बालकांड सर्ग 18 श्लोक 8,9 और 10 (1-18/8,9,10) में महर्षि वाल्मीकि ने उल्लेख किया है कि श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजित मुहूर्त में मध्याह्न में हुआ। उस समय पांच ग्रह सूर्य, शनि, गुरु, शुक्र एवं मंगल अपनी उच्च राशि में स्थित थे और कर्क लग्न पूर्व में उदय हो रहा था। पुनर्वसु नक्षत्र उदित था।
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ।। 1-18-8।।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु।
ग्रहेषु कर्कट लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।। 1-18-9।।
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम्।
कौसल्याजनयद् रामंदिव्यलक्षणसंयुतम् ।। 1-18-10।।
यज्ञ के पश्चात् छह ऋतुओं के गुजर जाने पर बारहवें मास चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया। उस समय नौ में से पांच ग्रह सूर्य, मंगल, गुरु, शनि और शुक्र अपने उच्चांश पर थे, और लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान था। कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह 21 फरवरी, 5115 ई. पू. आता है।
इस दिन नवमी तो आती है, लेकिन नक्षत्र पुष्य आता है। गणना के अनुसार जब सूर्य मेष में होता है तो नवमी पुनर्वसु नक्षत्र में नहीं हो सकती, क्योंकि सूर्य और चंद्र के मध्य अधिकतम दूरी 930 20’ ही हो सकती है जबकि नवमी तिथि के आरंभ के लिए यह दूरी 960 होनी चाहिए।
अतः महर्षि वाल्मीकि के लेखन में कहीं भेद है। नवमी तिथि के बारे में अन्यत्र जैसे तुलसी रामचरितमानस में भी उल्लेख है एवं रामनवमी चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि को ही मनायी जाती है। बालकांड के 190वें दोहे के बाद की प्रथम चैपाई में तुलसीदास जी लिखते हैं:
नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता। मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा।।
पवित्र चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न में अभिजित मुहूर्त में श्री राम का जन्म हुआ।
अतः हम नवमी तिथि का ही आधार लेकर एवं नक्षत्र की गणना को अनदेखा कर राम जन्म तिथि की गणना करते हैं तो 21 फरवरी, 5115 ई. पू. प्राप्त होती है। इस प्रकार 18 अप्रैल, 2005 को श्री राम के 7119 वर्ष पूर्ण होकर 7120 वां वर्ष प्रारंभ हुआ। श्री राम केवल कल्पना नहीं अपितु उन्होंने इतिहास में वास्तव में जन्म लिया था। श्री राम 16वें वर्ष में ऋषि विश्वामित्र के साथ तपोवन को गए थे। इस तथ्य की पुष्टि वाल्मीकि रामायण के बालकांड के बीसवें सर्ग के श्लोक दो से भी हो जाती है:
ऊनषोडशवर्षो मे रामो राजीवलोचनः। न युद्धयोग्यतामस्य पश्यामि सह राक्षसैः।।
(वा.रा.बा.कां. सर्ग 20 श्लोक2)
इस श्लोक में राजा दशरथ अपनी व्यथा प्रकट करते हुए कहते हैं कि उनका कमलनयन राम सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ और उसमें राक्षसों के साथ युद्ध करने की योग्यता नहीं है। तपोवन में उन्होंने अनेक राक्षसों का संहार किया और पति श्रापवश पत्थर बन गई गौतम नारी अहिल्या का अपने चरणों से स्पर्श कर उद्धार किया। उसके बाद वह श्री जनक के देश मिथिला आए और शिव धनुष को तोड़ सीता से विवाह किया।
तपोवन से मिथिला आने के मार्ग में 23 स्मारक मिलते हैं जो श्री राम के होने की सत्यता को सिद्ध करते हैं। विवाह के 1वर्ष पश्चात ही श्री राम ने 17 वर्ष की आयु में अयोध्या से वन के लिए प्रस्थान किया एवं 31 वर्ष की अवस्था में अयोध्या वापस आए। उनकी वन यात्रा के लगभग 200 स्मारक अभी भी विद्यमान हैं जैसे दक्षिण में रामेश्वरम मंदिर, उत्तर में चित्रकूट, पंचवटी, शबरी आश्रम, इलाहाबाद में भारद्वाज आश्रम, अत्रि आश्रम एवं मुख्य रूप से रामेश्वरम और श्रीलंका के मध्य पत्थरों का बना समुद्र में डूबा हुआ सेतु जिस पर चलकर उन्होंने वानर सेना सहित लंका में प्रवेश किया।
श्री राम एवं श्री कृष्ण के मध्य 60 राजाओं का उल्लेख आता है। यदि एक राजा का औसत राज्यकाल 35 वर्ष हो तो श्री राम कृष्ण से लगभग 2000 वर्ष पूर्व उत्पन्न हुए। श्री कृष्ण का जन्म 21 जुलाई, 3228 ई. पू. को मध्य रात्रि में मथुरा में हुआ। मोहनजोदड़ो के 2600 ई. पू. के शिलालेखों में भी श्री कृष्ण का विवरण मिलता है एवं 3000 ई.पू. के मिस्री पिरामिडों में भगवद्गीता के श्लोक मिलते हैं।
कहा जाता है कि जिस क्षण श्री कृष्ण ने शरीर त्यागा उसी क्षण से कलियुग का प्रारंभ हुआ, जिसकी गणना 18 फरवरी, 3102 ई. पू. आती है। श्री कृष्ण ने 125 वर्ष पूर्ण कर 126वें वर्ष में शरीर का परित्याग किया। इस प्रकार श्री कृष्ण की जन्मतिथि 3228 ई.पू. तय होती है और श्री राम की जन्मतिथि भी इस गणना से मेल खाते हुए 5115 ई.पू. तय होती है।