अनादि काल से ही हिंदू धर्म में अनेक प्रकार की मान्यताओं का समावेश रहा है। विचारों की प्रखरता एवं विद्वानों के निरंतर चिंतन से मान्यताओं व आस्थाओं में भी परिवर्तन हुआ। क्या इन मान्यताओं व आस्थाओं का कुछ वैज्ञानिक आधार भी है? यह प्रश्न बारंबार बुद्धिजीवी पाठकों के मन को कचोटता है। धर्मग्रंथों को उद्धृत करके‘ ‘बाबावाक्य प्रमाणम्’ कहने का युग अब समाप्त हो गया है। धार्मिक मान्यताओं पर सम्यक् चिंतन करना आज के युग की अत्यंत आवश्यक पुकार हो चुकी है।
प्रश्न: माला का प्रयोग क्यों करते हैं?
उत्तर: माला एक पवित्र वस्तु है जो‘ शुचि संज्ञक’ वस्तुओं से बनाई जाती है। इसमें 108 मनके होते हैं जिससे साधक को अनुष्ठान संबंधी जप- मंत्र की संख्या का ध्यान रहता है। अंगिरा स्मृति में कहा है- ‘‘असंख्या तु यज्जप्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत्।’’ अर्थात बिना माला के संख्याहीन जप जो होते हैं, वे सब निष्फल होते हैं। विविध प्रकार की मालाओं से विविध प्रकार के लाभ होते हैं। अंगुष्ठ और अंगुली के संघर्ष से एक विलक्षण विद्युत उत्पन्न होगी, जो धमनी के तार द्वारा सीधी हृदय चक्र को प्रभावित करेगी, डोलता हुआ मन इससे निश्चल हो जायेगा।
प्रश्न: माला जप मध्यमांगुली से क्यों?
उत्तर: मध्यमा अंगुली की धमनी का हृत्प्रदेश से सीधा संबंध है। हृदयस्थल में ही आत्मा का निवास है। आत्मा का माला से सीधा संबंध जोड़ने के लिये माला का मनका मध्यमा अंगुली की सहायता से फिराया जाता है।
प्रश्न: माला में 108 दाने क्यों?
उत्तर: माला का क्रम नक्षत्रों के हिसाब से रखा गया है। भारतीय ऋषियों ने कुल 27 नक्षत्रों की खोज की। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। 27 ग् 4 = 108 । अतः कुल मिलाकर 108 की संख्या तय की गई है। यह संख्या परम पवित्र व सिद्धिदायक मानी गई। तत्पश्चात् हिंदू धर्म के धर्माचार्यों, जगद्गुरुओं के आगे भी ‘श्री 108’ की संख्याएं सम्मान में लगाई जाने लगीं।
प्रश्न: माला कंठी गले में क्यांे?
उत्तर: मौलाना भी अपने गले में तस्बी लटकाते हैं। ईसाई पादरी भी ईशु मसीह का क्राॅस गले में लटकाते हैं। अतः अपने इष्ट वस्तुओं को गले में धारण करने की धार्मिक परंपरा हिंदुओं में भी है।
ओष्ठ व जिह्ना को हिलाकर उपांशु जप करने वाले साधकों की कंठ धमनियों को अधिक प्ररिश्रम करना पड़ता है। यह साधक कहीं गलगण्ड, कंठमाला आदि रोगों से पीड़ित न हो जाय, उस खतरे से बचने के लिये तुलसी, रुद्राक्ष आदि दिव्य औषधियों की माला धारण की जाती है। हिंदू सनातन धर्म में केवल मंत्र संख्या जानने तक ही माला का महत्त्व सीमित है। महर्षियों ने इसके आगे खोज की तथा विभिन्न रत्न औषधि व दिव्यवृक्षों के महत्त्व, उपादेयता को जानकर उनकी मालाएं धारण करने की व्यवस्थाएं इस प्रकार से दी हैं।
‘तन्त्रसार’ के अनुसार
1. कमलाक्ष (कमलगट्टे) की माला शत्रु का नाश करती है, कुश ग्रन्थि से बनी माला पाप दूर करती है।
2. जीयापीता (जीवपुत्र) की माला, संतानगोपाल आदि मंत्रों के साथ जपने से पुत्र लाभ देती है।
3. मूंगे (प्रवाल) की माला धन देती है।
4. रुद्राक्ष की माला महामृत्युंजय मंत्र के साथ जपने से रोगों का नाश करके दीर्घायु देती है।
5. विघ्न-निवृत्ति हेतु, शत्रु-नाश में हरिद्रा की माला।
6. मारण व तामसी कार्यों में सर्प के हड्डी की माला, आकर्षण एवं विद्या हेतु स्फटिक माला।
7. श्री कृष्ण व विष्णु की प्रसन्नता हेतु तुलसी एवं शंख की माला प्रशस्त है।
8. वैसे व्याघ्रनख, चांदी, सोने, तांबे के सिक्के से सन्निवेश डोरा बच्चों को नजर-टोकार एवं बहुत सी संक्रामक बीमारियों से बचाता है।