शंख स्थापना, उपयोग व महत्व नागेंद्र भारद्वाज भारतीय धर्म शास्त्रों में शंख का स्थान विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण है। शंख का अर्थ है संकल्प, सुनिश्चय का प्रकटीकरण। पुराणों में शंख को ‘¬’ का प्रतीक माना गया है इसलिए पूजा अर्चना तथा अन्य मांगलिक कार्यों पर शंख ध्वनि की विशेष महŸाा है। एक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक एक दैत्य का वध किया था, उसी शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक है शंख। धार्मिक मान्यता जो भी हो, परंतु वैज्ञानिक दृष्टि कोण से कहें तो शंख सागर का एक जलचर है जो कि ज्यादातर वामावर्त या दक्षिणावर्त आकार में बना होता है। शास्त्रों में विभिन्न स्थानों पर शंख को समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में एक माना जाता है। महत्व व उपयोग: शंख को निधि का प्रतीक माना जाता है। इसे घर में पूजा स्थल पर रखने से अनिष्टों का शमन व सौभाग्य में वृद्धि होती है। पूजा, अनुष्ठान, आरती, यज्ञ तथा तांत्रिक क्रियाओं में इसका विशेष उपयोग किया जाता है। शंख साधक के उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने तथा अभीष्ट प्राप्ति में सहायक होते हैं। शंख को लक्ष्मी जी का सहोदर भाई माना जाता है। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावर्ती तथा जो बाएं हाथ से पकड़ा जाता है वह वामावर्ती शंख कहलाता है। अपनी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये दोनां शंख अन्य शंखों की तुलना में अधिक मूल्यवान होते हैं। शंख को यश, मान, कीर्ति, विजय और लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है इसलिए इसे वैदिक अनुष्ठानों एवं पूजन क्रियाओं, पारद तथा पार्थिव शिवलिंग की स्थापना, मंदिरों के निर्माण तथा रुद्राभिषेक करते समय उपयोग में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त आरती, हवन, धार्मिक उत्सव, गृह प्रवेश, वास्तु दोष शमन पूजन आदि नागेंद्र भारद्वाज शुभ अवसरों पर शंख नाद किया जाता है। पितृ तर्पण में शंख का अत्यधिक महत्व है। ऊपर वर्णित पूजा अनुष्ठानों के अतिरिक्त शंख का उपयोग अन्य लाभ के लिए भी किया जाता है। इसे दुकान, मकान, आॅफिस, फैक्ट्री आदि में स्थापित करने से वहां के वास्तु दोष दूर होते हैं तथा लक्ष्मी का वास व व्यवसाय में उन्नति होती है। शंख को देवताओं के चरणों मंे रखा जाता है। पूजा स्थान में दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करने से चिरस्थायी लक्ष्मी का वास होता है। कामनापूर्ति हेतु शंख की नर और मादा की जोड़ी की स्थापना करनी चाहिए। कहा जाता है कि गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती स्त्री को सेवन कराने से संतान स्वस्थ व रोग मुक्त होती है। कछुआ शंख की स्थापना से अन्न, धन, लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार मोती शंख को घर में रखने व उसकी पूजा करने से आध्यात्मिक उन्नति और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा स्वास्थ्य अनुकूल रहता है। शंख का आयुर्वेदिक व वैज्ञानिक महत्व: शंख का आयुर्वेदिक एवं वैज्ञानिक महत्व भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार शंख नाद करने से वायु शुद्ध होती है तथा नकारात्मक ऊर्जा का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का सृजन होता है। इसकी ध्वनि के प्रसार क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है। हृदय और दमा के रोगियों के लिए शंख नाद करना लाभदायक होता है। शंख नाद करने से गले से संबंधित बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है। आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म के सेवन से पेट से संबंधित बीमारियां दूर होती हैं और रक्त शुद्ध होता है। शंख पूजन: शंख देवता का प्रतीक है। गंगाजल, दूध, घी, शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से इसका अभिषेक किया जाता है। दीपावली, होली, नवरात्रि, राम नवमी, गुरु पुष्य योग या शुक्रवार को शुभ मुहूर्त में लाल रंग के वस्त्र पर विशिष्ट कर्मकांड विधि से शंख की स्थापना कर धूप, दीप, नैवेद्य से इसका पूजन नित्य करना चाहिए। ऐसा करने से सभी प्रकार के असाध्य रोग, दुख व दारिद्र्य दूर होते हैं। अनुकूल वास्तु के लिए शंख स्थापना: घर के ईशान कोण में आसन पर शंख की स्थापना इस तरह करनी चाहिए कि उसका धारा मुख उŸार की ओर हो। इससे सुख-संपदा और परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम की अभिवृद्धि होती है और उनका स्वास्थ्य अनुकूल रहता है। शंख को तुलसी अर्पित करने से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। किंतु ध्यान रहे, यह क्रिया रविवार को नहीं करना चाहिए। घर में ईशान कोण बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिशा में दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर रखने से घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है। घर के ईशान कोण में शंख की स्थापना करने से विद्या का निरंतर विकास होता है व परिवार के सदस्यों का मानसिक संतुलन बना रहता है। इस प्रकार शंख की विधिवत स्थापना और नियमित पूजा आराधना से सुख-समृद्धि, दीर्घायु, पुत्र, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति होती है। संभवतः इसीलिए कहा गया है, ‘‘शंख शब्दो भवेद् यत्र तत्र लक्ष्मीश्च सुस्थिरा’’।।