सर्वव्यापी गणपति
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सर्वव्यापी गणपति  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 7406 | जनवरी 2007

ईश्वर की प्राप्ति के लिए उसकी भक्ति और उपासना जरूरी है। ईश्वर के वंद्य आदि बीज प्रणवरूप श्री गणेश हैं। गणेश जी का प्रथम रूप ओंकार है। ओंकार ही विश्व बीज, वेद बीज, मंत्रबीज महामंत्र है। ओंकार ही सृष्टि बीज परब्रह्म से प्रकट हुआ प्रथम अंकुर है।

श्री गणेश जी देवता सृष्टि के आद्य तत्व हैं। उन्हीं को प्रथम वंदन करके मंगलाचरण किया जाता है। अमंगल जन्म मृत्यु का चक्र रोकने में समर्थ मंगल मूर्ति श्री गणेश ही हैं। श्री गणपत्यथर्वशीर्ष में कहा गया है मंगल कार्यों के आरंभ मंे सबसे पहले गणपति जी के पूजन का यही कारण है।

जिस प्रकार मंत्र के आरंभ में ओंकार का उच्चारण आवश्यक है। उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर गणपति की पूजा अनिवार्य है। यह परंपरा शास्त्रीय है। गणपति का स्वस्तिक रूप ‘गणपति स्वस्तिक रूप’ में श्री प्रसिद्ध है। उसी वामावर्त स्वस्तिक में चारों ओर गणपति का बीज मंत्र ‘गं’ विराजमान है।

यह ध्यान से देख लीजिए कि दक्षिणावर्त स्वस्तिक में वही बीज मंत्र गं उसके दूसरी ओर विराजमान है। यही बीज मंत्र गं ब्रह्मणस्पति के मंत्र के आदि तथा अंतिम अक्षर से निष्पन्न है। यह बात त्रिपुरातापिनी उपनिषद में स्पष्ट कही गई है। ‘एव’ स्वस्तिक प्रसिद्ध स्वस्तिन इंद्रो बृद्ध श्रवाः साम वेद संहिता के इस अंतिम मंत्र में उल्लिखित इंद्र, पूषा, ताक्ष्र्य एवं बृहस्पति, ये चार देवता आकाश में तारों के रूप में इस प्रकार विराजमान हैं कि उनके ऊपर से नीचे के तथा दाहिने पाश्र्व से बाएं पाश्र्व के बीच रेखा कर दी जाए तो स्वस्तिक बन जाता है।

उक्त मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आने से स्वस्तिक बना है। श्री पाण् िानी ने श्री (6/3/115 सूत्र में) स्वस्तिक को स्मरण किया है- ‘कलौ चंडी विनायकौ’ विनायक रहस्य कलि में चंडी और विनायक शीघ्र फलप्रद देवता माने गए हैं। सभी कार्यों के आरंभ में विनायक की पूजा अवश्य होती है।

विनायक शब्द के विशिष्ट नायक विगत हैं। वैदिक मत में सभी कार्यों के आरंभ में जिस देवता का पूजन होता है वह विनायक है। विनायक की पूजा प्राप्त भेद से सुपारी, पत्थर, मिट्टी, हल्दी की बुकनी, ‘गोमय’ दूर्वा आदि में आवाहनादि के द्वारा होती है। इन सभी पार्थिक वस्तुओं में गणेश व्याप्त हैं। इसके अनेक नाम हैं। उ

नमें विनायक शब्द एक विलक्षण अर्थ का प्रत्यायक है। विनायक चतुर्थी का व्रत या उत्सव सिंहस्थ सूर्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी और हस्त नक्षत्र के योग आदि के बुधवार में पड़े तो इसका विशेष महत्व माना जाता है। अतः कलियुग में अनेक प्रकार की विघ्न बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विनायक श्री गणेश जी की आराधना करनी चाहिए।

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