मरने से पहले की सोच
मरने से पहले की सोच

मरने से पहले की सोच  

ओशो
व्यूस : 8525 | आगस्त 2010

मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं - हमें संन्यास लेना है; लेकिन जरा बेटी की शादी हो जाए; क्योंकि अगर शादी न हुई और हमने संन्यास ले लिया तो अड़चनें आ जाएंगी, शादी करना मुश्किल हो जाएगा। और किसी तरह खोज भी लिया वर तो बारात में कोई सम्मिलित न होगा। एक दफा यह लड़की की शादी हो जाए तो मंै संन्यास लेने के लिए तैयार हूं। लेकिन ये काम कहीं इतनी आसानी से हल होते हैं? लड़की की शादी हो जाएगी; पत्नी बीमार पड़ी है, कल मर जाएगी तो? अर्थी में भी लोग सम्मिलित होने वाले नहीं हैं। अर्थी पड़ी रहेगी और कोई वहां न आएगा तो घबराहट होगी।

अपमान अनुभव होता है, परेशानी होती है, अड़चन होती है। सुख-दुख में आदमी चाहता है कोई साथ हो। लड़की की शादी कर दोगे; कल लड़की का बच्चा होने वाला है, उसकी भी शादी करनी पड़ेगी। चीजें कहीं समाप्त थोड़े ही होती हैं। इस दुनिया में कहीं पूर्ण विराम आता है क्या कभी? यहां न कुछ शुरू होता है, न कुछ अंत होता है। तुम जब आए, तब भी सब चल रहा था। तुम्हें पता नहीं, आगे काफी चल चुका था। तुम चले जाओगे, तब भी सब चलता रहेगा। यह अनंत सिलसिला है। आदमी मरने के पहले भी मरने का विचार करता है कि अर्थी में कौन-कौन सम्मिलित होंगे।

तुमने कभी सोचा इस पर कि नहीं? ‘कितनी भीड़-भाड़ रहेगी? अखबारों में क्या छपेगा? लोग क्या कहेंगे? मरने के बाद लोग प्रशंसा में कुछ कहेंगे कि नहीं?’ अमरीका में एक आदमी हुआ- राबर्ट रिप्ले। वह आदमी जिंदगी भर से अपने ढंग का आदमी था। अनूठे काम करने की उसे आदत थी। तो उसने अनूठे ढंग से मरना चाहा। उसने अपने सेक्रेटरियों को बुलाया और उनसेे कहा कि देखो, खबर कर दो अखबारों को कि मैं मर गया। डाॅक्टर तो कहते हैं कि चैबीस घंटे से ज्यादा बच नहीं सकूंगा। तो उन्होंने कहा- लेकिन अभी आप जिंदा हैं और अखबारों में खबर करने की अभी क्या जरूरत है? जब आप मरेंगे तब करेंगे। तो उसने कहा - तुम पागल हो.... । मैं पढ़ लेना चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद लोग क्या कहेंगे, क्या लिखेंगे ! और मैं दुनिया का पहला आदमी होना चाहता हूं, जिसने अपने मरने की खबर पढ़ी।

मरने का भी मैं उपयोग कर लेना चाहता हूं। बात तो उन्हें भी जंची। उन्होंने सूचना कर दी अखबारों को। अखबारों में खबरें छप गईं, एडिटोरियल निकले। वह आदमी प्रसिद्ध था; जीवनभर का खोजी था; उसने अनूठी बातें खोजी थीं। उसकी बहुत-सी किताबें हैं; अगर कभी तुमने देखी हों, उसकी किताबों का नाम एक ही है- ‘बिलीव इट आॅर नाॅट।’ ‘मानो या न मानो’। उसने ऐसे तथ्य खोजे, जो माने नहीं जा सकते। लेकिन वे तथ्य हैं। वे सभी वैज्ञानिक अर्थों में तथ्य हैं, ऐतिहासिक हैं। लेकिन एकदम से भरोसा नहीं आता। यही जिंदगी भर उसका काम था। उसके पास एक मछली थी, जो उलटा तैरती थी। वह अकेली मछली थी दुनिया में। सभी मछलियां उलटा नहीं तैरतीं; मगर उसके पास एक मछली थी, जो उलटा तैरती थी।

ऐसे उसने बहुत-सी चीजें भी इकट्ठी की थीं सारी दुनिया में घूम-घूमकर। अनूठा खोजी था। मुझे नहीं कहा। जब मैंने पढ़ा तो राॅबर्ट रिप्ले की किताब में पढ़ा कि जबलपुर के पास इतनी मील दूर पर फलां जगह एक खजूर का वृक्ष है, जिसमें दो फुनगे हैं। खजूर के वृक्ष में एक ही होता है। शाखाएं नहीं होतीं खजूर के वृक्ष में। वह अकेला वृक्ष है सारी पृथ्वी पर। जब उसकी किताब पढ़ी, तब मैं गया खोजने। मिला मुझे, वह वृक्ष था वहां। मगर उसने उसके संबंध में कैसे पता लगाया था, क्या किया था ! वह जिंदगी भर खोजता रहा है इसी तरह की चीजें, जो अनूठी हों। तो उसने कहा-मेरी मौत भी वैसी ही होनी चाहिए। चैबीस घंटे पहले खबर दे दी, मर गया।

अखबार में संपादकीय छपे, चित्र छपे, प्रशंसाएं छपीं, स्तुतियां छपीं। दूसरे दिन उसने वे सब पढ़ीं और फोटोग्राफर को उसने कहा कि इन्हें पढ़ते हुए मेरे चित्र निकाल लो; अब ये चित्र छाप दो कि यह आदमी इतिहास का पहला आदमी है, जिसने अपनी मौत की खबर खुद पढ़ी। अब मैं निश्ंिचतता से मर सकता हूं, क्योंकि सब ठीक है, कहीं कोई गड़बड़ नहीं है।त



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