नियम-1 ः मंगल यदि दूसरे घर में बैठा हो या दूसरे घर को देख रहा हो और शनि मेष राशि में बैठा हो या मेष राशि को देख रहा हो तो जीवन साथी की अकाल मृत्यु होती है।
नियम -2 ः यदि सातवें या आठवें घर में कोई पापी ग्रह बैठा हो और कोई अन्य पापी ग्रह उसे देख रहा हो तो जीवन साथी की अकाल मृत्यु हो सकती है।
नियम-3 ः शनि और चंद्र यदि सप्तम् भाव में इक्ट्ठे बैठे हों तो भी जीवन साथी की अकाल मृत्यु हो सकती है।
नियम-4 ः यदि सातवें घर का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो और पापी ग्रह उसे देख रहे हों तो भी जीवन साथी की अकाल मृत्यु की संभावना रहती है।
संबंध योग: 1. मंगल यदि सातवें घर में हो तो जातक विवाहेतर संबंध स्थापित करता है, जिससे उसका वैवाहिक जीवन दुखमय तथा तनावयुक्त हो जाता है।
2. मंगल यदि आठवें घर में हो तो जातक को जीवन साथी विलग करता है।
3. शुक्र और बुध यदि चैथे घर में हों तो जातक के विवाहेतर संबंध क सूचक हैं।
4. शुक्र यदि चैथे, आठवें या 12वें राशि में हो और मंगल से प्रभावित हो तो भी जातक के अन्यों के साथ संबंध होते हैं।
5. लग्नेश यदि दूसरे घर में अथवा दूसरे घर का स्वामी सातवें या दसवें घर में हो, तो भी जातक के किसी न किसी प्रकार से विवाहेतर संबंध बनते हंै।
6. सूर्य और बुध यदि सप्तम भाव में मीन राशि में हों तो जातक के जीवनसाथी की अकाल मृत्यु होती है या उससे संबंध विच्छेद होता है। इसके बाद प्रायः दूसरा विवाह होता है।
कुछ उदाहरण देखें:
उदाहरण-1: जातक का जन्म कृष्णा नगर जिला नदिया में 29.04.1939 को सुबह 10.30 बजे हुआ। सातवें घर में पापी ग्रह मंगल और मेष राशि में शनि बैठा है। शुक्र की 7 राशियां पापी ग्रह राहु, केतु और शनि से तथा शुक्र स्वयं मंगल से प्रभावित है। अतः उसके जीवनसाथी की अकाल मृत्यु हुई।
चूंकि शुक्र की 2 राशियां पापी ग्रहों से प्रभावित नहीं हैं, सप्तमेश गुरु अपनी 12 राशियों पर बैठा है, अतः इस जातक का दूसरा विवाह हुआ। मंगल विवाहेतर संबंध का सूचक है।
उदाहरण-2: इस जन्मपत्री के जातक का जन्म कन्नौज में 06.07.1940 को सांय 7ः30 बजे हुआ। सातवें घर में मंगल और मेष राशि में शनि बैठा है। शुक्र की 7 राशियां पापी ग्रह मंगल और शनि से प्रभावित हैं तथा 2 राशियां पापी ग्रहों के बीच स्थित हैं।
शुक्र के साथ पापी ग्रह सूर्य बैठा है। अतः उसके पहले जीवन साथी की अकाल मृत्यु हुई। चूंकि सप्तमेश चंद्र अपनी 4 राशियां पर बैठा है अतः जातक का दूसरा विवाह हुआ। मंगल जब सातवें घर में बैठता हो तो जातक के अनेक संबंध होते हैं।
उदाहरण-3: जातक का जन्म कानपुर में 22.08.1955 को मध्य रात्रि 12.00 बजे हुआ था। सूर्य और मंगल चैथे में स्थित हैं। सप्तम भाव में राहु बैठा है और उस पर मंगल तथा केतु की दृष्टि है। अतः जीवनसाथी की अकाल मृत्यु हुई। चूंकि चैथे भाव में शुक्र और बुध स्थित हैं अतः उसके विवाहेतर संबंध हुए।
उदाहरण-4: जातक का जन्म 22.10.1971 को रात 11 बजकर 34 मिनट पर चितरंजन में हुआ। शुक्र 7 राशि में है। सप्तम भाव में पापी ग्रह मंगल बैठा है। लग्न चार तथा सप्तम् भाव तीन पापी ग्रहों से प्रभावित हैं अतः आपसी सामंजस्य नहीं रह पाया। चूंकि चैथे भाव में शुक्र और बुध बैठे हैं अतः विवाह के बाद जातकअतिरिक्त संबंध स्थापित हुए।
उदाहरण-5: इस जन्मपत्री के जातक का जन्म 02.02.1973 को दोपहर 12.55 बजे चंडीगढ़ में हुआ। सप्तम भाव में पापी ग्रह मंगल बैठा है और शनि से प्रभावित है। शुक्र नीच का भी है और पापी ग्रहों से प्रभावित भी है। इसके अतिरिक्त शुक्र और गुरु इकट्ठे बैठे हैं अतः वैवाहिक जीवन में कटुता आई। मंगल के सप्तमस्थ होने के कारण विवाहेतर संबंध स्थापित हुए।