तंत्राचार्य श्रीरावण के अनुसार- उच्चाटनं स्वदेशादेभ्र्रंशनं परिकीर्तितम् जिस कृत्य से किसी भी प्राणी को स्वस्थान से हटा दिया जाय, वही उच्चाटन कर्म कहलाता है। दुर्गाजी उच्चाटन कर्म की अधिष्ठित देवता हैं। निर्धारित दिशा उत्तर-पश्चिम है। सूर्योदय से रात्रि तक 6 ऋतुओं का वर्णन रावणजी ने रावणसंहिता में किया है। उनके मत से प्रत्येक चार घंटे एक ऋतु होती है। तदनुसार सूर्योदय से 4 घंटे तक वसंत, 4 से 16 घंटे तक शरद, 16 से 20 घंटे तक हेमंत तथा 20 से 24 घंटे तक शिशिर ऋतु का विधान है। लंकेश्वर रावण के मत से उच्चाटनकर्म वर्षा ऋतु अर्थात् सूर्योदय पश्चात् 8 से 12 घंटे के काल में करना चाहिए। फिर जब षष्ठी, चतुर्थी, अष्टमी विशेष रूप से प्रदोष को यदि शनिवार पड़े तो उच्चाटन कर्म करना नेष्ट है।
जब प्रतिकूल ग्रह हांे तब उच्चाटन आदि अशुभ कर्म करना नेष्ट कहा गया है। चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी तिथियां उच्चाटन हेतु नेष्ट कही गई है। अश्विनी, भरणी, आद्र्रा, धनिष्ठा, श्रवण, मघा, विशाखा, कृतिका, पूर्वाफाल्गुणी व रेवती नक्षत्रों में उच्चाटन कर्मों में सफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त दिन के मध्य भाग में उच्चाटन कर्म करना नेष्ट है। कर्क या तुला लग्न उदित होने पर उच्चाटन करना नेष्ट है। जब वायु तत्व उदित हो तब उच्चाटन कर्म करना चाहिए। उच्चाटन कर्म करने हेतु धूम्रवर्णी देवी का ध्यान करना चाहिए। शंकर के मत से उच्चाटन कर्म काल में सुप्तावस्था के रूप में ध्यान किया जाना चाहिए। उच्चाटन हेतु अर्द्ध कुक्कुटासनावस्था होनी चाहिए।
रावण के मत से उच्चाटन हेतु ऊंट के चर्म का या लाल कंबल का आसन ही नेष्ट है। उच्चाटन में वज्र मुद्रा धारण करने से शीध्र सिद्धि होती है। उच्चाटन हेतु वायव्य कोण में त्रिकोणीय कुंड बनाना चाहिए। घोड़े के दांतों को मनके के रूप में मनुष्य के केशों में पिरोकर जप करने से उच्चाटन होता है। आधुनिक काल में रूद्राक्षों या कमलगट्टों का प्रयोग किया जाना चाहिए। अग्नि कोण की ओर मुख करके वायव्य कोण में स्थित कुंड में उच्चाटनार्थ होम किया जाता है। उच्चाटन कर्म में मनुष्य के बालों से या कपास व नीम के बीज, जौ की मट्ठे में मिश्रित हो, ऐसे द्रव्य से अथवा कूटशाल्मली, तिल व जौ से हवन करना चाहिए। होम सामग्री के अभाव में घी से होम करना चाहिए।
रावण ने लिखा है- द्रव्याशक्तौ घृतं होमे त्वशक्तौ सर्वतो जपेत् यदि घी भी न हो तो मात्र मंत्र जाप कर लेना चाहिए। फिर शिवजी का दिया गया निर्देश अवश्य याद रखना चाहिए। उन्होंने रावण से कहा था- न देवाः प्रतिगृहणति मुद्राहीनां यथाऽऽतिम् मुद्रयैवेति होतव्यं मुद्रहीनं न भोक्ष्यति अर्थात् स्मरण रहे कि बिना मुद्रा बनाए होम में जो आहुति दी जाती है, उसे देवगण भी स्वीकार नहीं करते। अतः सदैव मुद्रा बनानी चाहिए। जो मूर्ख मुद्रा रहित होकर होम करते हैं वह स्वयं पाप के भागी होकर यजमान को भी दोष लगवा देते हैं। रावण संहिता में वर्णित उच्चाटन कर्म ऊँ नमो भगवते रुद्राय दंष्ट्रकरालाय अमुकं स्वपुत्रबांधवै सह हन हन दह दह पच पच शीघ्रमुच्चाटय उच्चाटय हुं फट् स्वाहा ठः ठः।
पहले उक्त मंत्र को 108 जप करके सिद्ध करें। फिर जिसका उच्चाटन करना हो उसका नाम लेकर मंत्रोच्चारण करते हुए कौए व उल्लू के पंखों से 108 बार होम करें। एक छोटा सा शिवलिंग बनाकर उस पर ब्रह्मदण्डी व चित्ता भस्म का लेपन करें। फिर शनिवार को सायंकाल सफेद सरसों व इस शिवलिंग को अभिमंत्रित कर जिस भी घर में डाल देवे, उस घर के स्वामी का उच्चाटन हो जाएगा। इस प्रयोग में गुरु परम आवश्यक है क्योंकि रावणसंहिता में लिखा है- पुस्तके लिखिता विद्या नैव सिद्धिप्रदा नृणाम्। गुरुं विनापि शास्त्रेऽस्मिन्नाधिकारः कथंचन।। बिना गुरु के तंत्रानुष्ठान करना पूर्णतया निषिद्ध व वर्जित कहा गया है।