प्रयागे मेषस्थेज्ये मकरस्थ दिवाकरे।। उज्जैन्यां च मेषार्के सिंहस्थे च वृहस्पते। सिंहस्थितेज्य सिंहार्के नासिके गौतमी तटे।। (स्कंद पुराण) कुंभ और मेष राषि में सूर्य होने पर हरिद्वार में, मेष राषि में गुरु और मकर राषि में सूर्य होने पर प्रयाग तथा सिंह राषि में गुरु और मेष राषि में सूर्य होने पर उज्जैन में कुंभ पर्व होता है। सिंह राषि में गुरु और सिंह राषि में ही सूर्य जब होता है, तब नासिक पंचवटी में सिंहस्थ महाकुंभ पर्व मनाया जाता है।़ एक स्थान पर कुंभ मेला लगभग 12 वर्षों बाद पड़ता है। गुरु एवं सूर्य की राषि के अनुसार यह पर्व मनाया जाता है: स्थान गुरु की राशि सूर्य की राशि पूर्व काल में कुंभ भविष्य में कुंभ हरिद्वार कुंभ मेष 1986, 1998, 2010 2021, 2033 प्रयाग वृषभ मकर 1989, 2001, 2013 2025, 2037 नासिक सिंह सिंह 1980, 1992, 2003 2015, 2027 उज्जैन सिंह मेष 1980, 1992, 2004 2016, 2028 इस प्रकार कुंभ का मेला, एक निष्चित समय के पष्चात न हो कर, लगभग 12 वर्षों के अंतराल में पुनः उसी स्थान पर मनाया जाता है।
गुरु एवं सूर्य के राषि संचरण के अनुसार कभी नासिक में पहले एवं कभी उज्जैन में पहले कुंभ पड़ता है। गुरु इस वर्ष 14 जुलाई को 6ः25 प्रातः कर्क से सिंह राषि में प्रवेष कर रहे हैं। अतः सिंहस्थ गुरु के पर्व 14 जुलाई से ही प्रारम्भ हो रहे हैं। अगस्त 2015 से नासिक/त्र्यंबकेष्वर में कुंभ पर्व मनाया जा रहा है तथा अप्रैल 2016 से यह पर्व उज्जैन में मनाया जाएगा। नासिक में विभिन्न दिनांकों में निम्न विषेष स्नान होंगे: 14 जुलाई - नासिक में राम कुण्ड पर सिंहस्थ गुरु पर्व 14 अगस्त - अखाड़ों द्वारा ध्वजा आरोहण 26 अगस्त - श्रावण शुक्ल एकादषी स्नान 29 अगस्त - श्रावण पूर्णिमा को प्रथम शाही स्नान 13 सितंबर - भाद्रपद अमावस्या को मुख्य द्वितीय शाही स्नान 18 सितंबर - ऋषि पंचमी का तृतीय स्नान 25 सितंबर - वामन द्वादषी का मुख्य चतुर्थ स्नान 2016 में उज्जैन के साथ हरिद्वार में अर्ध कुंभ भी मनाया जाएगा। 2019 में वृष्चिक के गुरु में प्रयाग में अर्ध कुंभ मनाया जाएगा। अर्ध कुंभ केवल हरिद्वार एवं प्रयाग में मनाया जाता है, उज्जैन एवं नासिक में नहीं।
उज्जैन मंे कुम्भ की व हरिद्वार में अर्द्ध कुम्भ की निम्न तारीखें विषेष हैं: उज्जैन 22.04.2016 पूर्णिमा स्नान 06.05.2016 अमावस्या स्नान 09.05.2016 तीज स्नान 11.05.2016 पचंमी स्नान 21.05.2016 पूर्णिमा स्नान हरिद्वार 14.01.2016 मकर संक्रान्ति पर स्नान 08.02.2016 मौनी अमावस्या स्नान 12.02.2016 बसंत पंचमी स्नान 22.02.2016 माघ पूर्णिमा स्नान 08.03.2016 महाशिवरात्रि शाही स्नान 07.04.2016 सोमवती अमावस्या शाही स्नान 15.04.2016 रामनवमी स्नान 22.04.2016 चैत्र पूर्णिमा स्नान 06.05.2016 अमावस्या स्नान 21.05.2016 वेशाख पूर्णिमा स्नान सूर्य, गुरु एवं चंद्र की विविध स्थितियों के अनुसार कुंभ पर्व के आयोजन पर भिन्न-भिन्न चारों स्थलों का शाही स्नान होता है। तदनुसार विभिन्न अखाड़ों के महंतों का स्नान होता है। इसके पष्चात शंकराचार्यों का स्नान होता है। इसके बाद महामंडलेष्वरादि का स्नानादि होता है। कुंभ पर्व पर किये गये धर्म कृत्य कोटि गुणा अधिक फल प्रदान करने वाले होते हैं।
अतः इस पर्व पर सभी को धर्म लाभ लेना चाहिए। इस वर्ष गुरु एवं सूर्य के सिंह राषि में प्रवेष करने पर कार्तिकादि श्रावण मास की अमावस्या, अर्थात 29 अगस्त 2015 को नासिक में राम कुंड में कुंभ पर्व के प्रथम शाही स्नान का आयोजन किया गया है। वैदिक वाङ्मय के अनुसार त्र्यंबकेष्वर में शैव एवं नासिक में, जहां भगवान श्री राम ने अपने बनवास का चैदहवां वर्ष व्यतीत किया था, वैष्णव लोग स्नान करते हैं। यह स्वयं में आष्चर्य की बात है कि कुंभ पर्व में, बिना किसी निमंत्रण के, लाखों-करोड़ों लोग एक ही समय पर, एक ही स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं। कुंभ माहात्म्य महाभारत एवं अन्य ग्रंथों के अनुसार देवासुर में परस्पर युद्ध के समय समुद्र मंथन हुआ। उस समय अमृत कलष प्राप्त हुआ, जिसे कुंभ भी कहा जाता है। इस अमृत कुंभ को ले कर प्रयाग, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार आदि 4 स्थानों पर विश्राम के समय गरुड़ जी ने वहां देव पूजन किया। इसी बीच अमृत की कुछ बूंदंे वहां छलक पड़ीं, जिस कारण इन 4 स्थलों की ध् ारती को शुचि संज्ञक माना जाने लगा एवं वहां कुंभ पर्व मनाया जाने लगा। हिंदू धर्म गं्रथों में कुंभ पर्व का अत्यंत विस्तृत उल्लेख पाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार समस्त देव एवं देवीगण कुंभ पर आगमन कर के आनंदित होते हैं। कुंभ पर्व पर श्राद्ध, यज्ञ, दान, तप, मंत्र सिद्धि आदि प्रमुख रूप से सिद्ध होते हैं। स्नान विधि गंगा, यमुना, सरस्वती, कृष्णा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र आदि कई ऐसी पवित्र नदियां हैं, जिनमंे स्नान करते समय सर्वप्रथम पैर का स्पर्ष अनुचित माना गया है। इस कारण स्नान करते समय सर्वप्रथम थोड़ा सा जल अपने हाथों में ले कर सिर पर छिड़कना चाहिए। तत्पष्चात सारे अंग को नहलाया जा सकता है। क्या करें? कुंभ पर्व के समय, धर्म सिंधु के अनुसार, 8 दान मुख्य माने गये हैं तथा इनकी विषेषताएं अति लाभकारी हैं।
ये आठ दान इस प्रकार हैं:
1. तिल
2. लोहा, अथवा लोहे से निर्मित वस्तुएं
3. कपास, अथवा कपास से निर्मित वस्तुएं
4. सोना, अथवा सोने से बनी वस्तुएं
5. नमक
6. सप्त धान्य
7. पृथ्वी एवं
8. गाय।
कुंभ पर्व पर भीष्म जी को तर्पण देना सभी के लिए आवष्यक एवं पुण्यकारी माना गया है। कुंभ पर्व पर तांबे के लोटे से सूर्य को अघ्र्य देना अति लाभकारी है। अघ्र्य देने से नेत्र दोष, नव ग्रह दोष, पितृ दोष नष्ट होते हैं। अघ्र्य देने के लिए सूर्योदय के कुछ बाद, लोटे में जल ले कर, हृदय के साथ लगा कर, धीरे-धीरे जल को अटूट धार से गिराना चाहिए। नव ग्रह शांति एवं काल सर्प योग शांति, विष कन्या दोष आदि की शांति भी कुंभ पर्व पर उचित मानी गयी हैं। सौभाग्य एवं सुख की प्राप्ति के लिए कुंभ पर्व पर गंगादि के किनारे की मिट्टी से षिव लिंग निर्मित कर के पार्थिव पूजा करने से सुख-सौभाग्य की निष्चय ही प्राप्ति होती है। अनेक प्रकार के बुरे कर्मों के प्रायष्चितस्वरूप, हृदय तक जल में खड़े हो कर, शुद्ध रुद्राक्ष की माला पर यथाषक्ति 24 संख्यात्मक जप करने से लाभ होता है।
पुत्र प्राप्ति एवं पुत्र सुख के लिए श्रीमद्भागवत कथामृत का पान करना तथा विष्णु एवं कृष्ण को तुलसी, अथवा बेल पत्र से सहस्रार्चन करना निष्चय ही लाभ देते हैं। भाग्योदय एवं धन लाभ आदि के लिए ब्रह्मा एवं एकादष रुद्र की पूजा-उपासना की जाती है। कमल पुष्प से विष्णु पूजन करने पर कुंभ पर्व पर उपस्थित सभी देवताओं को संतुष्टि मिलती है तथा वे आषीष प्रदान करते हैं। पुण्य नदी के किसी भी तीर्थ में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं एवं पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा गया है कि जो पुण्य कार्तिक माह में हजार बार गंगा स्नान से प्राप्त होता है, माघ माह के सौ स्नान एवं वैषाख में एक लाख नर्मदा स्नान करने पर जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य कुंभ पर्व में एक स्नान से प्राप्त होता है।