यह तो हम सभी जानते हैं कि धूप से हमें विटामिन ‘डी’ प्राप्त होती है। यह विटामिन भोजन पचाने वाली आंतों में पहंचकर अम्ल और क्षार की उत्पत्ति कर भोजन को पचाने में सहायता करता है जिससे कैल्शियम और फास्फोरस जैसे तत्व निकलकर रक्त में मिलते हैं। रक्त में इन तत्वों का होना सूर्य की धूप पर ही निर्भर करता है। धूप हड्डियों की कमजोरी को दूर करती है, कैल्शियम प्रदान करती है, शरीर की रक्षा और विकास में सहायक है तथा रक्त में हीमोग्लोबिन तत्व की वृद्धि करती है एवं थायराइड ग्लैंड को अधिक कार्यशील बनाती है। धूप सूर्य से प्राप्त होती है और सूर्य-धूप स्नान से त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है। यदि सूर्य न हो तो हमें न तो गरमी मिल सकेगी और न प्रकाश। चूंकि हम सूर्य प्रकाश का सही ढंग से उपभोग नहीं करते इसीलिए हम पूर्ण रूप से आरोग्य नहीं होते। ठीक उसी तरह जिस तरह हम जल स्नान कर स्वच्छ और तरो-ताजा महसूस करते हैं उसी प्रकार सूर्य स्नान से हम शरीर के कई प्रकार के रोगों को दूर कर सकते हैं। प्रातः काल सूर्य की किरणें नग्न शरीर पर लेने से चेहरे का फीकापन और दुर्बलता दूर हो जाती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। नंगे शरीर धूप में घूमना भी लाभदायक है। कोई देख न सके, ऐसा स्थान ढंढकर यह कार्य किया जा सकता है। यदि ऐसा स्थान उपलब्ध न हो तो बारीक लंगोटी पहन कर सूर्य स्नान करें। शरीर पंच तत्वों का पुतला है अर्थात् अग्नि, जल, वायु, धरती और आकाश। अग्नि तत्व की प्राप्ति सूर्य से है। अर्थात् सूर्य के बिना प्राणी का जीवित रहना असम्भव है क्योंकि इसके बिना पर्याप्त गरमी तथा जीवन के अनिवार्य सजीव वायु और जल नहीं मिल सकता। सूर्य के नित्य सेवन से वात-पित्त एवं कफ के प्रकोप से उत्पन्न समस्त रोगों पर विजय पाकर मानव सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है। सूर्य किरणों में बौद्धिक शक्ति बढ़ाने की विशेष शक्ति होती है और उसी शक्ति द्वारा कार्य में रत होने की प्रेरणा मिलती है। सूर्योदय होते ही सभी जीवों का आलस दूर होकर उन में नवीन स्फूर्ति, चेतना, आशा एवं उत्साह का संचार होता है। सूर्य-धूप स्वास्थ्यवर्धक होती है। प्रायः परदे में रहने वाली औरतों का मुख जर्द, हड्डियां कमजोर, त्वचा रूखी मुरझाई सी दिखती है। इसका कारण उनका सूर्य-प्रकाश से दूर रहना है। इसके विपरीत नंगे शरीर बाहर खलिहानों, खेतों में काम करने वाले लोगों की त्वचा कितनी सतेज चिकनी स्वस्थ और सुन्दर होती है यह बस देखते ही बनता है। उनके बच्चे जो हमेशा धूप में नंगे शरीर घूमते-फिरते हैं, कभी अस्थि विकृति एवं अन्य रोगों से पीड़ित नहीं होते। इसका कारण सूर्य-प्रकाश से पसीने का निकलना, चर्बी का पिघलना, जिससे मोटापा घटता है, शारीरिक-शक्ति और उत्साह में वृद्धि और सभी विकारों से मुक्ति प्राप्त होती है सूर्य-धूप-प्रकाश, रश्मियां त्वचा रोग जैसे दाद, फफोले, कोढ़, रक्त बहाव, जलोदर,ज्वर,अतिसार दर्द एवं वेदना को निस्संदेह ठीक करती है। यकृत, गुर्दा, स्तन, प्लीहा चुल्लिका, कलोम आदि ग्रंथियों के स्राव में परस्पर संतुलन तथा समानता पैदा कर शरीर को उन्नत बनाती है। धूप लेने के नियम धूप लेने के लिए मौसम का विशेष ध्यान रखें। गर्मी में धूप हमेशा प्रातः काल सूर्य उदय के समय ही लेनी चाहिए। उपरान्त गरमी बढ़ने से धूप हानिकारक हो जाती है। प्रातः काल सूर्य उदय के समय की अल्ट्रावायलट किरणें हमारे शरीर के लिए उत्तम हैं। सर्दी के मौसम में धूप बहुत सुहानी लगती है। प्रातः काल से दोपहर तक धूप ली जा सकती है। धूप जब भी लें सिर को हमेशा साये में रखना चाहिए अथवा सिर पर ठंडे पानी से भीगी निचुड़ी तौलिया रखनी चाहिए और यदि धूप तेज हो तो ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। सूर्य से गरमी और प्रकाश दानों मिलते हैं। प्रकाश में पोषक गुण होता है उससे शक्ति मिलती है। किन्तु गरमी से कमजोरी आती है। अतः गरमी की अपेक्षा प्रकाश में रोग निवारक गुण है। पहाड़ों पर धूप स्नान का विशेष महत्व है क्योंकि वहां का प्रकाश ठंडा और चमत्कारी होता है। इसी आध्र पर क्षय-रोगियों को पहाड़ पर रहने की सलाह दी जाती है। पहाड़ों की धूप का उपयोगी होने का कारण यही है कि वहां दोपहर की धूप हल्की होती है साथ ही उस समय की सूर्य रश्मियों में नीले, आसमानी एवं अल्टाªवायलट, जो क्षय-रोगियों के लिए उपयोगी हैं, की प्रधानता है इसके विपरीत मैदानी इलाकों में दोपहर की धूप को बर्दाश्त करना मुश्किल होता है इसलिए अपनी शक्ति और सामथ्र्य के अनुसार धूप स्नान को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। समुद्र का किनारा धूप लेने के लिए सर्वोत्तम माना गया है क्योंकि वहां धूप के साथ-साथ स्नान का भी आनंद लिया जा सकता है। ठंडी हवा के झांके मन को भाव-विभोर कर देते हैं। सूर्य-रश्मियों की शक्ति अपने शरीर के अंदर जज्ब करने के लिए शीतल पानी अथवा शीतल पानी में भिगोई निचोड़ी तौलिया से शरीर को हल्के-हल्के रगड़ना चाहिए। सूर्य जलवायु एवं ऋतु में प्रातः 6 से 7 बजे तक समय उपयुक्त है। पाचन-प्रणाली और सूर्य रश्मियां सूर्य रश्मियों से शरीर की पाचन-प्रणाली क्रियाशील होती है। सूर्य की गरमी के अनुसार ही पाचन प्रणाली प्रभावित होती है। बरसात के मौसम में जब धूप नहीं मिलती तो पाचन प्रणाली मंद हो जाती है। यही कारण है कि उन दिनों केवल एक ही समय भोजन करने की प्रथा है कई धर्मों में यह प्रथा प्रचलित है। सूर्यास्त के बाद न खाने का विधान बहुत ही गुणकारी होता है। इसके लाभ हैं कि भोजन सरलता से पच जाता है और नींद गहरी आती है। सूर्य रश्मियों में पोषण तत्व: फल, सब्जी एवं अनाज जितना ही सूर्य रश्मियों को अपने में जज्ब करते है उतना ही उसमें पोषण तत्व प्राकृतिक लवण एवं विटामिन अधिक मात्रा में पाया जाता है। यही कारण है कि चावल की अपेक्षा गेहं अन्य फलों की अपेक्षा संतरा, सेब, आम, बादाम, काजू पिस्ता आदि में अधिक पोषक तत्व होता है। हमारे खाद्यों में जितनी ही धूप लगती है वे उतनी ही पोषक गुण वाले स्वादिष्ट एवं उपयोगी सिद्ध होते हैं। अतः फल सब्जी आदि को वृक्षों पर ही पूरी तरह से पकने देना चाहिए। जो फल वृक्षों, सूर्य की धूप और प्रकाश में पकते हैं उन्हें खाने से शरीर को सूर्य-रश्मियों का स्वास्थ्यप्रद लाभ मिलता है।