो ऋतु देखने में सुंदर व आकर्षक थी पर चूंकि अब उसकी उम्र हो गयी थी और शरीर से भी वह कुछ स्थूल थी इसलिये वह किसी भी जगह आकर्षण का केंद्र भी नहीं बन पाती थी। जब भी ऋतु का परिचय किसी युवक से होता तो उसे बहुत अच्छा लगता।
कुछ दिन की बातचीत के पश्चात् ऋतु उसके सपने लेने लगती और उससे काल्पनिक संबंध बना लेती लेकिन वास्तविकता में जब वह निकटता बढ़ाने की कोशिश करती तो मायूसी हाथ लगती और वह व्यक्ति ऋतु से पूरी तरह कटने की कोशिश करता जिससे ऋतु को बहुुत मानसिक आघात पहुंचता। ऋतु हर मुमकिन कोशिश करती कि उससे वह दुबारा बात कर सके परंतु निराशा हाथ लगने पर वह बहुत व्यथित हो जाती और अपने अंतर्मन में यही सोचती, ‘क्या भगवान ने मेरा जीवन साथी नहीं बनाया?
क्या मैं ऐसे ही कुंवारी रह जाऊंगी? क्या मेरा अपना घर, पति व बच्चों का सपना पूरा होगा? आईये, करें ऋतु की जन्मकुंडली का विश्लेषण ऋतु की जन्मकुंडली में योगकारक ग्रह शनि नवमेश एवं दशमेश होकर लग्न में वक्री होकर मित्र राशि में स्थित है और लग्नेश शुक्र शत्रु राशि में मंगल के साथ सप्तम भाव में बैठे हैं। नवांश में भी शनि लग्न में कर्क राशि में तथा शुक्र अपनी उच्च राशि में विराजमान है। लग्नस्थ शनि ने ऋतु का ध्यान बचपन से अध्यात्म की तरफ लगाया लेकिन मंगल और शुक्र की पूर्ण दृष्टि ने उसे अध्यात्म में पूरी तरह रमने नहीं दिया और उसके ध्यान को अध्यात्म में केंद्रित नहीं होने दिया।
द्वितीयेश और पंचमेश बुध अष्टम भाव में लग्नेश, तृतीयेश, चतुर्थेश व अष्टमेश के साथ स्थित है। अष्टम भाव में पांच ग्रहों की युति ने इस भाव को अत्यंत बली बना दिया है और इसी कारण ऋतु को गुप्त विद्याओं ने अपनी ओर आकर्षित किया। आध्यात्मिक दृष्टि से ऋतु की कुंडली में अष्टम स्थान में प्रवज्या योग बन रहा है जिसके फलस्वरूप कम उम्र से ही ऋतु आध्यात्मिक साधना में रूचि लेने लगी और उसके मन में विरक्ति के भाव भी उत्पन्न हुए। परंतु यहां राहु स्तंभित स्थिति में है और गुरु और चंद्र भी अस्त होकर निर्बल अवस्था में है इसलिए प्रवज्या योग भी फलीभूत नहीं होगा।
अध्यात्म के क्षेत्र में सफलता मिलनी मुश्किल प्रतीत होती है। इसके साथ-साथ सप्तम भाव में मंगल और शुक्र की युति ने जहां एक ओर उसके विवाह में अवरोध उत्पन्न किए और इतना बिलंब कराया वहीं यह युति दूसरी ओर उसकी भावनाओं को और अधिक प्रबल बना रही है। और उसका मन वैवाहिक सुख के लिए अधिक उत्सुक हो रहा है। अर्थात ऋतु के जीवन में योग और भोग दोनों का ही महत्व रहेगा। ऋतु की कुंडली के कुटुंब भाव को देखें तो वहां पर केतु अपनी नीच राशि में स्थित है तथा कुटुंब भाव के स्वामी बुध अष्टम में कमजोर स्थिति में हैं और कुटुंब भाव पर मंगल, सूर्य, राहु तथा क्षीण चंद्रमा की भी दृष्टि है।
अर्थात भाव, भावेश, भावकारक सभी की स्थिति अशुभ होने के कारण ऋतु को अपना कुटुंब बसाने में सफलता नहीं मिल रही है। पिता कारक ग्रह सूर्य भी अष्टम भाव में स्थित है तथा नवमांश में नीच राशि में राहु के साथ युति बना रहा है जिसके कारण बचपन में ही पिता का सुख चला गया और वर्तमान में भी मनोवांछित सुख से वंचित हो रही है। एक और तथ्य ध्यान देने योग्य है कि ऋतु का जन्म अमावस्या तिथि के दिन हुआ है।
अमावस्या तिथि में जन्मी कन्याओं के विवाह, परिवार, कुटुंब व माता-पिता से संबंध बहुत शुभ नहीं होते। इस कारण भी ऋतु को वैवाहिक व पारिवारिक सुख चाहते हुए भी नहीं मिल पा रहा है। वर्तमान समय में ऋतु की राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा चल रही है। राहु अपनी नीच राशि धनु में लग्न से अष्टम स्थान में स्तंभित होकर बैठे हैं अर्थात काफी निर्बल स्थिति में है। इस समय राहु गोचर में भी अपनी जन्मकालिक राशि के ऊपर से तथा लग्न से अष्टम भाव में गोचर कर रहे हैं
जिसके कारण ऋतु का कोई भी कार्य ठीक से नहीं हो पा रहा है और उसका मन भी काफी व्यथित है। मई 2011 के बाद राहु वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे तथा बृहस्पति भी गोचर में 9 मई से अपनी जन्मकालिक राशि से पंचम, मेष राशि में गोचर करेंगे और वहां से जन्म कालीन राहु को नवम दृष्टि से देखेंगे, जिससे ऋतु की मानसिक स्थिति भी सुधरेगी और कार्य बनने के संकेत भी प्राप्त होंगे। नवंबर 2011 के पश्चात भाग्येश शनि भी लग्न से षष्ठ तथा राशि से एकादश स्थान में चले जाएंगे जो कि गोचरीय मजबूत स्थित होगी।
इस अवधि में ऋतु को अपने सपनों का राजकुमार भी मिलने की संभावना बनेगी। इस समय में सफलता नहीं मिलती तो 2012 मई के बाद बृहस्पति गोचर में वृषभ राशि में आएंगे और वहां से जन्मस्थ सप्तमेश व सप्त भाव को देखेंगे साथ ही राहु में गुरु की अंतर्दशा भी आरंभ हो जाएगी अर्थात् मई 2012 से अक्तूबर 2014 तक की अवधि में विवाह होने के प्रबल योग बनेंगे।
इसके पश्चात राहु में शनि, बुध केतु तक की अंतर्दशाएं 2021 तक अच्छी रहेगी। परंतु राहु में शुक्र की अंतर्दशा में वैवाहिक जीवन में तनाव, विघटन आदि की संभावना बना सकती है।