देश की राजधानी दिल्ली में वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में एक ही प्रश्न बार-बार कौंध रहा है कि सीलिंग का क्या होगा? क्या यह सीलिंग इसी तरह से लगातार चलती रहेगी, या कुछ समय पश्चात रुक जाएगी, या इसका कुछ समाधान निकल पाएगा? आखिर इतने बड़े व्यापारी वर्ग की रोजी-रोटी का क्या होगा? क्या यह व्यापारी वर्ग बेरोजगार होकर इधर-उधर भटकता रहेगा और अंततः दिल्ली से बाहर पलायन कर जाएगा? या क्या छोटे-छोटे व्यापारियों के व्यापार बंद हो जाने से चोरी, डकैती की घटनाओं में वृद्धि होगी और वे असामाजिक तत्वों में तब्दील हो जाएंगे दिल्ली भारत की राजधानी है और देश का दिल अर्थात हृदय कहलाती है।
दिल्ली का दिल कहा जाए तो वह कनाॅट प्लेस का क्षेत्र है। दिल्ली में सीलिंग का प्रभाव यदि देखा जाए, तो विशेष रूप से व्यापारी वर्ग पर ही पड़ रहा है। अर्थात सीलिंग का सीधा-सीधा प्रभाव व्यापारी वर्ग ही झेल रहा है और सबसे अधिक पीड़ित व्यापारी वर्ग ही है। यदि दिल्ली में तोड़फोड़ और सीलिंग के लिए वास्तु का विश्लेषण किया जाए, तो सर्वप्रथम हमें अपना ध्यान दिल्ली के कनाॅट प्लेस क्षेत्र पर केंद्रित करना होगा, जिसे दिल्ली शहर का ब्रह्म स्थल माना जाना चाहिए।
जब से दिल्ली के कनाॅट प्लेस क्षेत्र में मेट्रो स्टेशन का निर्माण कार्य आरंभ किया गया, जिसके लिए दिल्ली शहर के ब्रह्म क्षेत्र में गहरी खुदाई करके भूमिगत मेट्रो स्टेशन का निर्माण किया गया, तब से दिल्ली में अवैध निर्मार्णों की तोड़फोड़ और सीलिंग जैसे कार्य आरंभ हुए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ब्रह्म स्थल को सदैव थोड़ा सा ऊंचा ही रहना चाहिए, जबकि वहां भूमिगत मेट्रो स्टेशन बनाकर उसे नीचा कर दिया गया।
ज्ञात हो कि हमारे देश की न्यायपालिका ने 16 फरवरी 2006 को अवैध निर्माण हटाने के लिए बड़ी-बड़ी गैर कानूनी इमारतों को ढहाने के आदेश पारित किए थे। एम. सी. डी. द्वारा 28 माच 2006 की तिथि निर्माण ढहाने और सीलिंग की प्रक्रिया प्रारंभ करने की निश्चित की गई। वास्तु के अनुसार पूर्व, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा जल तत्व का क्षेत्र है। इसके विपरीत दक्षिण, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम पृथ्वी तत्व का क्षेत्र है। इसलिए जल तत्व के क्षेत्र को हल्का-फुल्का तथा पृथ्वी तत्व के क्षेत्र को भारी भरकम व ऊंचा रखा जाता है ताकि वास्तु का संतुलन बना रहे।
जहां एक ओर दिल्ली शहर में ब्रह्म स्थान में खुदाई का कार्य शुरू किया गया वहीं, पिछले 2 या 3 वर्षों में दिल्ली की पूर्व दिशा में निर्माण कार्य की भरमार बढ़ गई। दिल्ली के पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत गाजियाबाद, नोएडा, शाहदरा, इंदिरापुरम, ग्रेटर नोएडा आदि क्षेत्र आते हैं। यदि आप गौर करें तो पाएंगे कि इन क्षेत्रों में पिछले 2-3 सालों के अंदर कई महत्वपूर्ण बिल्डरों और यहां तक कि सरकार ने भी ऊंची-ऊंची इमारतों का निर्माण करके रिहायशी फ्लैटों की तथा शापिंग माॅल्स की बाढ़ सी ला दी है। इन इमारतों के फलस्वरूप दिल्ली शहर की पूर्वी दिशा, जो हल्की और खुली होनी चाहिए थी, बंद सी और भारी हो गई है।
इसके विपरीत दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम या पश्चिम दिशा भारी होनी चाहिए और इसी दिशा में ऊंची इमारतें होनी चाहिए। इस दिशा में सोनिया विहार जल संयंत्र का निर्माण किया है। जिसके लिये भूमिगत जलाशयों का निर्माण भी किया गया है। अर्थात् जहां ऊंचा होना चाहिए था वहां नीचा कर दिया गया और जहां नीचा किया जाना था, वहां ऊंचा कर दिया गया इसके अतिरिक्त दक्षिणी दिशा में पूर्व की तुलना में न तो उतना अधिक निर्माण हो पाया और न ही ऊंची इमारतें ही बन पाईं।
दिल्ली के दक्षिण क्षेत्र में विशेष रूप से जो क्षेत्र आते हैं वे हैं साउथ एक्सटेंशन, हौज खास, ग्रीन पार्क, सैनिक फार्म, साकेत आर. के. पुरम, नौरोजी नगर, सरोजनी नगर, मोती बाग आदि। इन क्षेत्रों में या तो अधिकतर सरकारी रिहायशी मकान हैं, या बड़े-बड़े एक मंजिला या दो मंजिले सरकारी या गैर सरकारी फ्लैट या फिर फार्म हाउस। कहने का तात्पर्य यह है कि दिल्ली का दक्षिणी क्षेत्र नीची इमारतों वाला, कम घना व खुला-खुला क्षेत्र है। जबकि इस क्षेत्र में ऊंची तथा भारी इमारतें होनी चाहिए थीं।
मेट्रो के निर्माण कार्य के कारण भी दिल्ली का वास्तु बिगड़ता जा रहा है। क्योंकि इसके लिये ऊंचे और भारी खंभों का भी निर्माण किया जा रहा है। जिसके कारण वास्तु पुरुष के मर्मस्थल और अतिमर्म स्थलों पर भी खुदाई करनी पड़ रही है तथा ऊंचे-ऊंचे भारी-भारी खंभों का निर्माण किया जा रहा है। इस प्रकार निर्माण कार्य की प्रगति और दिशा देखें तो यह निर्माण काय वास्तु के नियमों के ठीक विपरीत हो रहा है। यही कारण है कि दिल्ली जैसे समृद्ध और देश का दिल कहे जाने वाले शहर का वास्तु असंतुलित हो गया है, जिसके कारण दिल्ली शहर में तोड़फोड़ और सीलिंग जैसी कार्यवाही हो रही है।
जब तक यह असंतुलन नहीं रोका जाएगा, दिल्ली में तोड़फोड़ की कार्यवाही या किसी अन्य दैविक आपदा जैसी स्थिति की आशंका बनी रहेगी। इसके अतिरिक्त यदि इन सभी घटनाओं का ज्योतिषीय विश्लेषण किया जाए, तो 27 अक्तूबर 2006 को गुरु ने अपना राशि परिवर्तन कर तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश किया है। उधर शनि ने 1 नवंबर को कर्क राशि से सिंह राशि में प्रवेश किया है। यदि भारत की कुंडली पर विचार किया जाए, जो कि 14-15 अगस्त 1947 को 12.00 बजे मध्य रात्रि के आधार पर बनाई गई है, उसके अनुसार भारत का लग्न वृष है और चंद्र राशि कर्क है। कालपुरुष की कुंडली के अनुसार चैथा भाव हृदय का है और पराशरी पद्धति के अनुसार सप्तम को व्यापारी साझेदारी या व्यापार का भाव माना गया है।
प्राप्त सूचना के अनुसार यदि दिल्ली की कुंडली का निर्माण करना हो, तो दिल्ली की आधारशिला रखने का दिन 12 दिसंबर 1911 है अतः इस तिथि को जन्मतिथि मानना चाहिए, क्योंकि इस दिन किंग जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में कलकत्ते से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने की घोषणा की थी। उस दिन चंद्रमा पूरे दिन सिंह राशि में ही स्थित था। यदि आधारशिला का अनुमानित समय 12.00 बजे दोपहर मान लिया जाए तो दिल्ली की जो कुंडली बनती है वह यहां दी जा रही है। इस कंुडली के अनुसार दिल्ली की जन्म राशि सिंह है और 1 नवंबर 2006 को शनि ने अपनी शत्रु राशि सिंह में प्रवेश किया है और दिल्ली पर पिछले ढाई वर्षों से साढ़ेसाती चल रही है। इससे यह बात साबित होती है कि दिल्ली में शनि के प्रभाव के कारण तोड़फोड़ और सीलिंग जैसी घटनाएं हुई हैं।
मोटे तौर पर देखा जाए तो भारत एवं दिल्ली दोनों की कुंडली पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। और यही दिन सीलिंग प्रारंभ करने का निश्चित किया गया था। यह काल पुरुष के अनुसार देश के हृदय दिल्ली अर्थात दिल पर गोचर किया है और दिल्ली शहर पर ही यह गाज गिरी है। जब कि देश के अन्य प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में अवैध व गैर कानूनी व्यापारिक निर्माण होने के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ। गुरु का गोचर क्योंकि वृश्चिक रा िमें हुआ है, जो कि भारत की कुंडली का सप्तम भाव है और सप्तम भाव व्यापारी वर्ग को दर्शाता है इसलिए इस सीलिंग व तोड़फोड़ का सीधा प्रभाव दिल्ली के व्यापारी वर्ग पर ही पड़ा है।
इससे पहले भी अब से लगभग 30 वर्ष पूर्व जब शनि ने सिंह राशि में 7 सितंबर 1977 को प्रवेश किया तथा 3 नवंबर 1979 तक रहा उस समय एशियाई खेलों के कारण दिल्ली में ढेरों फ्लाई ओवरों का निर्माण किया गया था। इसी के साथ ही 1977 के उत्तरार्द्ध और 1978 के पूर्वाद्ध के मध्य दिल्ली के तुर्कमान गेट पर विशेष अभियान चलाया गया था जिसके अंतर्गत वहां से स्लम क्षेत्र को हटा कर त्रिलोकपुरी और कल्याणपुरी क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया था, जो कि एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, यह कार्य संजय गांधी के द्वारा कराया गया था। उस समय भी जनता का भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।
उस समय भी दिल्ली में काफी उथल-पुथल हो गई थी। उस समय गुरु भारत की कुंडली में दूसरे भाव अर्थात मिथुन राशि से गोचर कर रहा था। द्वितीय भाव कुटंुब का भाव है, जिसके कारण देश की जनता (देश का कुटंुब) को काफी असुविधा का सामना करना पड़ा था। उस समय भी शनि सिंह राशि में लगभग ढाई साल रहा था और गुरु मिथुन राशि में अगस्त 1978 तक रहा था। उस समय सन् 1982 में एशियाई खेल होने थे अतः रातोरात फ्लाई ओवर पुलों के निर्माण के लिए, ढेरों झुग्गी झोपड़ियांे तथा रिहायशी मकानों को नुकसान पहुंचा था। वैसे भी देखा जाए तो भारत की कुंडली के चैथे भाव में शनि का गोचर शत्रु राशि में हुआ है और कुंडली का चैथा भाव जनता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके कारण देश की जनता प्रभावित होती है।
शनि की सप्तम दृष्टि देश की कुंडली के दशम भाव पर पड़ती है, जो कार्य, व्यवसाय व रोजी रोटी का भाव है। अतः शनि की सप्तम दृष्टि देश के रोजगार, व्यापार व रोजी रोटी को सबसे अधिक प्रभावित कर रही है। और दशम दृष्टि लग्न पर पड़ रही है, जिसका प्रभाव है कि जनता की निगाहें सरकार पर टिकी हुई हैं। गुरु की सप्तम दृष्टि शत्रु राशि वृष पर लग्न पर पड़ रही है, जिसके कारण भारत की सरकार भी संकट में आ गई है और कुछ भी न कर पाने की स्थिति में पंगु बनी हुई है।
सारांशतः हम कह सकते हैं कि जब तक शनि सिंह राशि में रहेगा, तब तक दिल्ली में सीलिंग का कार्य जारी रहेगा। परंतु जब शनि वक्री होकर पुनः कर्क राशि में 11 जनवरी 2007 को प्रवेश करेगा तो सीलिंग का यह कार्य या तो समाप्त हो जाएगा या रुक जाएगा या समस्या का कोई अन्य हल ढूंढ लिया जाएगा। पुनः शनि सिंह राशि में 16 जुलाई 2007 को प्रवेश करेगा, तब तक सीलिंग का कार्य या तोड़फोड़ बंद रहेगी। इसके पश्चात गुरु 22 नवंबर 2007 को वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश कर जाएगा। उस समय गुरु की सप्तम दृष्टि वृष राशि से अर्थात लग्न से हट जाएगी। उस समय सारी स्थिति सामान्य हो जाने की आशा है।