वास्तु के दृष्टिकोण से वैष्णो देवी मंदिर
वास्तु के दृष्टिकोण से वैष्णो देवी मंदिर

वास्तु के दृष्टिकोण से वैष्णो देवी मंदिर  

कुलदीप सलूजा
व्यूस : 10159 | अप्रैल 2014

पवित्र भारत भूमि का कण कण देवी-देवताओं के चरण रज से पवित्र है। इसलिए भारत में हर जगह तीर्थ है। परन्तु कुछ तीर्थ ऐसे भी हैं जो भारत ही नहीं पूरे विष्व की धर्मपरायण जनता को अपनी ओर आकर्षित करते हंै। इन तीर्थों के दर्षन हर वर्ष लाखों स्त्री पुरूष करते हैं, और अपना जीवन सफल बनाते हुए अपनी मनोकामनाओं का वांछित फल पाते हैं। इनमें से ही एक तीर्थ है जम्मू के पास स्थित माता वैष्णो देवी का दरबार।

यहां देवी महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली तीन भव्य पिण्डियों के रूप में विराजमान हैं। चाहे गर्मी, सर्दी या बरसात हो, माता वैष्णोदेवी के दरबार में चैबीसों घंटे, 365 दिन हर समय ही भक्तों का मेला लगा रहता है और खासकर नवरात्रों के समय तो भक्तों की भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि इस दौरान मां के दर्षन करने के लिए भक्तों को तीन से चार दिन तक का इंतजार भी करना पड़ता है।

यहां आस्था से लवरेज धर्मपरायण जनता ही नहीं वरन सभी आयु वर्गों के लोग बच्चे, बूढ़े, जवान, नवविवाहित युगल, माता के दरबार में दर्षन करने आते हैं। आखिर ऐसा क्या आकर्षण है मां के इस मंदिर में? सम्पूर्ण भारत में मां के मंदिर तो और भी कई जगह हैं, पर मां के इस मंदिर में इतनी रौनक क्यां? इसका कारण है इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति का भारतीय वास्तुषास्त्र एवं फंेगषुई के सिद्धांत के अनुरूप होना।

भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता है। परंतु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध है, चाहे वह किसी भी ध् ार्म से संबंधित हो, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती है। ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। उदाहरण के लिए ज्योर्तिंलिंग महाकाले वर उज्जैन, पशुपतिनाथ मंदिर, मंदसौर इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कंुआ, बोरवेल, इत्यादि होता है।


करियर से जुड़ी किसी भी समस्या का ज्योतिषीय उपाय पाएं हमारे करियर एक्सपर्ट ज्योतिषी से।


उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरों की तुलना में ज्यादा ही होती है। वास्तु के सिद्धांत: -त्रिकुट पर्वत पर स्थित मां का भवन (मंदिर) पष्चिम मुखी है जो समुद्रतल से लगभग 4800 फीट ऊंचाई पर है। मां के भवन के पीछे पूर्व दिषा में पर्वत काफी उंचाई लिए हुए हंै और भवन के ठीक सामने पष्चिम? दिषा में पर्वत काफी गहराई लिए हुए हैं जहां त्रिकुट पर्वत का जल निरंतर बहता रहता है।

-भवन के उत्तर दिषा के ठीक अंतिम छोर पर पर्वत में एकदम उतार होने के कारण काफी गहराई है। उत्तर दिषा में विस्तृत गहराई पूर्व से पष्चिम की ओर बढ़ती चली गई है।

-भवन के दक्षिण दिषा में पर्वत काफी ऊंचाई लिए हुए है जहां दरबार से ढाई किलोमीटर दूर भैरव जी का मंदिर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 6583 फीट है और यह ऊंचाई लगभग पष्चिम नैर्ऋत्य तक है जहां पर हाथी मत्था है।

-गुफा का पुराना प्रवेष द्वार जो कि काफी संकरा (तंग) है वहां से लगभग दो गज तक लेटकर या काफी झुककर आगे बढ़ना पड़ता है, तत्पष्चात लगभग बीस गज लम्बी गुफा है। गुफा के अंदर टखनों की ऊंचाई तक षुद्ध जल प्रवाहित होता है जिसे चरण गंगा कहते हैं। वास्तु का सिद्धांत है कि जहां पूर्व में ऊंचाई हो और पष्चिम में निरंतर जल हो या जल का प्रवाह हो वह स्थान धार्मिक रूप से ज्यादा प्रसिद्धि पाता है।

-आज से लगभग 26-27 वर्ष पूर्व प्रवेष द्वार संकरा होने के कारण दर्षनार्थियांे को आने जाने में काफी समय लगता था और अन्य यात्रियों को बहुत देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी जिसके कारण सीमित संख्या में लोेग दर्षन कर पाते थे। तब भवन की उत्तर ईषान कोण वाले भाग में सन् 1977 में दो नई गुफाएं बनाई गई इनमें से एक गुफा में से लोग दर्षन करने अंदर आते हैं और दूसरी गुफा से बाहर निकल जाते हंै इन दोनों गुफाओं के फर्ष का ढाल भी उत्तर दिषा की ओर ही है। ये दोनों ही गुफाएं भवन में ऐसे स्थान पर बनीं जिस कारण इस स्थान की वास्तुनुकूलता बहुत बढ़ गई है।

फलस्वरूप इस मंदिर की प्रसिद्धि में चार चांद लग गए हंै, इन गुफाओं के बनने के बाद इस स्थान पर दर्षन करने वालों की संख्या पहले की तुलना में कई गुना बढ़ गई है, और वैभव भी बहुत बढ़ गया है। फंेगषुई के सिद्धांत: फेंगषुई का सिद्धांत है कि, किसी भी भवन के पीछे की ओर ऊंचाई हो, मध्य में भवन हो तथा आगे की ओर नीचा होकर वहां जल हो, वह भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। इस सिद्धांत में किसी दिषा विषेष का का महत्व नहीं होता है। मां वैष्णोदेवी भवन के पूर्व में त्रिकुट पर्वत की ऊंचाई है।

मंदिर के अंदर मां की पिण्ड़ी के आगे पष्चिम दिषा मेें चरण गंगा हैं जहां हमेषा जल प्रवाहित होता रहता है। भवन के बाहर सामने पष्चिम दिषा में पर्वत में काफी ढलान है जहां पर पर्वत का पानी निरंतर बहता रहता है। इस प्रकार माता वैष्णोदेवी का दरबार वास्तु एवं फेंगषुई दोनों के सिद्धांतों के अनुकूल होने से माता का यह दरबार विष्व में प्रसिद्ध है। इन विषेषताओं के कारण ही यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, खूब चढ़ावा आता है और भक्तों की मनोकामना भी पूर्ण होती है।


क्या आपकी कुंडली में हैं प्रेम के योग ? यदि आप जानना चाहते हैं देश के जाने-माने ज्योतिषाचार्यों से, तो तुरंत लिंक पर क्लिक करें।




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.