वास्तुदोष निवारण के लिए: शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रातः मिट्टी की एक नई मटकी लाएं और उसे जल से भर लें। फिर उस पर स्वास्तिक का निशान बनाकर उसे ईशान कोण में रख दें। अब उसमें ग्यारह कौड़ियां, ग्यारह गोमती चक्र और ग्यारह इलायची डालकर उसे उसके ढक्कन से ढक दें। फिर गणेश को प्रतिष्ठापित करें। ध्यान रहे, मटकी का पानी पीना नहीं है। दूसरे दिन मटकी का जल गमले में डाल दें और कौड़ियां व गोमती चक्र धोकर अलग रख दें। बचा हुआ पानी और इलायची पौधों में डाल दें। अब मटकी में पानी भर कर वही क्रिया फिर से दोहराएं।
वही कौड़ियां व गोमती चक्र प्रयोग में लाएं। यह नौ दिन तक करते रहें। पूर्णमासी को मटकी के जल को अपने घर तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठान मंे फूल द्वारा छिड़क दें। गणेश जी को अपने मंदिर में रख लें, ग्यारह कौड़ियों, ग्यारह गोमती चक्रों और इलायची युक्त मटकी को किसी चैराहे पर ले जाकर फोड़ दें और पीछे मुड़कर न देखें। घर आकर हाथ पांव धो लें, कपड़े बदल लें। बिना तोड़ फोड़ के वास्तु दोष निवारण का यह उपाय बहुत कारगर है।
इसमें श्रद्धा और विश्वास आवश्यक है। स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए: शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार की शाम को लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र के समीप बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें और उस पर थाली रखकर उसमें अष्टदल बना लें। फिर उस पर श्री यंत्र मुद्रिका स्थापित कर लें। श्री यंत्र मुद्रिका सोने या चांदी की हो सकती है। मंत्र जपते हुए 51 बार उसे गुलाब जल मिश्रित जल से अभिषिक्त करें, धूप दीप दिखाएं, खीर का भोग लगाएं, फिर श्रद्धा से दो माला इसी मंत्र का जप करें।
माला कमलगट्टे की होनी चाहिए। जल पेड़ पौधों में डाल दें, प्रसाद बांट दें, अंगूठी पुरुष दाएं हाथ की तर्जनी में और महिला बाएं हाथ में पहने। यह क्रिया श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक करें, लक्ष्मी हर पल साथ रहेगी। मंत्र इस प्रकार है - ¬ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः भाई-भाई में वैमनस्य दूर करने के लिए: यदि भाइयों के लग्नेश और तृतीयेश आपस में शत्रु हों, तो उनके मध्य विवाद एवं शत्रुता रहती है, जिसके फलस्वरूप घर में क्लेश रहता है।
ऐसे में निम्नलिखित ज्योतिषीय उपाय करें। रोटी बनाते समय प्रथम रोटी गाय के निमिŸा तथा अंतिम कुŸो के निमिŸा अवश्य बनाएं और नियमित रूप से गाय एवं कुŸो को खिलाते रहें, इससे भाई-भाई का आपसी वैमनस्य दूर होगा और परिवार में शांति बनी रहेगी।
सास-बहू में अनबन दूर करने के लिए: सास-बहू की आपस में न बनती हो, तो समझिए महिला की कुंडली में चतुर्थ भाव में निर्बल चंद्र है, लग्नेश व सप्तमेश निर्बल हैं और चतुर्थ भाव पापकर्तरि योग में है। ऐसी स्थिति में परिवार के मुखिया को चाहिए कि वह प्रत्येक माह की अमावस्या को पानी में थोड़ा कच्चा दूध व शक्कर मिलाकर पीपल के वृक्ष पर चढ़ाए। साथ ही पीपल के वृक्ष के समीप तिल के तेल का दीपक जलाए।
स्थिति में सुधार महसूस करेंगे। रोग निवारण के लिए: रोग पीड़ा शांति के लिए गोमती चक्र को पूजा स्थल में स्थापित करें। शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से उस पर 53 लाल पुष्प चढ़ाना शुरू करें और आठ दिनों तक चढ़ाते रहें। प्रयोग समाप्त होने पर गोमती चक्र को किसी निर्जन स्थान पर डाल दें। पुष्प किसी भी वृक्ष के नीचे रख दें, या विसर्जित कर दें। डेंगू के प्रकोप से बचाव के लिए: सप्ताह में तीन किलो मठरी तथा दो किलो गुड़ गरीबों को दान करें।
यह क्रिया शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से शुरू करें और सप्ताह में तीन बार करंे, डेंगू की चपेट से बचे रहेंगे। जो इसकी चपेट में हैं, उनके नाम से भी यह दान शुरू कर सकते हैं, ईश्वर चाहेगा तो लाभ अवश्य पहुंचेगा। श्रद्धा का होना आवश्यक है।
सकारात्मक ऊर्जा के लिए: घर में देवी देवताओं पर चढ़ाए गए हार-फूल आदि सूख जाने पर अगले दिन हटा देने चाहिए, अन्यथा ऋणात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। इसी प्रकार घर के दरवाजे पर बांधे गए फूल-पŸो सूख जाने पर तुरंत हटा लेने चाहिए। शयन कक्ष बदलें: जब भी घर में किसी सदस्य को परेशानी हो, या कोई विकट समस्या आ खड़ी हो, उसका शयन कक्ष बदल देना चाहिए।
यदि यह संभव न हो, तो कम से कम उसे अपने शयन करने का स्थान बदल लेना चाहिए। ऐसा करने से उसकी समस्याओं में कमी आ जाएगी। किसी स्थान विशेष पर धनायनों की अधिकता से ऐसा होता है। स्थान बदलने से स्थिति बहुत अनुकूल हो जाती है।