भावों का एक साथ प्रभाव देखने का ढंग पं. उमेश शर्मा लाल-किताब पद्धति में कई भावों के प्रभावों का एक साथ अध्ययन किया जाता है और फलित देखा जाता है। इस सूत्र में इसका विस्तार से विचार किया गया है। 1. खाना नं0 1-7-11-8 के इकट्ठे का असर: मान लें, खाना नं. 1 में कोई एक या एक से ज्यादा ग्रह हैं। लग्न के ग्रहों को लाल-किताब पद्धति में राजा माना जाता है तथा खाना नं. 7 के ग्रहों को वजीर माना गया है, खाना नं. 11 के ग्रहों को पहले घर के ग्रह के पैर माना है तथा खाना नं. 8 के ग्रहों को आंख माना है। खाना नं0 11 और खाना नं. 8 अगर खाना नं. 1 में स्थित ग्रह के मित्र हों तों चाहे लग्न और खाना नं. 8 के ग्रहों का टकराव ही क्युं न हो लेकिन फिर भी वे खाना नं. 7 में स्थित ग्रह के द्वारा लग्न में स्थित ग्रह की मदद करेगें शर्त यह है कि लग्न में स्थित ग्रह गिनती में खाना नं. 7 के ग्रहो से ज्यादा न हों। इसमें आप सिर्फ गिनती का ध्यान रखें न कि मित्रता और शत्रुता का। क्योंकि राजा कई और वजीर एक हो तो वह ग्रह कई राजाओ के हुक्म के नीचे दब कर अपनी जड़ कटवाता होगा अर्थात अब खाना नं. 7 के ग्रह का असर खाना नं. 7 से सम्बन्धित वस्तुओं, काम या सम्बन्धियों पर अशुभ प्रभाव का होगा। उदाहरण: लग्न में राहु, बुध, बृहस्पति व चन्द्र हों तथा खाना नं. 7 में अकेला केतु हो तो जातक की 35 वर्ष (बुध की आयु तक) नर औलाद (केतु) या तो होती नहीं या पैदा हो कर मर जाये और 48 साल आयु (केतु की आयु) तक एक ही लड़का कायम रहे और औलाद पैदा होने के दिन से लग्न के ग्रह राजयोग के होगें अर्थात थोड़े से परिश्रम से जातक को धन, यश, कीर्ति एवं श्रेष्ठत्व का लाभ होने लगता है और उसके विपरीत जब तक नर औलाद कायम नहीं होती तब तक जातक को कार्य क्षैत्र में व्यर्थ की उलझनों का सामना करना पड़ता है। परिस्थितियां अनियंत्रित रहती हैं। प्रत्येक दृष्टि से कुछ न कुछ दुर्बलता रहती है। खाना नं. 7 के ग्रहों को अगर वज़ीर माना है तो खाना नं. 8 के ग्रहों को हुक्मनामा यानि वजीरों की दिमागी दलील। उदाहरण: माना कि खाना नं. 7 में मंगल है तो शुभ मंगल सातवें, सब कुछ उमदा, धन दौलत परिवार ही सब परन्तु अगर बुध खाना नं. 8 में हो तो मंगल घर व अपने से सम्बन्धित सभी वस्तुओं द्वारा अपना मंदा प्रभाव प्रकट करेगा। इसी तरह अगर बुध खाना नं. 1 और मंगल खाना नं. 7 में हो तो भी मंगल खाना नं. 7 के लिए अपना अशुभ फल प्रकट करेगा। ऊपर की दोनो हालातों में अंतर ये हुआ कि बुध खाना नं. 1 के समय राजा (खाना नं. 1) की जालिमाना कार्यवाहियों से धन-दौलत की हानि व परिवार को हानि का सामना करना पड़ा परन्तु कुदरत की ओर से कोई धोखा न हुआ। मगर बुध खाना नं. 8 के समय कुदरत की तरफ से मंगल खाना नं. 7 का फल रद्धी हो गया चाहे राजा (लग्न का ग्रह) उसकी कितनी भी मदद करता रहा हो। दूसरे शब्दों में स्वास्थ्य और गृहस्थ दोनो मदें। खाना नं. 2, 8, 12, 6, 11 का इकट्ठा प्रभाव: अ. रात का आराम आदि या अचानक मौत या मुसीबत उस ग्रह की शुभ या अशुभ हालत पर निर्भर करेगी जो कि खाना नं. 8 में स्थित हो। खाना नं. 8 का असर खाना नं. 2 में मिला करता है मगर उस समय अगर खाना नं. 11 के ग्रह खाना नं. 8 में स्थित ग्रह के शत्रु हों तो खाना नं. 8 की ज़हर खाना नं. 2 में नहीं जायेगी। इसीप्रकार खाना नं. 2 का प्रभाव खाना नं. 6 में मिला करता है और खाना नं. 6 सिर्फ अपना प्रभाव (बिना खाना नं. 2 के प्रभाव के) जो उसका अपना है उतना ही खाना नं. 12 में मिलाया करता है। खाना नं. 12 खाना नं. 6 में अपना असर नहीं डालता। सिर्फ बुध 12 वें भाव से अपना असर खाना नं. 6 में डालता है और खाना नं. 6 अपना असर खाना नं. 2 में नहीं डालता सिवाय शनि के जों खाना नं. 6 से अपना असर खाना नं. 2 में डालता है। ब. खाना नं. 2 और 12 के ग्रह आपस में मिलते मिलाते रहतें हैं और खाना नं. 6 और 8 के ग्रह भी ऐसे मिले जुले रहतें हैं जैसे कि 2-12 के ग्रह। स. खाना नं. 8 खाना नं. 6 की सलाह लेता हुआ खाना नं. 11 के रास्ते खाना नं. 2 में अचानक आने वाली मुसीबत, जो कि खाना नं. 8 में स्थित ग्रह से संबंधित हो भेजेगा जो कि इंसान पशु-पक्षी किसी पर भी होगी। ऐसी ग्रहचाल में व्यक्ति पर अचानक कोई मुसीबत या मौत का भय आ खड़ा हो तो संसार के दूसरे साथियों के संबंध में भी भाग्य का अच्छा प्रभाव नहीं होगा। लेकिन अगर खाना नं. 2 और 12 में मित्र ग्रह हों और खाना नं. 8 और 11 के ग्रह शत्रु हो तो न अचानक कोई मुसीबत आयेगी और न ही कोई संसारी संबंधी उसे धोखा देगा बल्कि अगर कोई मुसीबत आ भी जाये तो संसारी संबंधी उसकी मदद करके बचा लेगें। द. अगर खाना नं. 8 और 12 में ऐसे ग्रह हांे जो आपस में शत्रु हों और खाना नं. 2 खाली हो तो ऐसी हालत में अगर जातक मंदिर में आने जाने लग जाऐ तो शत्रु ग्रहों का बुरा असर होना शुरु हो जायेगा परन्तु मंदिर न जाने पर और बाहर से ही अपने इष्टदेव को माथा टेकने से बुरा असर न होगा। इसके विपरीत अगर खाना नं. 8-12 में मित्र ग्रह हों या खाना नं. 6 में कोई उत्तम ग्रह हो और खाना नं. 2 खाली हो तो जातक को मंदिर में जाकर मूर्ति को छूकर नमस्कार करने से सब प्रकार से अच्छा फल सकता है। उदाहरण: खाना नं. 12 में शनि व खाना नं. 8 में सूर्य हो और भाव नं. 2 खाली हो और जातक को मन्दिर जाने की आदत हो तो जातक का गृहस्थ जीवन ठीक नहीं रहता। पत्नी के साथ वैचारिक मतभेद इतने बढ़ जाते हैं कि अलगाव की स्थिति बनती है और न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है अथवा पत्नी का स्वास्थ्य ठीक न होने से भी गृहस्थ जीवन अस्तव्यस्त रहता है। जीवन में कई बार अपकीर्ति एवं राजकीय दण्ड का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर खाना नं. 12 में सूर्य के मित्र ग्रह बृहस्पति या मंगल हो और जातक को मन्दिर जाता हो तो इन ग्रहों के शुभ फलों को प्राप्त करता है। खाना नं. 3, 11, 5, 9, 10 का इकट्ठा फल: किस्मत का मिला हुआ प्रभाव, उतार-चढ़ाव, पूर्वजों से संबंधित किस्मत की चमक का समय, अपनी जवानी और बच्चों के जन्मदिन से आगे आने वाले जीवन का हाल, अपने बड़ों और अपनी संतान का हाल, अपना गुजरा हुआ ज़माना ंऔर आगे आने समय का क्या हाल होगा ये जाना जाता है। अ. खाना नं. 9 और 3 में कोई ग्रह स्थित हो तो भाई के जन्म के बाद खाना नं. 9 के ग्रह का प्रभाव जातक पर शुरु होगा और सन्तान के जन्मदिन तक रहेगा। सन्तान के जन्मदिन के बाद इसका प्रभाव खाना नं. 5 के ग्रह को लेकर होगा। अगर भाव नं 5 और 9 के ग्रह आपस में मित्र हो तों जातक को उन ग्रहो से संबंधित शुभ फलों की प्राप्ती होगी और आपस में शत्रु हो तों जातक की परिस्थितियों में कोई खास परिवर्तन नहीं होगा । ब. खाना नं. 5 और खाना नं. 8 शत्रु या मंदे ग्रह बैठे हो तो खाना नं. 11 का ग्रह बिजली की तरह बुरे असर देना शुरु कर देगा जो खाना नं. 8 से सम्बन्धित संबंधियों या खाना नं. 5 से सम्बन्धित संबंधियों पर होगा। स. खाना नं. 11 अगर ख़ाली हो तो अपनी आय के सम्बन्ध में सोई हुई किस्मत का समय होगा। द. खाना नं. 10 और खाना नं. 5 में कोई न कोई ग्रह होने से दोनो घरों के ग्रह आपस में ज़हरी दुश्मन होंगे। जैसे खाना नं. 10 में चन्द्र और खाना नं. 5 में मंगल हो चाहे दोनो ग्रह आपस में मित्र है परन्तु जातक को आयु के 24वां (चन्द्र) और 28(मंगल) वां वर्ष माता (चन्द्र), भाई (मंगल) पर भलाा न होगा। ध. खाना नं. 9 को समुद्र माना है और खाना नं. 2 पहाड़ो का एक लम्बा सिलसिला। खाना नं. 9 से निकली मानसूनी हवा खाना नं. 2 से टकरा कर वर्षा करेगी। लेकिन अगर खाना नं. 2 ख़ाली हो तो खाना नं. 9 की हवा बिन बरसे निकल जायेगी। इसी प्रकार खाना नं. 2 में ग्रह हो और खाना नं. 9 ख़ाली हो तो पूर्वजों की धन-दौलत का ऐसे प्राणी को सिर्फ भ्रम ही होगा, लाभ न होगा। प. खाना नं. 2 तथा खाना नं. 9 दोनो भाव में अगर मित्र ग्रह हों तों जातक की भाग्यशक्ति उत्तम होगी। खाना नं. 2 में स्थित ग्रह की आयु में अपने पूवर्जों द्वारा अर्जित धन व यश का लाभ होगा लेकिन शत्रु ग्रह होने पर सिर्फ भ्रम ही होगा, वास्तव में कोई लाभ न होगा। खाना नं. 4,10 व 2 का इकट्ठा असर: किस्मत के मैदान का क्षैत्रफल खाना नं. 10 में स्थित ग्रह बताता है। मगर उस मैदान की मिट्टी की चमक खाना नं. 2 में स्थित ग्रह से और मैदान में कैसा पानी हो, यह खाना नं. 4 में स्थित ग्रह से पता चलता है। अगर खाना नं. 4 ख़ाली हो या उसमें पापी(शनि, राहु, केतु) हो तो जातक अपनी हिम्मत से बहुत कुछ बना तो लेगा मगर थैली में हाथ डालने पर कुछ न मिलेगा। लेखक के कहने का अर्थ यह है कि ऐसा जातक जिसकी कुंडली में 10 वें भाव में ग्रह हो मगर चतुर्थ भाव में या तो कोई भी ग्रह न हो या शनि, राहु और केतु में से कोई एक या एक से ज्यादा ग्रह स्थित हो तो ऐसा जातक अत्यन्त परिश्रम से सफलता प्राप्त करता है परन्तु उस सफलता का सुख स्वयं नहीं भोग पाता वरन् अन्य लोग उसकी सफलता का लाभ लेते हैं। लेकिन अगर मित्र ग्रह स्थित हों तो जातक का जीवन सम्पन्न व सुखी होता है, व्यवसायिक रुप से अत्यन्त सफल होता है तथा अपनी सफलता का सुख भी भोगता है। अगर खाना नं. 2 में कोई भी ग्रह स्थित न हो तो किस्मत का मैदान (खाना नं. 10) चाहे कितना ही लम्बा-चैड़ा हो उसमें शायद ही चमक होगी अर्थात दुनियावी ज़िंदगी का साज़ो-सामान और आराम शायद ही कभी प्राप्त होता होगा। खाना नं. 2 में कोई ग्रह बैठा हो और खाना नं. 10 खाली हो तो भाग्यशाली होते हुए भी जातक को अपने भाग्य को सवारनें में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ेगा। इस उदाहरण के द्वारा इस स्थिति को समझें कि मान लें कि आपकी कोई वस्तु डाकघर या रेलवे स्टेशन पर पहुॅंच गई हो, मगर उसको छुड़वाने के लिए अपनी पहचान का सबूत, माल छुड़ाने की रसीद खो गई हो जिसको ढूढंने के लिए कई कुछ किया, कई डाकिये भेजे, पर उनमें से कोई भी वापस न आया और रास्ता देखते देखते थक गया और उसके न मिलने के कारण उस वस्तु को डाकघर से छुड़वाने में असमर्थ रहे और उसके द्वारा मिलने वाले लाभ से वंंिचत रहे। इसी प्रकार खाना नं. 2 व 10 में कोई ग्रह न हो और खाना नं. 4 में कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो जातक की स्थिति रेगिस्तान में घुमते हुए उस यात्री की तरह होती है जिसे पीने के लिए पानी तो नज़र आता होगा मगर पता नहीं चलता होगा कि इस जगह पहंुचने का रास्ता किधर है। मृगतृष्णा में ऐसा प्राणी उम्मीदों पर उम्मीदें बांधता हुआ अपनी किस्मत के मैदान से बंधा हुआ पसीने के पानी से तरबतर होता चलेगा। यानि कि जातक के पास माया-दौलत होगी तो जरुर मगर कब अपनी जरुरत के लिए पूरे होगी इस बात का जबाव शायद ही कभी आयेगा।