शारदीय नवरात्र एवं पंच पर्व दीपावली के शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्र एवं पंच पर्व दीपावली के शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्र एवं पंच पर्व दीपावली के शुभ मुहूर्त  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4122 | अकतूबर 2006

इस वर्ष शारदीय नवरात्र का आरंभ दिनांक 23 सितंबर 2006, शनिवार से हो रहा है। भारतवर्ष में नवरात्रों का बड़ा महत्व है। शक्ति की उपासना करने वाले शाक्तों के लिए तो यह अवधि बहुत महत्वपूर्ण होती है। जनसामान्य के लिए भी नवरात्र में आनंद, उत्सव और उपासना के सम्मिलित अवसर होते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वासंती नवरात्र एवं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र का प्रारंभ होता है। शारदीय नवरात्र भारतवर्ष में अधिक प्रचलित हैं। शक्ति की दुर्गा के रूप में उपासना की जाती है जो दुर्गतिनाशिनी और भोग एवं मोक्षप्रदा हैं। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को कलशस्थापन के साथ ही शारदीय नवरात्र का प्रारंभ होता है और नौ दिनों तक नवदुर्गाओं की उपासना की जाती है। इस वर्ष देवी का आगमन अश्व पर हो रहा है जिसका फल शासकवर्ग पर संकट के रूप में देखा जाता है। देवी का गमन महिष पर होगा जिसका फल संक्रामक रोगों का फैलना है। शारदीय नवरात्र में महानवमी का व्रत एवं पूजन दिनांक 1 अक्तूबर 2006 को है। नवमी का हवन इसी तिथि को करना चाहिए। 4 बजकर 36 मिनट के बाद उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में इस दिन सरस्वती देवी के निमित्त विभिन्न बलिदान एवं आयुध पूजा करनी चाहिए। महानवमी को देवी की पूजा सिद्धिदात्री के रूप में की जाती है। विजयादशमी विजयादशमी या दशहरा का पर्व इस वर्ष दिनांक 2 अक्तूबर 2006 को है। नवरात्र की समाप्ति के बाद देवी को इस दिन अपराजिता के रूप में देखा जाता है।

विजयादशमी का दिन एक महान पर्व एवं उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त के रूप में अत्यधिक प्रचलित है। विजयादशमी को किसी भी कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है। आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये, स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थ सिद्धये।। विजयादशमी का पर्व आश्विन शुक्ल दशमी के दिन होता है। दशमी तिथि के साथ जिस दिन श्रवण नक्षत्र का सहयोग हो, उसी दिन विजयादशमी होती है। श्रवण नक्षत्र युक्त सूर्योदय व्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। दशमी के दिन सायंकाल के समय विजयपर्व होता है। यह पर्व धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है। इस बार 13 बजकर 16 मिनट से 14 बजे तक विजय मुहूर्त है। इस काल में प्रारंभ किए गए कार्यों में विजय और सफलता मिलती है। इस दिन अस्त्र-शस्त्रों की पूजा भी की जाती है। शमी एवं अपराजिता की पूजा तथा नीलकंठ दर्शन का भी विधान है। महात्मा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा 6 अक्तूबर 2006 को आश्विनी पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा है। शरद पूर्णिमा का व्रत महा पुण्यफलदायी होता है। इस व्रत को करने से आयु आरोग्य की प्राप्ति होती है।

अर्द्ध रात्रि के समय चंद्रमा का पूजन करके दूध में बनी खीर में घृत तथा खांड मिलाकर चंद्रमा के प्रकाश में रखें फिर उसे भगवान को अर्पित करके दूसरे दिन प्रातः काल खाएं। इससे शारीरिक एवं मानसिक बल में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा को मध्य रात्रि में चंद्रमा संसार की दिव्य औषधियों पर अमृत वर्षा करते हैं। इस दिन स्नान और दान करने का भी विधान है। कार्तिक स्नान व्रत, यम नियमादि का आरंभ इस दिन से ही हो जाता है। कार्तिक में दीपदान करने का भी विधान है। इस दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती भी मनाई जाती है। करवा चैथ 10 अक्तूबर 2006 को करवा चैथ का व्रत और पर्व दिवस है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। स्त्रियां पूरे दिन व्रत रखकर चंद्रमा के दर्शन करके अघ्र्य देकर व्रत पूर्ण करती हैं। हिंदू धर्म संस्कृति में इस व्रत की सर्वत्र मान्यता है। सुहागिन एवं पतिव्रता स्त्रियां अपने मांगल्य एवं पति की लंबी आयु एवं समृद्धि के लिए इस कठिन व्रत को रखती हैं। धनतेरस इस बार 19 अक्तूबर को धनत्रयोदशी या धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को धन्वन्तरि जयंती और धनत्रयोदशी दोनों ही मनाने का विधान है।

इस दिन घर में नई चीज खासकर बरतन, सोना-चांदी खरीद कर लाने का विधान एवं परंपरा है। इस दिन धन का अपव्यय नहीं किया जाता तथा किसी को उधार भी नहीं दिया जाता है। इसलिए कुछ लोग खासकर व्यापार में लेन-देन करने से भी बचते हैं। ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन धन का अपव्यय रोकने से अगले वर्ष धन का संचय होता है। इस दिन प्रदोषकाल में घर के बाहर यम के लिए दीपदान करना चाहिए। ऐसा करने से घर के सदस्यों को अकालमृत्यु का भय नहीं रहता है। आयुर्वेद के प्रवर्तक धन्वन्तरि की जयंती भी प्रमुखता से मनाई जाती है। नरक चैदस 20 अक्तूबर 2006, कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या नरक चैदस के रूप में मनाने की परंपरा है। कुछ जगहों पर इसे छोटी दीपावली के रूप में तथा अधिकांश स्थानों पर हनुमान जयंती के रूप में मनाते हैं। इस दिन कुबेर की भी पूजा की जाती है। इस तिथि को रूप चैदस के रूप में भी मनाने की परंपरा है। प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर तुंबी (लौकी) को सिर पर से घुमाने के बाद स्नान करने से रूप और सौंदर्य बना रहता है तथा लोग नरकगामी होने से भी बच जाते हैं।

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यह भी मान्यता है कि भगवान ने इसी दिन वामन के रूप में अवतार लिया था। इस दिन दान करने से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन निशामुखी वेला में दीपदान भी करना चाहिए। दीपावली इस वर्ष दीपावली 21 अक्तूबर 2006 को मनाई जाएगी। हिंदुओं के लिए इस पर्व का अत्यधिक महत्व है। वैसे पूरे भारत वर्ष में और अन्य देशों में भी जहां भारतीय मूल के लोग हंै, यह पर्व सभी संप्रदायों एवं धर्मों को मानने वालों के द्वारा हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ लक्ष्मी एवं गणेश का पूजन करते हैं। दीपावली की रात्रि को महानिशीथ काल की संज्ञा दी गई है। तंत्र की साधना, लक्ष्मी पूजा एवं काली पूजा के लिए इस रात्रि से बढ़कर कोई भी समय नहीं होता। अतः साधक एवं भक्त लोग इस रात्रि की प्रतीक्षा में रहते हैं एवं इसकी पूजा एवं उपासना में पूरे मनोयोग से सम्मिलित होते हैं। इस दिन सभी घरों, दुकानों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों में महालक्ष्मी का पूजन अवश्य होता है।

व्यापारी लोग खाता-बही, तिजोरी एवं तुला की पूजा भी करते हैं। प्रत्येक स्थान को दीप जलाकर प्रकाशित किया जाता है क्योंकि यह प्रकाशपर्व भी है। इस दिन मिठाइयां एवं उपहारों को बांटने की परंपरा भी है। दीपावली के दिन लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होती है। और भक्तों एवं साधकों के धन तथा समृद्धि की वृद्धि होती है। लक्ष्मी की पूजा के लिए सायंकाल में वृषभ एवं निशीथ काल में सिंह लग्न अधिक प्रशस्त माना गया है क्योंकि शास्त्रकारों के अनुसार लक्ष्मी की पूजा के लिए स्थिर लग्न ही फलदायी माना गया है। गोवर्धन पूजा 22 अक्तूबर 2006, कार्तिक शुक्लपक्ष प्रतिपदा गोवर्धन पूजा तथा अन्नकूट का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन व्रज में गोवर्धन पूजा एवं परिक्रमा का विधान है। लोग अपने गोधन की पूजा करते हैं एवं गोवंश के संवर्धन का प्रण लेते हैं। यह दिन विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। चित्रगुप्त जी की पूजा भी इसी दिन की जाती है। भाईदूज दिनांक 24 अक्तूबर 2006 कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को भ्रातृद्वितीया या यमद्वितीया के रूप में मनाने का रिवाज है।

इसे भाई दूज भी कहा जाता है। इस दिन यमुना में स्नान, दीपदान आदि का महत्व है। इस दिन बहनें, भाइयों के दीर्घजीवन के लिए यम की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। जो भाई इस दिन अपनी बहन से स्नेह और प्रसन्नता से मिलता है, उसके घर भोजन करता है, उसे यम के भय से मुक्ति मिलती है। भाइयों का बहन के घर भोजन करने का बहुत माहात्म्य है। छठ दिनांक 28 अक्तूबर 2006, कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी को सूर्यषष्ठी व्रत या छठ पर्व मनाया जाएगा। सूर्य, जो साक्षात नारायण स्वरूप हैं, की पूजा और आराधना का भारतीय समाज में बहुत महत्व है। सूर्य की आराधना से स्वास्थ्य, समृद्धि एवं पुत्रलाभ होता है। सूर्यषष्ठी व्रत या छठ व्रत का अनुष्ठान बिहार एवं उत्तरप्रदेश में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है। षष्ठी के सायंकाल एवं सप्तमी के प्रातःकाल में सूर्य भगवान को अघ्र्य दिया जाता है। आश्विन शुक्लपक्ष एवं कार्तिक मास व्रत पर्वों आदि की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। कार्तिक मास में प्रातः गंगास्नान, गंगातटवास एवं दीपदान का बहुत बड़ा माहात्म्य है।

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विभिन्न शहरों में दीपावली पूजन के शुभ मुहूर्त 21.10.2006 दीपावली की सांध्यकालीन एवं रात्रिकालीन स्थिर लग्नों का विवरण वृष लग्न सिंह लग्न शहर प्रारंभ समाप्ति प्रारंभ समाप्ति दिल्ली 19ः05 21ः00 25ः39 27ः56 चेन्नई 19ः17 21ः19 25ः40 27ः43 कोलकाता 18ः31 20ः29 24ः58 27ः10 मुंबई 19ः39 21ः38 26ः04 28ः12 पटना 18ः39 20ः36 25ः07 27ः22 लखनऊ 18ः54 20ः50 25ः23 27ः38 भोपाल 19ः13 21ः11 25ः41 27ः53 देहरादून 18ः59 20ः53 25ः30 27ः49 चंडीगढ़ 19ः03 20ः57 25ः34 27ः54 अहमदाबाद 19ः33 21ः31 26ः00 28ः12 हैदराबाद 19ः19 21ः19 25ः44 27ः50 बेंगलूर 19ः28 21ः30 25ः51 27ः54 रांची 18ः42 20ः40 25ः09 27ः22 गुवाहाटी 18ः12 20ः08 24ः41 26ः56 रायपुर 19ः00 20ः59 25ः26 27ः36 जयपुर 19ः14 21ः10 25ः43 27ः59 जम्मू 19ः07 21ः00 25ः40 28ः01 शिमला 19ः01 20ः55 25ः33 27ः52 श्रीनगर 19ः04 20ः57 25ः38 28ः01 तिरुअनंतपुरम 19ः37 21ः41 25ः58 27ः58 गोवा (पणजी) 19ः39 21ः40 26ः04 28ः09 ईटानगर 18ः03 19ः59 24ः32 26ः48 इम्फाल 18ः05 20ः03 24ः34 26ः47 शिलांग 18ः12 20ः09 24ः41 26ः55 काठमांडू 18ः51 20ः48 25ः21 27ः37 पोर्ट ब्लेयर 18ः30 20ः33 24ः52 26ः54

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