अग्नि तत्व मेष राशि अष्टम भाव में सूर्य
अग्नि तत्व मेष राशि अष्टम भाव में सूर्य

अग्नि तत्व मेष राशि अष्टम भाव में सूर्य  

व्यूस : 13063 | आगस्त 2009
अग्नि तत्व मेष राशि अष्टम भाव में सूय आचार्य किशोर सूर्य के अष्टम भाव और मेष राशि में होने से जातक विष्णु भक्त स्वार्थ त्यागी, धर्म प्रिय एवं अनेक सद्गुणों वाला होता है। आय अधिक होने पर भी जातक धनी नहीं हो सकता। कमाई के लिए सूर्य दोष प्रद नहीं है। जातक बड़े लोगों के आशीष में रहते हैं। अर्थात उनके संसर्ग में आते हैं अपने गुण के अनुसार उनको संतुष्ट कर पाते हैं। अप्रिय होने पर भी सत्य बोलने में पीछे नहीं हटते यदि सूर्य के साथ अष्टम भाव में चंद्रमा हो तो धन कमाने में बाधा आती है। मानसिक विकृति को कम करता है। माता-पिता के लिए विपत्ति लाता है। मित्रों से विश्वासघात से तकलीफ पाता है। परंतु यदि सूर्य चंद्रमा से शुभ हो तो जातक दीर्घ आयु होता है। मृत व्यक्ति की संपत्ति पाता है। धार्मिक, गुणवान एवं बंधुप्रिय होता है। यदि सूर्य मंगलयुक्त हो तो जातक पित्र हानि, गुप्त शत्रु से तकलीफ पाता है। वृथा भ्रमण करवाता है। दुर्घटना एवं अपवाद भी होता है। यदि सूर्य बुध युक्त हो। कार्य में विघ्न, उच्च पदस्थ लोगों के साथ विवाद होता है। परंतु जातक स्पष्टवादी होता है। यदि सूर्य गुरु से युक्त हो तो जातक उत्तराधिकारी से विशेष सूत्र द्वारा भू-संपत्ति से लाभ पाता है। जातक धार्मिक, गुणवान, बहु ज्ञान का अधिकारी एवं दीर्घ जीवि होता है। परंतु संतान एवं पारिवारिक व्यापार में दुखी होता है। शुक्र युक्त सूर्य भाग्य का नाश करता है। एवं दुर्बुद्धि काम शक्ति एवं मंद बुद्धि करवाता है। यदि शनि युक्त हो तो संतान की हानि एवं जातक मूर्ख, जिद्दी, हिंसक प्रवृत्ति, धर्म से डरने वाला होता है। यहां स्पष्ट करना चाहता हैूं कि सूर्य चंद्र को मारकेश दोष नहीं है। परंतु यदि सूर्य चंद्र के साथ पाप ग्रह का संपर्क हो जाता है, मारकेश ग्रह की दृष्टि एवं युक्ति हो, जान से मार भी सकते हैं। पराशर जी ने लिखा है- नौरन्ध्रे सूर्य, चंद्र अर्थात सूर्य चंद्र को रन्ध्र दोष नहीं है। सूर्य आत्मा है चंद्रमा मस्तिष्क को चलाने वाला है अर्थात आत्मा और मन ही मर जाएंगे तो मनुष्य कैसे जीवित रह पाएगा। मेरे अनुभव में आया है कि संजय गांधी की मृत्यु चंद्र की महादशा में हुई परंतु मारकेश की अंतर्दशा में दुर्घटना हुई। उस समय गोचर में मारकेश ग्रह बलवान थे। इसी प्रकार सूर्य की महादशा म मारकेश की अंतर्दशा में लोगों की हृदय रोग में जान जाती है। जातक स्वास्थ्य विभाग में प्रथम श्रेणी के कर्मचारी हैं। उन्होंने गणित में एम. ए. (स्नातक) किया। सब रजिस्ट्रार के रूप में कुछ दिन कार्य किया उसके पश्चात अर्थशास्त्र संस्था में नौकरी मिली। उसके बाद जब शुक्र की महादशा शुरु हुई विदेश में समाजिक ज्ञान पर रिसर्च किया। उसके पश्चात पी. एच. डी. की डिग्री हासिल की। जातक का सूर्य अष्टम भाव में मेष राशि में उच्च के सूर्य बुधयुक्त हैं। लग्नेश बुधयुक्त होने के कारण और लग्न को गुरु की दृष्टि ने जातक को अधिक बलवान बनाया। लग्न से दशम भाव में शुक्र मंगल राहु बैठे हैं। बुध एवं मंगल में परिवर्तन योग है। इसलिए जातक ने अत्यधिक बलवान होकर काम किया। सूर्य के साथ बुध का होना बुध के गुण का परिस्फुट होता है। अर्थात बुध का गुण देखने को मिलता है। इसलिए जातक शुरू से सब रजिस्ट्रार के अधिकारी पद पर गए। यह बुध का गुण है। बुध के घर में शुक्र होने कारण बुध को शुक्र का भी गुण मिला है। इसलिए मंगल बुध के घर में होने से बुध को मंगल का गुण मिला। इसलिए स्वास्थ्य विभाग में कार्य किया और स्पष्टवादी रहे। विवेक और विनम्र भाव से उनकी प्रशंसा भी होती है। परंतु बुध एक नपुंसक ग्रह होने के कारण सूर्य राहु मंगल शुक्र का प्रभाव बुध के ऊपर होने के कारण जातक कई प्रकार के विघ्नों से जूझते रहे। जातक की जन्म के समय केतु की महादशा चल रही थी। वर्तमान समय में सूर्य गुरु की महादशा 3-2-2010 तक चलेगी। जब सूर्य में राहु की दशा थी 17-4-2009 तक जातक में चरित्र गत दोष आ गया क्योंकि उच्च राशि का शुक्र वक्र होकर सप्तम भाव में नीच का फल दे रहे हैं। सूर्य की महादशा, राहु की अंतर्दशा में कम उम्र में जातक का तलाक हो गया। द्वादश भाव का स्वामी सूर्य अष्टम भाव में राहु एवं चंद्र से युक्त मेष राशि में भाव चलित में मंगल भी अष्टम भाव में है। इसलिए जातक के साथ ये घटना घटी। इस कुंडली में अष्टम भाव में सूर्य के साथ राहु चंद्र ने अष्टम का सारा दोष दिखा दिया। केन्द्राधिपति दोष में दोषी गुरु नीच राशि में पंचम त्रिकोण राशि में नीचता को अधिक बढ़ाया। अष्टम भाव में सूर्य राहु को पितृ दोष लगा है। इसलिए पिता को अपमानित किया। मातृकारक ग्रह चंद्रमा अकारक होकर अष्टम भाव में अस्त है। अष्टम भाव को किसी शुभ ग्रह की दृष्टि भी नहीं है। पति का कारक गुरु नवांश में उच्च का है। इसलिए दोष अत्यधिक बढ़ गया और चंद्र लग्न से अष्टम भाव में शनि और भाव चक्र में केतु के साथ द्वितीय भाव में है द्वितीय भाव पति की आयु का स्थान है इसलिए पति से विच्छेद हो गया। इस कुंडली में सूर्य अपने घर से त्रिकोण स्थान में बलवान होकर और चंद्रमा अपने घर से केंद्र में दशम भाव में, लग्न से अष्टम भाव में बैठे हैं। शनि एवं मंगल की परस्पर दृष्टि है। कहीं भी शुभ दृष्टि दिखाई नहीं देती विशेषकर स्त्री जातक में अष्टम भाव तलाक या वैधव्य करवाता है। क्योंकि प्राकृतिक पाप ग्रह सूर्य, राहु क्षीण चंद्रमा और चलित में मंगल भी अष्टम भाव में हैं। सूर्य, चंद्र, राहु, मंगल कोई भी महादशा इसके लिए शुभ नहीं इसलिए 22 वर्ष की उम्र में जातक कहीं की न रही। अग्नि तत्व राशि सिंह राशि में सूर्य अष्टमस्थ होने से पिता को हानि देता है। यदि पाप संपर्क में हो तो बचपन से पिता से कष्ट पाता है। चरित्र दोष रहता है। कई दुर्गुणों के कारण अपनी स्त्री से संबंध ठीक नहीं रहता। बदनामी मिलती है। पिता के वंश की मर्यादा क कारण उस मंद गुण को आडंबर से छिपाना चाहता है। यदि सूर्य के साथ शुभ ग्रह का संबंध हो- आयु को बढ़ाता है। ऐस व्यक्ति की गुप्त संपत्ति होती है। अपनी मंद प्रकृति के कारण उस संपत्ति को ठीक से नहीं रख पाता प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा अनिष्ठ होता है। यदि मंगल से संबंध हो तो दुर्घटना से मृत्यु भी हो सकती है। शनि की दृष्टि अल्प आयु देता है। गुरु एवं चंद्र से सुसंपर्क होने से आयु में वृद्धि देता है। चंद्र युक्त सूर्य आंखों को तकलीफ देता है। बुध से युक्त सूर्य जातक को कामुक, दुश्चरित्र, स्त्रीहीन कराता है। अग्नि तत्व राशि में अष्टम भाव में सूर्य स्वगृही होने पर भी शुभ फल नहीं देता। चंइस जातक की कुंडली में सिंह राशि में सूर्य, मंगल, केतु अग्नि तत्व राशि में अग्नि तत्व ग्रह बैठे हैं। वर्तमान समय में 2014 तक शुक्र की महादशा चल रही है। सूर्य की दशा आने से पहले गोचर में लग्न से अष्टम भाव में शनि का प्रभाव सिंह राशि के ऊपर शनि सूर्य केतु मंगल अष्टम भाव के ऊपर चलन कर रहे हैं और शुक्र-शनि की दशा में इतनी कम उम्र में दुबुद्धि और कुर्कम में संलग्न रहा। शुक्र कामुक ग्रह और उस पर गुरु की दृष्टि होने के बावजूद बाल्यावस्था में शुक्र-शनि की दशा में हर प्रकार के शौकीन कार्यों में लगा रहा। मां बाप के धन को उड़ाता रहा। उत्तरकालामृत के अनुसार शुक्र-शनि खराब फल देता है। और वही हुआ पढ़ाई छोड़कर बैठा है। द्वितीय भाव को पापग्रह की दृष्टि ने आंखों को तकलीफ दी। पढ़ाई करने विदेश गया परंतु छोड़कर आ गया। शुक्र के बाद सूर्य की दशा और अधिक खराब जाएगी। पेट में बीमारी, पेशाब में पथरी, गुप्त अंग में रोग और दुर्घटना हो सकती है। कोर्ट कचहरी के चक्कर में पडकर धन का व्यय और बदनामी भी लेगा। 8-12-2008 तक केतु की महादशा थी। वर्तमान समय में शुक्र-शुक्र की दशा चल रही है। इस कुंडली में स्वगृही सूर्य अष्टम भाव में शुभ ग्रह शुक्र के साथ शत्रु के साथ अष्टम भाव में काफी परेशानी दे रहा है। लग्न से अष्टम में गोचर में शनि का चलन होने के कारण अपना देश छोड़कर विदेश गई। भाग्य स्थान में बुध को गुरु की दृष्टि और लग्नेश शनि की दृष्टि और दशम भाव में राहु ने उच्च पद तो दिलवाया परंतु पिता को अधिक कष्ट दिया अपनी मनपसंद से विवाह करके पश्चाताप कर रही है। सूर्य अष्टमेश होकर अष्टम भाव में शुक्र के साथ, चंद्रमा स्वगृही होकर सप्तम भाव में पाप ग्रह शनि के साथ भाग्येश बुध भाग्य स्थान में उच्च का होकर मंगल के साथ अपने-अपने स्थान में बलवान हैं। कुंडली में पूर्ण कालसर्प दोष है। लिखने का तात्पर्य यह है कि शुभ ग्रह के साथ पाप ग्रह का संबंध विशेषकर अष्टम भाव में सिंह राशि में सूर्य बवासीर की तकलीफ देता है। पति शारीरिक सुख में कमी महसूस करता है जिसके कारण तलाक की नौबत आती है क्योंकि अष्टम भाव गुप्त अंग के अलावा कोर्ट कचहरी जैसी कई विपरीत घटनाएं देता है। अग्नि तत्व ग्रह अग्नि तत्व राशि में अष्टम भाव में कभी सुख नहीं दे सकता। अग्नि तत्व राशि धनु राशि में अष्टम भाव में अग्नि तत्व गृह सूर्य थोड़ा बहुत सुख और थोड़ा पितृ सुख इसलिए देता है क्योंकि धनु राशि का स्वामी गुरु सूर्य का मित्र है। अपने घर से पंचम स्थान में अर्थात सिंह राशि से त्रिकोण स्थान में बैठै हैं पुरुषार्थ तो देता है। परंतु दुख भी देता है क्योंकि काल पुरुष की कुंडली में धनु राशि नवम धर्म स्थान हो जाता है। इसलिए जातक परोपकारी एवं ईश्वर भक्त होता है। देवालय एवं पवित्र स्थान में उसकी मृत्यु होती है। अष्टम भाव का सूर्य होने से संतान का दोष रहने की संभावना होती है। संतान तो देता है परंतु सुख नहीं देता। सूर्य यदि चंद्र युत हो तो बहनों की क्षति करवाता है। सूर्य चंद्र यदि एक दूसरे को देखते हों तो जातक मृत व्यक्ति या भातृ कुल की सम्पत्ति प्राप्त करता है। सूर्य, मंगल युति या दृष्टि होने से स्त्री सुख तो देखने को मिलता है। साथ-साथ दुर्घटना भी करवा देता है बुधु युक्त सूर्य पढ़ने लिखने के कार्यों में रुकावट डालता है। गुरु से संबंध उत्तम आयु देता है। धन संपत्ति के अतिरिक्त भक्ति मार्ग और अग्रसर करता है। शनि युक्त सूर्य भाग्यहीन, अल्पायु एवं दुख देता है। शुक्रयुक्त सूर्य शत्रुओं को बढ़ाता है और स्वयं रोग ग्रस्त होता है। वर्तमान समय में जातक की शुक्र-सूर्य की दशा चल रही है। इस स्त्री जातक में लग्न का शनि सप्तम भाव और चंद्रमा को देख रहा है। चंद्र लग्न से चंद्र शनि एक दूसरे को देख रहे हैं। परंतु शुक्र दशम भाव में लग्नेश होकर कर्म स्थान में बैठे हैं। शुक्र अपने घर से केंद्र त्रिकोण में बैठे हैं। इसलिए इस स्त्री जातक को अच्छी नौकरी और अच्छी आर्थिक स्थिति दे रहा है। परंतु शुक्र-सूर्य की दशा में दाम्पत्य जीवन के सुखों में कमी रही और तलाक की नौबत आ गई। जबकि सप्तमेश मंगल लाभ स्थान में गुरु से कंेद्र में है। स्त्री जातक के लिए पति का कारक गुरु अष्टम भाव में पीड़ित है। विशेषकर नवांश कुंडली में सप्तमेश गुरु अष्टम भाव में और सुख भाव का स्वामी अष्टम में होने से सुख नहीं दे सकता फिर भी सूर्य के साथ बुध और गुरु अस्त नहीं है। जिस कारण चतुर्थ, पंचम, एकादश का स्वामी गुरु, सूर्य, बुध अष्टम भाव में अनुसंधान (रिसर्च) की तरफ आगे बढ़ रहा है। मेरे विचार में शुक्र-सूर्य और शुक्र-चंद्र की दशा यदि निकल जाती है तो समझौता हो सकता है। क्योंकि अष्टम भाव में केंद्र त्रिकोण का स्वामी होना अष्टम भाव के शुभ फल को अधिक महत्व देगा और तलाक रूक जाएगा परंतु सूर्य की दशा 2025-2031 तक पति-पत्नि एक स्थान पर नहीं रह सकते। वर्तमान समय में जातक की शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा अगस्त 2010 तक चलेगी। कोई ग्रह अपनी दशा-अंतर्दशा में शुभ फल नहीं देता। इसलिए जातक को अब तक शुभ फल की प्राप्ति नहीं हुई। सूर्य शुक्र के अष्टम भाव में रहने के कारण आखों को नुकसान हुआ और शल्य चिकित्सा भी करवाई क्योंकि सूर्य शुक्र की दृष्टि द्वितीय भाव ारापर पड़ती है। सूर्य नवांश कुंडली में नीच का होने पर अगस्त 2010 के बाद भी आंखों में तकलीफ बनी रहेगी। शुक्र लग्नेश होने के बावजूद शत्रु सूर्य साथ शत्रु बृहस्पति के घर में और बृहस्पति की दृष्टि होने पर भी शुक्र-सूर्य, शुक्र-चंद्रमा की दशा में भी तकलीफ देता रहेगा। जहां तक अग्नि तत्व राशि सूर्य की बात है तो सूर्य चतुर्थ सुख स्थान का स्वामी अष्टम दुस्थान में होने से और नीच का चंद्रमा बुध के साथ होने से और सुख स्थान में शनि के होने से माता-पिता, जनता में अप्रिय करवाता है। गुरु की दृष्टि के कारण ही जातक अभी तक जीवित हैं क्योंकि सूर्य वृहस्पति के घर में और गुरु की दृष्टि में है। आयुकारक शनि योगकारक होकर केंद्र में है। मेरे विचार में शुक्र-सूर्य की दशा में एवं शुक्र-चंद्र की दशा में माता-पिता को कष्ट अवश्य होगा। प्राकृतिक पाप ग्रह सूर्य अष्टम भाव में चाहे उच्च का हो, स्वगृही हो या मित्रगृही हो तकलीफ अवश्य देगा।



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