विधाता ने हर चीज का समय नियत किया हुआ है और हर चीज व्यक्ति को उसी समय मिलती है जब ईश्वर की कृपा होती है। यही स्थिति ईशा के साथ हुई, उसे बहुत चाहने के बाद भी बारह वर्ष तक संतान नहीं हुई, और अंततः उसे 12 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के उपरांत पुत्री की प्राप्ति हुई। आइये देखते हैं कि ईशा की कुंडली में कौन से ऐसे ग्रह योग विद्यमान थे जिसके कारण ईशा को इतना लंबा इंतजार करना पड़ा। निर्मला जी एक रईस मारवाड़ी परिवार से हैं। उनके परिवार से हमारे संबंध काफी पुराने हैं। उन्होंने अपने पुत्र नितिन का विवाह लगभग तेरह वर्ष पूर्व अत्यंत धूम धाम से किया और बहुत ही सुंदर और सुशील बहू ईशा उनके घर आ गई। निर्मला जी बहुत ही खुश थीं, उनकी बरसों की तमन्ना जो पूरी होने जा रही थी। पिछले कुछ वर्षों से जहां भी वे कोई छोटा बच्चा देखतीं उसे प्यार करने को उनका जी मचल उठता और अब उन्हें इंतजार था कि कब नन्हें कन्हैया उनके आंगन में खेलेंगे और वे पूरे प्यार और दुलार से उसकी देखभाल करंेगी।
उन्हंे याद है कि जब नितिन हुआ था तो संयुक्त परिवार होने की वजह से वे सारा दिन रसोई या घर के अन्य काम काज में व्यस्त रहती थीं और नितिन को जी भर कर खिला नहीं पाती थीं। इसीलिए अब उनकी यह एक चाह थी कि वह अपना सारा लाड़ और प्यार अपने पोते या पोती को दें और उसके बचपन में अपना सारा खाली समय बिता दें। शुरू-शुरू में तो नितिन और ईशा ने घूमने-फिरने में दो वर्ष निकाल दिये और निर्मला जी को भी समझा दिया कि वे दो वर्ष से पहले बच्चे का मोह न करें। दो वर्ष बीतने के बाद भी जब ईशा ने उन्हें कोई खुशखबरी नहीं दी तो उनकी बेचैनी बढ़ने लगी। वे बार-बार ईशा से इस बाबत पूछतीं। जिद करके वे ईशा को डाॅक्टर के पास भी ले गईं। डाॅक्टर ने चेकअप कर सब कुछ ठीक बताया लेकिन उनकी आशा पूर्ण नहीं हो रही थी।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा और नितिन और ईशा ने शहर के सभी बड़े डाॅक्टरों से चेकअप करा लिया व इलाज भी कराया पर कोई नतीजा नहीं निकला। निर्मला जी ने कितनी ही पूजा रखवाई, मन्नतें मांगीं और सभी मंदिरों में जाकर भगवान से मिन्नतें कीं पर उनकी खुशियां मानो उनसे रूठ सी गई थीं। नितिन व ईशा ने विदेश जाकर भी टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए कई बार जतन किये पर उन्हें उसमें भी सफलता नहीं मिली। ईधर ईशा भी बहुत परेशान रहती थी। एक तरफ तो उसे मां न बनने का दुख था तो दूसरी ओर उसे यह डर था कि कहीं उसपर बांझ का तमगा न लग जाए। वह जहां भी जाती थी सब उससे एक ही सवाल पूछते थे। उसने कहीं भी आना जाना बंद कर दिया और अपने में सिमट कर रह गयी थी। पूरे घर की खुशियां मानो खत्म हो गयी थी। सभी के होते हुए भी घर में सन्नाटा सा रहता था। हारकर उन्होंने एक बच्चा गोद लेने का विचार बना लिया। निर्मला जी इसके लिए तैयार हो गईं।
छोटे बच्चे के लिए उनकी ममता ने उन्हें विवश कर दिया कि वे एक छोटा बच्चा अनाथालय से गोद ले लें। बच्चा गोद लेने का शुभ मुहूर्त निकालने के लिए जब वे अपने पंडित जी के पास गये तो उन्होंने नितिन और ईशा की कुंडली देख कर उन्हें कुछ समय के लिए रूकने के लिए कहा और कहा कि जब इतने साल इंतजार किया तो कुछ समय और करो। ईश्वर चाहेंगे तो निश्चित रूप से संतान होगी अन्यथा फिर बच्चा गोद ले लेना। नितिन और ईशा ने जब यह बात निर्मला जी को बताई तो वे बहुत खुश हुईं और फौरन हनुमान जी को सवा मन का प्रसाद बोल दिया। इसे कुदरत का करिश्मा कहें या उनकी दुआओं का फल कि छह महीने बाद ही ईशा ने सबको मनचाही खुशखबरी सुना दी और नौ महीने बाद एक स्वस्थ व सुंदर पुत्री को जन्म दिया।
पंडित जी का कहा पूरा सच हो गया। वे तो मानो सबके लिए भगवान का रूप हो गये। बारह वर्ष बाद उनके घर में खुशियां आई थीं। पूरे घर को दुल्हन की तरह सजाया गया और बच्ची के जन्म का जश्न पूरे धूम-धाम से मनाया गया। और अब ईशा फिर से गर्भवती है और हम ईश्वर के इस चमत्कार को सलाम करते हैं कि कहां तो इतना इलाज कराने के बाद भी एक भी संतान नहीं हुई और कहां अच्छा समय आने पर भगवान उसे फिर से मां बनने की खुशी प्रदान कर रहे हैं। आइये करंे नितिन और ईशा की कुंडली का विवेचन और जानें सितारों का रहस्य: नितिन: इनकी कुंडली में पंचमेश ग्रह शुक्र बारहवें भाव में स्थित है, तथा चंद्र एवं लग्न से अकारक बृहस्पति पंचम भाव में स्थित है।
बृहस्पति ग्रह संतान कारक भी है, एवं संतान भाव में ही होने से जैसा कि कहा गया है कि कारको भाव नाशकः स्थान हानिः करो जीवः। इन सभी ज्योतिष शास्त्र के नियम के अनुसार नितीन को इतने विलंब से संतान की प्राप्ति हुई। इस संबंध में अन्य ग्रह योग पर भी विचार करें तो पंचम भाव पर सूर्य एवं मंगल दो पाप ग्रहों की दृष्टि है तथा पंचम से पंचम स्थान अर्थात् नवम स्थान पर भी शनि की पूर्ण दृष्टि है एवं नवमेश बुध भी पाप ग्रहों के सान्न्ािध्य में स्थित है। विंशोत्तरी दशा के अनुसार नितिन की नवंबर 2008 तक बृहस्पति की दशा चल रही थी, जिसके कारण संतान होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी।
अब इनकी कुंडली में सकारात्मक पक्ष पर विचार करें कि इतनी देरी तथा बाधाओं के बाद भी आखिर इन्हें संतान सुख कैसे प्राप्त हुआ? सूक्ष्मता से विचार करें तो इनका पंचमेश ग्रह शुक्र चलित में बारहवें स्थान से हट कर लग्न में है तथा नवांश कुंडली में शुक्र तुला में है, पंचम स्थान पर भाग्येश बुध की भी दृष्टि है, लग्नेश और कुटम्बेश शनि सप्तम केंद्र में होने से बलवान हंै। इन सभी शुभ ग्रहों के संयोग से इनको अंततः संतान प्राप्त हुई। विंशोत्तरी दशा पर विचार करें तो जब तक इनकी संतान बाधक ग्रह बृहस्पति की महादशा चल रही थी, तब तक संतान प्राप्ति उपाय आदि करने पर भी नहीं हुई। जब लग्न तथा चंद्र लग्न से योगकारक ग्रह बलवान शनि की महादशा प्रारंभ हुई तथा शनि में शनि की ही अंतर्दशा में उन्हें सुंदर एवं स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई। पत्नी (ईशा): इनकी कुंडली में संतान संबंधी विशेष बड़ा अशुभ योग नहीं है।
केवल कुटुम्ब स्थान में राहु की स्थिति एवं साथ ही शनि की कुटुम्ब स्थान पर पूर्ण दृष्टि होने से कुटुम्ब वृद्धि में विलंब दर्शाता है तथा विंशोत्तरी दशा में इनकी अशुभ शनि की महादशा के कारण संतान प्राप्ति का सुख इन्हें नहीं मिल पा रहा था, शनि में अंतिम अंतर्दशा पंचमेश बलवान एवं शुभ बृहस्पति की अंतर्दशा में ही इनको सुंदर पुत्री की प्राप्ति संभव हो पाई। पुत्री: पुत्री की कंुडली में दशम स्थान में स्वगृही मंगल होने से रूचक पंचमहापुरूष योग तथा कुलदीपक योग बन रहा है। मंगल के साथ शुभ ग्रह भाग्येश बृहस्पति होने से यह योग अत्यंत शुभ फलदायी होगा जिससे भविष्य में बालिका को उच्च शिक्षा, अच्छा व्यवसाय, धन, मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होगी।