वास्तुशास्त्र के नियमानुसार कृषि योग्य भूमि के दक्षिण पश्चिम में भारी ऊंची वनस्पति, दक्षिण पूर्व में छोटी वनस्पति एवं उŸार पूर्व में सबसे छोटी वनस्पति लगानी चाहिए। बांस, बेंत, जलने वाली वनस्पति दक्षिण पूर्व में व केले, धान जलीय भूमि में लगाने चाहिए।
कृषि में सिंचाई हेतु नलकूप उŸार पूर्व में लगवाएं और लोहे के पाइप न लगवाकर प्लास्टिक के पाईप लगवाएं। बिजली के बोर्ड आदि दक्षिण पूर्व में लगवाएं। कृषि फार्म की जुलाई उŸार पूर्व से शुरू करें और दक्षिण पश्चिम में समाप्त करें। रोपण कार्य भी इसी प्रकार करें। फसल की देखभाल के लिए वाॅच टावर दक्षिण पश्चिम में लगवाएं।
टैªक्टर, हल, लोहे के यंत्र आदि दक्षिण पश्चिम में रखें। फसल काटकर दक्षिण पूर्व में रखें। पशुओं के रहने का घर उŸार पश्चिम में बनवाएं। पशुओं की खाने की नांद उŸार पश्चिमी दीवार पर बनवाएं। कृषि के लिए समतल भूमि होनी चाहिए। कृषि भूमि की ढलान पूर्व या उŸार की ओर रखें। कृषि फार्म आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए।
उŸार की ओर कटीली तार की फंेसिंग रखें तथा दक्षिण पश्चिम में दीवार लगवाएं। नई फसल की बुआई मंगल तथा शनिवार के दिन प्रारंभ नहीं करनी चाहिए। फसल की बुआई बांई से दांयी दिशा में और कटाई बांई से दांयी दिशा में होनी चाहिए। बेचने वाले अनाज उŸार पश्चिम में या पूर्व की ओर वाले दरवाजे से बाहर जाएं तो शुभ होता है।
खेती में लगने वाली कम्पोस्ट खाद दक्षिण में बनाएं तथा रसायनिक खाद खेत के पश्चिम में रखें। अनाज की ढुलाई करने वाले वाहन, ट्रक, ट्रैक्टर आदि उŸार या पूर्व दिशा की ओर खड़े करने चाहिए। फूलों की खेती के लिए पूर्व दिशा की ओर लाल, गुलाबी, उŸार दिशा की ओर सफेद और पीले, दक्षिण दिशा की ओर नीले, पश्चिमी दिशा की ओर पीले, जामुनी फूल लगाने चाहिए।
खेत के बीच में कोई टीला या ऊंचा स्थान न बनाएं। खेत में पूर्व और उŸार दिशा के अतिरिक्त कहीं भी गडढे न रखें। दक्षिण पश्चिम दिशा के अतिरिक्त कहीं भी मिट्टी ऊंची न रखें। खेत के बीचों बीच उŸार पूर्व मेें आग नहीं जलानी चाहिए। खेत में कार्य करते समय उŸार पूर्व की ओर अपना मुंह रखना चाहिए।
कृषि फार्म में मंदिर न बनाएं। अगर है तो उसमें प्रतिदिन पूजा करें। कृषि फार्म से सटा हुआ दक्षिण पश्चिम ख्ेात बेचें, उŸार पूर्व का नहीं। तालाब बनाकर मछली पालन करना हो तो केवल आधे खेत में उŸार पूर्व दिशा में किया जाना चाहिए।
भेड़, बकरियां पालना हो तो फार्म के दक्षिण पश्चिम की ओर पालें। पाॅल्ट्री फार्म का व्यवसाय करना हो तो उसे पश्चिम में करें। सूर्य डूबने के बाद खेती का कोई कार्य नहीं करना चाहिए। सिंचाई का पानी ईशान से प्राप्त करके अंडर ग्राउंड के सहारे दक्षिण पश्चिम में लाकर छोड़ना चाहिए।
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