किसी भी राष्ट्र, शहर या काॅलोनी के बेहतर विकास के लिए उसके वास्तु का अनुकूल होना नितांत आवश्यक है। यदि वास्तु अनुकूल न रहे तो राष्ट्र या शहर के विकास में कई बाधाएं आती हैं। गया शहर के वास्तु का जहां तक सवाल है, गया के दक्षिण एवं पश्चिम में स्थित पहाड़ियां इसकी मजबूती, स्थायित्व एवं नगरवासियों के आत्म-विश्वास को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं।
गया के पूर्व की ओर विशाल फल्गु नदी का होना, पूर्वी भाग का नीचा एवं खुला होना, साथ ही शहर के सारे नालों का प्रवाह पूर्व की ओर होना गया की प्रसिद्धि, आध्यात्मिक विकास एवं मान-सम्मान के लिए महत्वपूर्ण कारक है। तभी तो गया को गया जी के नाम से जाना जाता है।
दूर-दूर से आकर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। गया मोक्ष की नगरी के रूप में विश्वविख्यात है जिसके फलस्वरूप गया की प्रसिद्धि कालांतर से देश विदेश में था, है एवं सदैव रहेगी। गया की नैसर्गिक प्राकृतिक स्थिति ही ऐसी है कि महात्मा बुद्ध जैसे युग पुरुष का भी यहां पदार्पण हुआ और उन्होंने यहां तपस्या करके अद्वितीय यश प्राप्त किया। गया की वास्तु में प्रतिकूलता इसके उत्तर-पूर्व में रामशिला पहाड़ का होना है, जो गया के लोगों के मानसिक एवं आर्थिक विकास में सबसे बड़ा अवरोधक है।
गया की नालियों का अवरूद्ध होना भी इसके आर्थिक प्रगति में बाधक है। सर्वत्र कूड़ा-करकट का होना गया के वास्तु को खराब कर रहा है। गया की वास्तु को ठीक रखने के लिए गया की उत्तरी क्षेत्र में अधिक से अधिक तालाब, झरना एवं उसमें फव्वरा लगाई जाए, साथ ही साथ गया के पूर्व में स्थित नदी में पानी का समुचित प्रवाह रखा जाए तो गया वासियों के आर्थिक, मानसिक एवं समृद्धि में मददगार साबित होगा।
रामशिला पर्वत के उत्तर में काॅलोनी का निर्माण करना भी यहां के वास्तु के लिए लाभप्रद होगा। गया की नालियों को साफ रखकर उसमें पानी का उचित प्रवाह रखना आवश्यक है, तभी गया की धार्मिक प्रगति के साथ-साथ समृद्ध आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति की आशा की जा सकती है।
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