पंच महाभूतों में एक तत्व मिट्टी है अर्थात् पृथ्वी तत्व मिट्टी ही है। मनुष्य के शरीर का अधिकतर भाग पृथ्वी तत्व (मिट्टी) का है। मनुष्य जितना अधिक मिट्टी के समीप रहकर स्वस्थ रह सकता है, इतना दूसरी किसी वस्तु से नहीं। इसी तथ्य को सामने रखते हुए चिकित्सा शास्त्रियों ने मिट्टी को चिकित्सा का साधन उचित ही माना है और मिट्टी को स्वास्थ्य शक्ति, सुंदरता और लंबी आयु का मूल तत्व बताया है। मिट्टी हमारी हड्डियों को पुष्ट कर हमारे शरीर को बलवान और फुर्तिला बनाती है।
हमारे महर्षियों ने मिट्टी को श्रेष्ठ और उत्तम औषधि बताते हुए रोगों की चिकित्सा में सर्वाधिक उपयुक्त बताया है क्योंकि शरीर की त्वचा, मांसपेशियां, हड्डियां आदि सभी मिट्टी तत्व से बनी है अतः जब मिट्टी के शरीर को मिट्टी तत्व से जोड़ा जाता है तो शारीरिक रोग नष्ट हो जाते हैं और शरीर स्वस्थ हो जाता है। इसीलिए शरीर पर मिट्टी का लेप, शरीर पर मिट्टी की मालिश या मिट्टी पर लेट कर शारीरिक रोग का उपचार किया जाता है। मिट्टी का चुनाव: मिट्टी कई प्रकार की होती है लेकिन जिस मिट्टी का प्रयोग किया जाना हो, उसका चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि वह अच्छी गंध वाली हो, उसमें से सोंधी-सोंधी सुगंध आती हो, वह आचार्य अविनाश सिंह न बहुत चिकनी हो और न बहुत रेतीली। वह खूब साफ, महीन, कंकड़ पत्थर रहित और मुलायम होनी चाहिए। प्रयोग से पहले उसे छानना भी आवश्यक है।
चिकित्सा के रूप में मिट्टी को तैयार करना: इसी तरह मिट्टी बिल्कुल सूखी होनी चाहिए। यदि वह गीली या सीली हो तो उसे प्रयोग से पहले धूप अथवा अन्य किसी तरीके से सुखाना चाहिए बाद में उसे पीसकर छानना चाहिए ताकि कंकड़-पत्थर निकल जाएं। यदि मिट्टी के प्रयोग में मिट्टी को गीला करना हो तो इसके लिए शुद्ध, स्वच्छ, शीतल पानी का प्रयोग करना चाहिए। जब मिट्टी भींगकर अच्छी तरह फूल जाए तो उसे आटे के सामने अच्छी तरह गूंथना चाहिए। यदि पट्टी का इस्तेमाल करना हो तो आवश्यकतानुसार चैड़ी पट्टी लंे।
फिर पट्टी के ऊपर मिट्टी को अच्छी तरह लेसकर पीड़ा-स्थल पर रखें और ऊपर से दूसरे कपड़े की पट्टी बांध दें। मिट्टी में रोग निवारण की अद्भुत शक्तियां विद्यमान हैं। मानव शरीर में उत्पन्न होने वाले हर प्रकार के रोगों में मिट्टी-उपचार उत्तम है। कभी-कभी तो मिट्टी चिकित्सा से तुरंत आराम हो जाता है। रोग में इतनी तेजी से आराम होता है कि किसी और साधन की आवश्यकता ही नहीं रहती। मिट्टी वास्तव में एक घरेलू उपचार है जो हर प्रकार के रोगों व्याधियों और विकारों में आसानी से शीघ्र छुटकारा दिला सकता है। मिट्टी का अद्भुत और आश्चर्यजनक प्रभाव बस देखते ही बनता है। खतरनाक और जानलेवा रोगों में भी मिट्टी अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है।
विभिन्न रोगों में मिट्टी चिकित्सा पेट के रोग: पेट के रोग जैसे कब्ज, पेट दर्द, आंतों में विकार, मूत्र संबंधी रोगों में गीली मिट्टी की पट्टी और लेप से इन रोगों में विशेष लाभ होता है। कमजोर मेदा व आंतंे पुष्ट होकर सुचारू रूप से अपना कार्य करती है। मिट्टी की पट्टी रात में सोते समय बांधनी चाहिए और प्रातःकाल उठते ही हटा देनी चाहिए। यह प्रयोग दो-तीन रात करें या फिर उस समय तक करें जब तक रोग पूर्णतया ठीक न हो जाए।
सिर दर्द: सिर दर्द कैसा भी हो, गीली मिट्टी की पट्टी सिर पर रखने या बांधने से थोड़ी ही देर में आराम मिलता है। मिट्टी की पट्टी पेड़ू पर रखने से भी सिर दर्द में आराम मिलता है। यदि आधा शीशी का दर्द हो तो मस्तिष्क पर और गर्दन के चारों ओर गीली मिट्टी का लेप कर देने से रोगी रोगमुक्त हो जाता है।
ज्वर: ज्वर कैसा भी हो, टायफाइड या साधारण ज्वर गीली मिट्टी की पट्टी पेड़ू पर विधिपूर्वक बांधने से आराम मिलता है। इसके लिए चिकनी मिट्टी को ही प्रयोग में लाएं। इस क्रिया से शरीर का तापक्रम कम होकर रोगी की बेचैनी दूर होती है। कभी-कभी गीली मिट्टी की पट्टी माथे पर रखने से भी लाभ होता है। फोड़े फंुसी: फोडे-फुंसी बच्चे और हर उम्र के व्यक्ति को होते हैं।
यदि पोटैशियम परमैंग्नेट के गुलाबी जल में स्वच्छ कपड़े को भिगोकर उससे फोड़े को अच्छी तरह साफ कर लें, इसके बाद उस पर पुलत्सि की भांति गीली मिट्टी बांधने से फोड़ा पककर फूट जाता है और मवाद बाहर निकलने से रोगी को आराम मिलता है। बहते हुए फोड़े पर भी मिट्टी के प्रयोग से लाभ होता है।
चोट और घाव: चोट लगने पर भी मिट्टी का प्रयोग लाभकारी है। चोट-घाव में गीली चिकनी मिट्टी की पट्टी बांधने से लाभ होता है। मिट्टी में ऐसे गुण विद्यमान हैं जो चोट की पीड़ा और जलन को शांत कर धीरे-धीरे ठीक करता है। मवाद को जड़ से साफ कर देती है और सैप्टिक भी नहीं होने देती और घाव को सुखा देती है।
चर्म रोग: हर प्रकार के चर्म रोग फोड़े-फंुसी, सूजन, पीड़ा, घाव, सिर के बाल झाड़ना, चेचक, खुजली, मुंहासे, पसीना, दाद, एक्जिमा आदि सभी रोगों में मिट्टी चिकित्सा उपयोगी है। गीली मिट्टी के प्रयोग से इन सभी चर्म रोगों को दूर किया जा सकता है। रोगी पीड़ित स्थान पर गीली मिट्टी की पट्टी बांधे। सूख जाने पर पट्टी बदल दें। कुछ ही दिनों में चर्म रोग पूर्णतया ठीक हो जायेंगे।
कर्ण रोग: कान का दर्द, कान का बहना, कर्णमूल प्रवाह (कान के सामने और नीचे कई गिल्टियां होती हैं इन गिल्टियों में प्रवाह होने पर कर्णमूल प्रवाह कहते हैं), यह संक्रामक रोग है। मिट्टी के उपचार से इसमें लाभ होता है। गीली मिट्टी कान के अंदर, बाहर व चारों तरफ कनपटी पर लगानी चाहिए। इससे कान के हर रोग में लाभ होता है।
गठिया रोग: गठिया रोग में दर्द व सूजन वाले स्थान पर गीली मिट्टी की पट्टी बांधने से शीघ्र आराम होता है। दर्द, सूजन धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। गीली मिट्टी का लेप भी लाभदायक है।
चेहरे के दाग धब्बे: चेहरे मंे दाग-धब्बे, मुंहासे या भद्दापन हो तो चिकनी-गीली मिट्टी चेहरे पर लगाएं और सूखने दें। जब मिट्टी अच्छी तरह सूख जाए तो चेहरे को गुनगुने पानी से धो डालें। कुछ ही दिनों में चेहरा साफ होकर निखर जायेगा। चिकनी मिट्टी के स्थान पर मुलतानी मिट्टी का भी प्रयोग किया जाता है।
जननेन्द्रिय रोग: पुरूषों के हर प्रकार के जननेन्द्रिय रोग में गीली मिट्टी की पट्टी लाभकारी है। अंडकोष वृद्धि, सूजाक, नपुंसकता होने पर चिकनी गीली मिट्टी का लेप विधिवत गुह्य भागों पर नित्य करने से लाभ होता है।
स्तन रोग: स्त्रियों के स्तन में गांठ सी पैदा होना या दूध पिलाते समय चोट आ जाना, स्तन पक जाना और मवाद एकत्र हो जाना, स्तन में भारी पीड़ा, फोड़ा आदि रोगों में स्तन पर गीली -मिट्टी की पट्टी या लेप करने से स्तन कैंसर जैसा रोग भी समाप्त हो जाता है।