जहां कहीं भी पुरानी लोक परम्पराएं प्रचलित हैं, वहां ‘छींकना’ ईश्वरीय उपहार माना जाता है। इन अर्थों में कि ‘ईश्वर आपको प्रसन्न रखे’ या आप ‘चिरायु’ हों। हिंदुओं में छींक को लेकर अनेक तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। कई बार एक ही ‘छींक’ के अनेक मतलब निकल आते हैं जैसे यात्रा पर निकलने के पूर्व स्वाभाविक ढंग से छींक का आना एक मान्यतानुसार किसी अप्रिय घटना की सूचक होती है। कुछ नसवार सूंघकर या सर्दी जुकाम के समय की छींक का कोई अर्थ नहीं होता। घर के भीतर अगर कोई आप पर छींक दे या छींक की हवा दाईं आंख पर पड़ जाए तो यह बुरा माना जाता है। आपके पीछे या आपकी बाईं आंख पर छींकना अच्छा माना जाता है। अगर आपकी उपस्थिति में कोई लगातार छींके तो यह आपके लिए समृद्धि के आगमन का संकेत है।
एक छींक अशुभ मानी जाती है, किंतु उसके साथ की दूसरी छींक उसके अशुभ प्रभाव को काटने वाली कही जाती है। कहीं-कहीं मान्यता इसके विपरीत भी है। नींद में बिस्तर से उठते समय या खाने के समय का छींकना अशुभ लक्षण माना जाता है। पर भोजन के बाद छींक का आना शुभ और सुस्वादु भोजन की पुनः प्राप्ति का संकेत होता है।
किसी अशुभ प्राकृतिक संकेत को देखते समय छींकने से उसका प्रभाव जाता रहता है। किसी नए कार्य की योजना बनाते या किसी यात्रा पर जाते समय की छींक आने वाले अवरोधों की सूचक होती है। यात्रा या पदयात्रा के समय छींक आने पर कुछ देर रुककर जाने की मान्यता है। किसी बस्ती या मुहल्ले में प्रवेश करते समय अगर कोई छींक दे तो माना जाता है कि जिस कार्य से आप आए हैं, वह पूरा नहीं होगा। नई पोशाक पहनते समय छींकने का अर्थ शुभ लगाया जाता है।
यानी यह और नए वस्त्र मिलने का संकेत है। मरीज जब इलाज कराने दवाखाने में प्रवेश करता है, उस समय उसे ‘छींक’ आने का अर्थ शुभ निकाला जाता है। किंतु कहीं-कहीं धारणा इसके विपरीत भी हैं। किसी गृहस्वामी के दरवाजे पर छींकना उसके लिए नुकसानदेह माना जाता है। कोई अगर आपके सामने छींक दे तो कुप्रभाव को दूर करने के लिए प्रभु की स्तुति करनी चाहिए या ढाई श्वांस रुक कर फिर आगे बढ़ना चाहिए। इससे कुप्रभाव कम हो जाता है।