विवाह विलंब का महत्वपूर्ण कारक शनि
विवाह विलंब का महत्वपूर्ण कारक शनि

विवाह विलंब का महत्वपूर्ण कारक शनि  

गीता शर्मा
व्यूस : 6136 | नवेम्बर 2006

सप्तम भावस्थ प्रत्येक ग्रह अपने स्वभावानुसार जातक-जातका के जीवन मंे अलग-अलग फल प्रदान करता है। वैसे तो जन्मकुंडली का प्रत्येक भाव का अपना विशिष्ट महत्व है, किंतु सप्तम भाव जन्मांग का केंद्रवर्ती भाव है, जिसके एक ओर शत्रु भाव और दूसरी ओर मृत्यु भाव स्थित है। जीवन के दो निर्मम सत्यों के मध्य यह रागानुराग वाला भाव सदैव जाग्रत व सक्रिय रहता है।

पराशर ऋषि के अनुसार इस भाव से जीवन साथी, विवाह, यौना चरण और संपत्ति का विचार करना चाहिए। सप्तम भावस्थ शनि के फल: आमयेन बल हीनतां गतो हीनवृत्रिजनचित्त संस्थितिः। कामिनीभवनधान्यदुःखितः कामिनीभवनगे शनैश्चरै।। अर्थात सप्तम भाव में शनि हो, तो जातक आपरोग से निर्बल, नीचवृत्ति, निम्न लोगों की संगति, पत्नी व धान्य से दुखी रहता है। विवाह के संदर्भ में शनि की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि आकाश मंडल के नवग्रहों में शनि अत्यंत मंदगति से भ्रमण करने वाला ग्रह है।

वैसे सप्तम भाव में शनि बली होता है, किंतु सिद्धांत व अनुभव के अनुसार केंद्रस्थ क्रूर ग्रह अशुभ फल ही प्रदान करते हैं। जातक का जीवन रहस्यमय होता है। हजारों जन्म पत्रियों के अध्ययन, मनन, चिंतन से यह बात सामने आई है कि सप्तम भावस्थ शनि के प्रभाव से कन्या का विवाह आयु के 32 वें वर्ष से 39 वें वर्ष के मध्य ही हो पाया। कहीं-कहीं तो कन्या की आयु 42, 43 भी पार कर जाती है।

जन्म-पत्री में विष कन्या योग, पुनर्विवाह योग, वन्ध्यत्व योग, चरित्रहनन योग, अल्पायु योग, वैधव्य योग, तलाक योग, कैंसर योग या दुर्घटना योग आदि का ज्ञान शनि की स्थिति से ही प्राप्त होता है। मेरे विचार में पूर्व जन्म-कृत दोष के आधार पर ही जातक-जातका की जन्मकुंडली में शनि सप्तम भावस्थ होता है। इस तरह शनि हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का ज्ञान करा ही देता है एवं दंडस्वरूप इस जन्म में विवाह-विलंब व विवाह प्रतिबंध योग, संन्यास-योग तक देता है। 


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सप्तम भाव में यदि अन्य ग्रहों के दूषित प्रभाव में अधिक हो, ता जातक अपने से उम्र में बड़ी विवाहिता विधवा या पति से संबंध विच्छेद कर लेने वाली पत्नी से रागानुराग का प्रगाढ़ संबंध रखेगा। ऐसे जातक का दृष्टिकोण पत्नी के प्रति पूज्य व सम्मानजनक न होकर भोगवादी होगा। शनि सप्तम भाव में सूर्य से युति बनाए, तो विवाह बाधा आती है और विवाह होने पर दोनों के बीच अंतर्कलह, विचारों में अंतर होता है।

शनि व चंद्र सप्तमस्थ हों, तो यह स्थिति घातक होती है। जातक स्वेच्छाचारी और अन्य स्त्री की ओर आसक्त होता है। पत्नी से उसका मोह टूट जाता है। शनि और राहु सप्तमस्थ हों, तो जातक दुखी होता है और इस स्थिति से द्विभार्या-योग निर्मित होता है। वह स्त्री जाति से अपमानित होता है।

शनि, मंगल व केतु जातक को अविवेकी और पशुवत् बनाते हैं। और यदि शुक्र भी सह-संस्थित हो, तो पति पत्नी दोनों का चारित्रिक पतन हो जाता है। जातक पूर्णतया स्वेच्छाचारी हो जाता है। आशय यह कि सप्तम भावस्थ शनि के साथ राहु, केतु, सूर्य, मंगल और शुक्र का संयोग हो, तो जातक का जीवन यंत्रणाओं के चक्रव्यूह में उलझ ही जाता है। सप्तमस्थ शनि के तुला, मकर या कुंभ राशिगत होने से शश योग निर्मित होता है।

और जातक उच्च पद प्रतिष्ठित होकर भी चारित्रिक दोष से बच नहीं पाता। सप्तम भावस्थ शनि किसी भी प्रकार से शुभ फल नहीं देता। विवाह विलंब में शनि की विशिष्ट भूमिका: 

1. शनि व सूर्य की युति यदि लग्न या सप्तम में हो, तो विवाह में बाधा आती है। विलंब होता है और यदि अन्य क्रूर ग्रहों का प्रभाव भी हो, तो विवाह नहीं होता। 

2. सप्तम में शनि व लग्न में सूर्य हो, तो विवाह में विलंब होता है।

3. कन्या की जन्मपत्री में शनि, सूर्य या चंद्र से युत या दृष्ट होकर लग्न या सप्तम में संस्थित हो, तो विवाह नहीं होगा। 

4. शनि लग्नस्थ हो और चंद्र सप्तम में हो, तो विवाह टूट जाएगा अथवा विवाह में विलंब होगा। 

5. शनि व चंद्र की युति सप्तम में हो या नवमांश चक्र में या यदि दोनों सप्तमस्थ हों, तो विवाह में बाधा आएगी। 

6. शनि लग्नस्थ हो और चंद्र सप्तमेश हो और दोनों परस्पर दृष्टि-निक्षेप करें, तो विवाह में विलंब होगा। यह योग कर्क व मकर लग्न की जन्मकुंडली में संभव है। 

7. शनि लग्नस्थ और सूर्य सप्तमस्थ हो तथा सप्तमेश निर्बल हो, तो विवाह नहीं होगा। 

8. शनि की दृष्टि सूर्य या चंद्र पर हो एवं शुक्र भी प्रभावित हो, तो विवाह विलंब से होगा। 

9. शनि लग्न से द्वादश हो व सूर्य द्वितीयेश हो तो, लग्न निर्बल हो, तो विवाह नहीं होगा। 

10. इसी तरह शनि षष्ठस्थ और सूर्य अष्टमस्थ हो तथा सप्तमेश निर्बल हो, तो विवाह नहीं होगा।


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11. लग्न सप्तम भाव या सप्तमेश पापकर्तरि योग के मध्य आते हैं तो विवाह में विलंब बहुत होगा। 

12. शनि सप्तम में राहु के साथ अथवा लग्न में राहु के साथ हो और पति-पत्नी स्थान पर संयुक्त दृष्टि पड़े, तो विवाह वृद्धावस्था में होगा। अन्य क्रूर ग्रह भी साथ हांे, तो विवाह नहीं होगा। 

13. शनि व राहु कि युति हो, सप्तमेश व शुक्र निर्बल हों तथा दोनों पर उन दोनों ग्रहों की दृष्टि हो, तो विवाह 50 वर्ष की आयु में होता है।

14. सप्तमेश नीच का हो और शुक्र अष्टम में हो, तो उस स्थिति में भी विवाह वृद्धावस्था में होता है। यदि संयोग से इस अवस्था के पहले हो भी जाए तो पत्नी साथ छोड़ देती है। समाधान 

15. शनिवार का व्रत विधि-विधान पूर्वक रखें। शनि मंदिर में शनिदेव का तेल से अभिषेक करें व शनि से संबंधित वस्तुएं अर्पित करें। 

16. अक्षय तृतीया के दिन सौभाग्याकांक्षिणी कन्याओं को व्रत रखना चाहिए।

नक्षत्र व सोमवार को अक्षय तृतीया पड़े, तो महा शुभ फलदायक मानी जाती है। इस दिन का दान व पुण्य अत्यंत फलप्रद होते हैं। यदि अक्षय तृतीया शनिवार को पड़े, तो जिन कन्याओं की कुंडली में शनि दोष हो, उन्हें इस दिन शनि स्तोत्र और श्री सूक्त का पाठ 11 बार करना चाहिए, विवाह बाधा दूर होगी। यह पर्व बैसाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है।

इस दिन प्रतीक के रूप में गुड्डे-गुड़ियों का विवाह किया जाता है ताकि कुंआरी कन्याओं का विवाह निर्विघ्न संपन्न हो सके। 

17. शनिवार को छाया दान करना चाहिए। 

18. दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ नित्य करें। 

19. शनिदेव के गुरु शिव हैं। अतः शिव की उपासना से प्रतिकूल शनि अनुकूल होते हैं, प्रसन्न होते हैं।

प्रसन्न करने हेतु 16 सोमवार व्रत विधान से करें व निम्न मंत्र का जप (11 माला) करें: ‘‘नमः शिवाय’’ मंत्र का जप शिवजी के मंदिर में या घर में शिव की तस्वीर के समक्ष करें। ू हनुमान जी की पूजा उपासना से भी शनिदेव प्रसन्न व अनुकूल होते हैं क्योंकि हनुमान जी ने रावण की कैद से शनि को मुक्त किया था। शनिदेव ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि जो आपकी उपासना करेगा, उस पर मैं प्रसन्न होऊंगा।

20. सूर्य उपासना भी शनि के कोप को शांत करती है क्योंकि सूर्य शनि के पिता हैं। अतः सूर्य को सूर्य मंत्र या सूर्य-गायत्री मंत्र के साथ नित्य प्रातः जल का अघ्र्य दें। 

21. शनि व सूर्य की युति सप्तम भाव में हो, तो आदित्य-हृदय स्तोत्र का पाठ करें। 

22. जिनका जन्म शनिवार, अमावस्या, शनीचरी अमावस्या को या शनि के नक्षत्र में हुआ हो, उन्हें शनि के 10 निम्नलिखित नामों का जप 21 बार नित्य प्रातः व सायं करना चाहिए, विवाह बाधाएं दूर होंगी।

कोणस्थः पिंगलो बभू्रः कृष्णो रौद्रान्तको यमः। सौरि शनैश्चरो मंदः पिप्पलादेव संस्तुतः।। 

23. हरितालिका व्रतानुष्ठान: जिनके जन्मांग में शनि व मंगल की युति हो, उन्हें यह व्रतानुष्ठान अवश्य करना चाहिए। इस दिन कन्याएं ‘‘पार्वती मंगल स्तोत्र’’ का पाठ रात्रि जागरण के समय 21 बार करें।

साथ ही शनि के निम्नलिखित पौराणिक मंत्र का जप जितना संभव हो, करें विवाह शीघ्र होगा। ‘‘नीलांजन समाभासं, रविपुत्रं यामाग्रजं। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।’’ 

24. शनिवार को पीपल के वृक्ष को मीठा जल चढ़ाएं व 7 बार परिक्रमा करें। 

25. शनिवार को काली गाय व कौओं को मीठी रोटी और बंदरों को लड्डू खिलाएं। 

26. सुपात्र, दीन-दुखी, अपाहिज भिखारी को काले वस्त्र, उड़द, तेल और दैनिक जीवन में काम आने वाले बरतन दान दें। 

27. शुक्रवार की रात को काले गुड़ के घोल में चने भिगाएं।

शनिवार की प्रातः उन्हें काले कपड़े में बांधकर सात बार सिर से उतार कर बहते जल में बहाएं। 

28. बिच्छू की बूटी अथवा शमी की जड़ श्रवण नक्षत्र में शनिवार को प्राप्त करें व काले रंग के धागे में दायें हाथ में बांधें। 

29. शनि मंत्र की सिद्धि हेतु सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के दिन शनि मंत्र का जप करें। फिर मंत्र को अष्टगंधयुक्त काली स्याही से कागज पर लिख कर किसी ताबीज में बंद कर काले धागे में गले में पहनें।

30. व्रतों की साधना कठिन लगे, तो शनि पीड़ित लोगों को शनि चालीसा, ‘‘शनि स्तवराज’’ अथवा राजा दशरथ द्वारा रचित ‘‘शनि पीड़ा हरण स्तोत्र’’ का पाठ नित्य करना चाहिए। 

31. बहुत पुराने काले गुड़ के घोल म उड़द और आटे को गूंधकर थोड़े से काले तिल मिलाएं और 23 शनिवार तक प्रति शनिवार आटे की 23 गोलियां बनाएं।

गोलियां बनाते समय निम्नलिखित मंत्र जपें। अनुष्ठान पूरा हो जाने के बाद इन मीठी गोलियों को बहते जल में प्रवाहित करें। ¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’’ 

32. विवाह में आने वाली बाधा को दूर करने हेतु शनि के दस नामों के साथ जातक को शनि पत्नी के नामों का पाठ करना चाहिए।


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‘‘ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलह प्रिया। कंटकी कलही चाऽपि महिषी, तुरंगमा अजा।। नामानि शनिमार्यायाः नित्यंजपति यः पुमान तस्य दुःखनि तश्यन्ति सुखमसौभाग्यमेधते।

शनि मंत्र:

1 ¬ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय। ;

2 ¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ;

3 ¬ शं शनैश्चराय नमः जप संख्या 23 हजार ;

4 ¬ नमो भगवते शनैश्चराय सूर्य पुत्राय नमः ;

पौराणिक मंत्र (जप संख्या 92 हजार) ¬ शन्नोदेवीरभिष्टयआपो भवंतु पीतये। शंयोरभिस्रवन्तुनः ¬ शनैश्चराय नमः ;महामंत्राद्ध शनि प्रतिमा के समक्ष शनि पीड़ानुसार उक्त किसी एक मंत्रा का 23 हजार बार जप करें।

शनि का दान: लोहा, उड़द दाल, काला वस्त्र, काली गाय, काली भैंस, कृष्ण वर्ण पुष्प, नीलम, तिल कटैला, नीली दक्षिणा आदि। यदि किसी भी प्रकार विवाह नहीं हो पा रहा हो, तो इस अनुभूत उपाय को अपनाएं। कार्तिक मास की देव-उठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है, यह शास्त्र में वर्णित है। कहीं-कहीं यह विवाह बड़ी धूम-धाम से किया जाता है

इस दिन कन्याएं सौभाग्य कामना हेतु व्रत लें। तुलसी-शालिग्राम के विवाह के पूर्व गौरी गणपति का आह्वान और षोडशोपचार पूजन कर कुंआरी कन्याओं को चाहिए कि तुलसी माता को हल्दी और तेल चढ़ाएं। माता एवं शालिग्राम जी को कंकण बांध, मौर बांध, विवाह गांठ बांधें व तुलसी माता का सोलह शृंगार करें। पंचफल एवं मिष्टान्न से तुलसी माता की विधिवत् गोद भराई करें। पंडित के द्वारा विवाह मंत्रोच्चारण के साथ पूर्ण विवाह की रस्म निभाएं।

ल् आकार की हल्दी में सात बार कच्चा धागा लपेट कर, एक सुपारी और सवा रुपया सहित लेकर बायें हाथ की मुट्ठी में कन्या रखे व दायें हाथ में 108 भीगे हरे चने रखे। सोलह शृंगारित तुलसी माता सहित शालिग्राम की परिक्रमा मंत्र सहित 108 बार करे एवं हर परिक्रमा में एक चना तुलसी माता की जड़ में अर्पण करती चले। माता तुम जैसी हरी-भरी हो, हमें भी हरा-भरा कर दो, हमें एक से दो कर दो की मनोकामना के साथ परिक्रमा करें। इसके बाद बायें हाथ में पकड़ी हल्दी, सुपारी और रुपया तुलसी की जड़ में दबा दे।

सौभाग्य कामना से हल्दी में लपेटा गया कच्चा सूत कन्या को दाहिने हाथ में बंधाना चाहिए। उस दिन कन्या सिर्फ जल ग्रहण कर। चबाने वाली चीजें न खाएं। शृंगार की वस्तुएं कन्या स्वयं पहने, जो तुलसी को अपर्ण की थीं। विवाह संस्कार में हल्दी-रस्म के समय ल् आकार की जो हल्दी तुलसी की जड़ में दबाई गई थी, उसे सर्वप्रथम गणेश जी को अर्पण करें और सिर्फ कन्या को ही लगाई जाए। इसे ‘‘सौभाग्य कामना हल्दी’’ कहते हैं।

अंततः शनि पीड़ित व्यक्ति को शनि उपासना करनी चाहिए किंतु जिनका शनि शुभ है एवं शनि दशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती, ढैया आदि नहीं चल रहे हों उन्हें भी शनिदेव की आराधना उपासना करते रहनी चाहिए। सुंदर, सुनहरे भविष्य हेतु शनि की आराधना उपासना-मंत्र पाठ अवश्य करें।



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