देश के प्रसिद्ध तांत्रिक जिनको देश के सभी राजनीतिज्ञ, उच्च पदाधिकारी, उद्योगपति आदि काफी मानते हैं, किसी कारण से फेरा में फंस गए और उनको जेल जाना पड़ा। उनके करीबी मित्रों व प्रबंधकों ने उनके दिल्ली में अति समृद्ध जगह पर बने घर/आश्रम का दक्षिण भारत के कई प्रसिद्ध वास्तुकारों से वास्तु निरीक्षण करवाया और उन्होंने जो भी बदलाव बताए वे किए गए परंतु जमानत की अर्जी बार-बार नामंजूर होती रही।
सरकारी परेशानी के बाद हमेशा जी हजूरी करने वाले लोगों की भीड़ तितर बितर हो गई थी व लोग दिन में भी वहां जाने से डरने लगे थे। वास्तु दोष विश्लेषण व निवारण प्लाॅट के दक्षिण पश्चिम में दरवाजा था जिस पर ताला लगवाकर बंद करवाया गया था। दक्षिण-पश्चिम का द्वार घर के मालिक को घर से दूर कर देता है।
आर्थिक एवं मानसिक संताप देता है एवं अनचाहे खर्चे और मुकदमेबाजी तक करा देता है। ताला लगने से उसका दोष खत्म नहीं होता। क्योंकि ऊर्जा जमीन से लगकर 60 प्रतिशत चलती है 2 फीट तक 80 प्रतिशत व 3 फीट तक 90 प्रतिशत अच्छा या बुरा प्रभाव रहता है। द्वार को हटाकर चारदीवारी जैसी दीवार बनवाने को कहा और दक्षिण पूर्व में रखे जनरेटर के साथ दक्षिण में द्वार बनाने को कहा गया। आश्रम में बनी बिल्डिंग के दक्षिण में बने दरवाजे को पहले आए एक वास्तुकार ने बंद करा दिया था जिसका कोई लाभ नहीं मिला।
उस द्वार को खुलवाया गया जिससे नौकरों के आने जाने में हो रही असुविधा दूर हो गई। वास्तु के मूल सिद्धांतों के अनुसार आवश्यकतानुसार दक्षिण का दरवाजा रह सकता है परंतु दक्षिण-पश्चिम में यह पूर्णतया वर्जित है। दक्षिण-पश्चिम में दरवाजा होने का दोष था तो पं. जी को पूरा विश्वास था कि उत्तर पूर्व में कोई न कोई दोष अवश्य होगा।
रात के अंधेरे व पेड़-पौधों के झुरमुट के कारण कुछ ठीक से दिख नहीं रहा था। परंतु कुछ देर बाद अचानक उन्होंने देखा कि जमीन से एक पाइप बाहर निकला हुआ है। गार्ड से पता चला कि वहां पर जमीन के अंदर जनरेटर रखा था जो कि काफी बड़ा था।
इसे विशेष तौर पर भावनगर (अलंग) गुजरात के एक भक्त द्वारा भेंट किया गया था। उत्तर पूर्व में जनरेटर होने से भारी मानसिक तनाव, खर्च और वैचारिक मतभेद होते हैं। वहां से जनरेटर हटाने के लिए कहा गया और उसे यदि जमीन के ऊपर रखना हो तो दक्षिण में बाद में बनी दीवार के पास रखें और यदि जमीन के अंदर रखना हो तो बिल्डिंग के पूर्वी प्रवेश द्वार के बाद दक्षिण पूर्व के कोने से 2/9 भाग छोड़कर रखना चाहिए। पंडित जी ने ऐसा ही करने की सलाह दी। दक्षिण में बनी दीवार से कुछ लाभ था परंतु इससे सारी लुक ही खराब हो रही थी तथा मुख्य दोष (उत्तर पूर्व में आग) का कोई समाधान नहीं हो रहा था इसलिए इसको भी बाद में तुड़वाने की सहमति दे दी गई।
सभी सुझावों केे कार्यान्वित होने के कुछ ही दिनों के बाद कई बार रद्द हुई जमानत कुछ ही दिनों में हो गई। इससे प्रबंधन के ए.बी.सी. विश्लेषण का वह महत्वपूर्ण सूत्र पुनः स्थापित होता है जिसके अंतर्गत एक दो महत्वपूर्ण दोष दूर कराने से अभीष्ट की प्राप्ति हो सकती है परंतु सात-आठ गौण दोष ठीक कराने से भी वांछित लाभ नहीं मिलता।
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