जन्मकुंडली में रोगों के संकेत एवं उनके उपाय
जन्मकुंडली में रोगों के संकेत एवं उनके उपाय

जन्मकुंडली में रोगों के संकेत एवं उनके उपाय  

बाल कृष्ण गुप्ता
व्यूस : 4169 | जून 2015

मनुष्य की जन्मकुंडली उसके जीवन का आईना होती है। जीवन में क्या होने वाला है यह समय के पहले बड़ी आसानी से जाना जा सकता है। कुंडली में बारह भाव होते हैं, हर भाव का अपना-अपना कार्य क्षेत्र होता है। कुंडली का प्रथम भाव लग्न जातक के स्वास्थ्य से विशेष रूप से संबंधित होता है। वहीं षष्ठ भाव रोग का भाव है, तो द्वादश अस्पताल जाने का। वैदिक ज्योतिष में लग्न एवं लग्नेश की स्थिति, लग्न पर पड़ने वाली अशुभ ग्रहों की दृष्टि या लग्न में स्थिति स्वास्थ्य के ठीक रहने या गड़बड़ होने का संकेत करती है।

वहीं कृष्णमूर्ति पद्धति में लग्न के उप स्वामी की स्थिति इस ओर संकेत करती है। अगर लग्न भाव का या लग्न के उप स्वामी का संबंध तृतीय, पंचम एवं एकादश (चर लग्न वालों के लिए एकादश बाधक स्थान होता है।) भावों से हो तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा, पर अगर इनका संबंध षष्ठ, अष्टम् एवं द्वादश से बनता है तो स्वास्थ्य के खराब होने की पूरी संभावना होती है। लग्न एवं लग्नेश को दूषित करने वाले ग्रहों के दशा समय में बीमारी की पूरी संभावना बनती है। कुंडली के बारह भाव शरीर के पूरे अंगों के द्योतक हंै। दशा विशेष में कुंडली का कोई भाव दूषित हो रहा हो तो उससे संबंधित शरीर के अंग में रोग होने की संभावना होती है। कोई भी जातक जीवन भर एक ही तरह के रोग से ग्रस्त नहीं होता है। समय के बदलाव के साथ-साथ रोग का स्थान बदलता रहता है। किसी जातक में किस तरह के रोग के ज्यादा होने की संभावना है, यह लग्न एवं लग्न नक्षत्र के स्वामी से स्पष्ट होता है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


मान लिया कि कोई जातक मेष लग्न का है एवं लग्न स्पष्ट 00 से 130 20’ के बीच कहीं होगा, तो मेष (मंगल) एवं केतु के संयुक्त प्रभाव से रोग होने की संभावना होगी। इसमें माथे में चोट, बेहोशी, दिमाग में रक्त के प्रभाव में अवरोध, मिरगी, अधकपारी, कोमा में जाने की संभावना, लकवा, मेनेंजाइटिस, चेचक, मलेरिया आदि की संभावना बनती है। वहीं अगर लग्न मिथुन हो एवं वह 200 से 300 के बीच का हो तो लग्न नक्षत्र पुनर्वसु होता है जिसका स्वामी गुरु होता है। इस स्थिति में प्लूरोसी ब्रांेकाइटिस, निमोनिया, बांह एवं छाती को जोड़ने वाली हड्डी में खराबी, हृदय के ऊपर झिल्ली का बढ़ने, फेफड़े से संबंधित मिरगी की बीमारी की संभावना रहती है।

अब सोचने वाली बात यह है कि क्या हर किसी को, जो मिथुन के 200 से 300 के बीच पैदा हुआ है, यह बीमारी भोगनी होगी? जवाब है नहीं। यहां पर लग्न, लग्न का स्वामी बुध एवं लग्न नक्षत्र का स्वामी गुरु, तीन तत्व मौजूद हैं। ये तीनों अगर सबल होते हैं एवं अन्य ग्रहों का किसी तरह का कुप्रभाव नहीं पड़ता है तो बीमारी नहीं होगी, स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पर अगर किसी कुंडली में लग्न मिथुन हो और वह 200 से 300 के बीच हो, सिंह राशि पर तृतीय में शनि और मंगल हों, षष्ठ पर सूर्य बुध हों, सप्तम में द्वादश का स्वामी शुक्र हो एवं गुरु नीच राशि मकर में हो, राहु मीन में, केतु कन्या में और चंद्र कुंभ में हो तो लग्न, लग्नेश एवं लग्न नक्षत्र का स्वामी सभी के सभी दूषित एवं कमजोर होंगे और इस स्थिति में बीमारी होगी ही।

यहां पर सिंह राशि मंगल और शनि की वजह से, पंचम भाव शनि की दृष्टि से एवं लग्नेश और सूर्य मंगल के दृष्टि प्रभाव में दूषित हैं, तो हृदय रोग तो होना ही है। कुंडली में इस तरह की स्थिति के कारण आने वाले रोग को रोकने का प्रयास पहले से किया जाए। सुरक्षा के लिए सूर्य एवं बुध का रत्न पहनना, दूरी के हिसाब से गुरु अष्टम में नहीं हो कर सप्तम में हो तो पीला पुखराज पहनना अन्यथा गुरु का यंत्र पहनना लाभप्रद हो सकता है। इसके साथ-साथ संभव हो तो रविवार को बिना नमक खाना खाएं, ज्यादा तेल, घी, मिर्च, मसाले, मांसाहारी खाना आदि नहीं खाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त प्रतिदिन सुबह में टहलना लाभप्रद होगा। इस तरह के उपाय करने पर बीमारी होने की संभावना कम होती है। शरीर की संरचना में इंद्रधनुष के रंगा का बहुत महत्व होता है। हर रंग का एक स्वामी ग्रह होता है एवं जो रंग शरीर में निर्धारित अनुपात से कम होता है, उसका स्वामी ग्रह कमजोर होता है। ऐसे में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करना लाभप्रद होता है।

कुंडली जातक के शरीर में होने वाले रोग की जानकारी देता है। रोग से ग्रस्त व्यक्ति को उसके अनुरूप पूजा, जप, रत्न धारण और औषधि सेवन करना चाहिए। सनातन धर्म के अनुसार दो मंत्रों को ज्यादा अहमियत दी गई है। महामृत्युंजय एवं गायत्री। इन दोनों में किसकी महत्ता अधिक है, यह कहना मुश्किल है पर अगर दोनों को एक साथ मिला दिया जाए तो मिलकर बनने वाला मंत्र मृत संजीवनी कहलाता है।

नीचे मृत संजीवनी मंत्र दिया जा रहा है। जिसके जप से देव-दानव युद्ध में मृतक दानवों को जिलाया जाता था। इस तरह इसकी अहमियत, स्वतः स्पष्ट होती है। ¬ हौं जूं सः ¬ भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्व रेण्यं त्रयम्बकं यजामहे भर्गो देवस्य धीमहि सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् धियो यो नः प्रचोदयात् उर्वारुक मिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात स्वः भुवः भूः ¬ सः जूं हौं ¬ जप कराने के समय एक बात का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिए कि जिस ग्रह की वजह से बीमारी या परेशानी हो रही हो, उसी का जप पहले कराना चाहिए। हर समय महामृत्युंजय के ही जप कराना उचित नहीं होता है।


Book Durga Saptashati Path with Samput




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.