संवत् 2070 पराभव नामक संवत्सर था। क्रमानुसार 2071 का नाम प्लवंग होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। सन् 2014 में संवत् 2071 का नाम कीलक है जो प्लवंग के बाद आता है। पंचांगकर्ताओं को भी इसमें शक हो रहा है क्योंकि उनके जीवनकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ जब संवत्सर ने क्रम को तोड़ा हो। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तृत गणना: 
प्रत्येक जातक का स्वभाव, भाग्य, ऐश्वर्य आदि उसके जन्म संवत्सर अनुरूप होता है जो कि ज्योतिष के मुख्य शास्त्र मानसागरी में विस्तृत रूप में वर्णित है। इसके अनुसार कीलक में जन्म लेने से जातक चित्रों को बनाने वाला, सर्वदा सुखी, ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला तथा माता-पिता की सेवा भक्ति करने वाला होता है।
मानसनगरी के प्रथम अध्याय अनुसार प्रभव आदि साठ संवत्सर होते हैं। इनमें पहले बीस ब्रह्मविंशति, दूसरे बीस विष्णुविंशति व अंत के बीस रुद्रविंशति के नाम से जाने जाते हैं। इसके प्रधान देवता ब्रह्मा, विष्णु व रूद्र हैं।
 प्रभवो विभवः शुक्लः प्रमोदोऽथ प्रजापतिः।
अंगिराः श्रीमुखो भावो युवा धाता तथैव च ।।1।
ईश्वरो बहुधान्यश्च प्रमाथी बिक्रमो वृषः।
चित्रभानुः सुभानुश्च तारणः पार्थिवो व्ययः ।।2।।
सर्वजित सर्वधारी च विरोधी विकृतिः खरः।
नन्दनो विजयश्चैव जयो मन्मथदुर्मुखौ ।।3।।
हेमलम्बी विलम्बी च विकारी शार्वरी प्लवः।
शुभकृत शोभन क्रोधी विश्वावसुपराभवौ ।।4।।
प्लवंगः कीलकः सौम्यः साधारण-विरोधकृत्।
परिधावी प्रमादी च आनन्दो राक्षसो नलः ।।5।।
पिंगलः कालयुक्तश्च सिद्धार्थी रौद्र दुर्मती।
दुन्दुभी रुधिरोग्दारी रक्ताक्षी क्रोधनः क्षयः ।।6।। 
क्रमानुसार 60 संवत्सर निम्नलिखित हैं -
| ब्रह्मविंशति | विष्णुविंशति | रुद्रविंशति | ब्रह्मविंशति | विष्णुविंशति | रुद्रविंशति | 
| प्रभव | सर्वजित | प्लवंग | ईश्वर | हेमलम्बी | पिंगल | 
| विभव | सर्वधारी | कीलक | बहुधान्य | विलम्बी | कालयुक्त | 
| शुक्ल | विरोधी | सौम्य | प्रमार्थी | विकारी | सिद्धार्थी | 
| प्रमोद | विकृति | साधारण | विक्रम | शार्वरी | रौद्र | 
| प्रजापति | खर | विरोधकृत् | वृष | प्लव | दुर्मति | 
| अंगिरा | नन्दन | परिधावी | चित्रभानु | शुभकृत | दुन्दुभी | 
| श्रीमुख | विजय | प्रमादी | सुभानु | शोभन | रुधिरोग्दारी | 
| भाव | जय | आनन्द | तारण | क्रोधी | रक्ताक्षी | 
| युवा | मन्मथ | राक्षस | पार्थिव | विश्वावसु | क्रोधन | 
| घाता | दुर्मुख | नल | व्यय | पराभव | क्षय | 
 
प्रतिवर्ष क्रमानुसार संवत्सर बदलते रहते हैं जैसे प्रभव के बाद विभव फिर शुक्ल और फिर प्रमोद नामक संवत्सर होता है। संवत् 2068 क्रोधी नामक संवत्सर था तदुपरांत 2069 विश्वावसु व 2070 पराभव नामक संवत्सर था। इस क्रमानुसार 2071 का नाम प्लवंग होना चाहिए था लेकिन इसका नाम है कीलक। क्रम में एक संवत्सर की छूट का क्या कारण है आइए जानें: संवत्सर को जानने के लिए मानसागरी में निम्न श्लोक दिया गया है -
 शकेन्द्रकालः पृथगाकृतिघ्नः शशांकनन्दाश्वियुगैः 4291 समेतः।
शराद्रिवस्विन्दु 1875 हृतः सलब्धःषष्टयाप्तशेषेप्रभवादयोऽब्दाः।।
अर्थात
सम्वत् को 22 से गुणा करके 4291 जोड़ दें तब 1875 का भाग देकर लब्धि को पुनः सम्वत् में जोड़ दें। 60 से भाग देने पर शेष तुल्य गत संवत्सर आता है। एक जोड़ देने पर वर्तमान संवत्सर होता है।
| 1 | उदाहरण | 2 | 
| 2070 | संवत्सर | 2071 | 
| 1935 | शकाब्द (संवत्सर -135) | 1936 | 
| 46861 | X= शकाब्द * 22+4291 | 46883 | 
| 24 | Y = X / 1875 (भागफल) | 25 | 
| 1959 | Z= शकाब्द + Y | 1961 | 
| 39 | गत संवत्सर = Z/60 (शेष) | 41 | 
| 40 | वर्तमान संवत्सर = गत संवत्सर + 1 | 42 | 
| पराभव | वर्तमान संवत्सर नाम | कीलक | 
 
आगे दी गई सूची से स्पष्ट होता है कि 2001 से 2030 के बीच में केवल सन् 2013-14 ईस्वी में अर्थात संवत 2070 के बाद संवत 2071 में संवत्सर के क्रम का ह्रास होता है, जिसका नाम ‘प्लवंग’ है।
उक्त उदाहरण अनुसार 30 वर्षों के संवत्सर निम्न हैं -
| सन | संवत | संवत्सर | सन | संवत | संवत्सर | 
| 2000 | 2057 | विजय | 2014 | 2071 | कीलक | 
| 2001 | 2058 | जय | 2015 | 2072 | सौम्य | 
| 2002 | 2059 | मन्मथ | 2016 | 2073 | साधारण | 
| 2003 | 2060 | दुर्मुख | 2019 | 2076 | प्रमादी | 
| 2004 | 2061 | हेमलम्बी | 2020 | 2077 | आनन्द | 
| 2005 | 2062 | विलम्बी | 2021 | 2078 | राक्षस | 
| 2006 | 2063 | विकारी | 2022 | 2079 | नल | 
| 2007 | 2064 | शार्वरी | 2023 | 2080 | पिंगल | 
| 2008 | 2065 | प्लव | 2024 | 2081 | कालयुक्त | 
| 2009 | 2066 | शुभकृत | 2025 | 2082 | सिद्धार्थी | 
| 2010 | 2067 | शोभन | 2026 | 2083 | रौद्र | 
| 2011 | 2068 | क्रोधी | 2027 | 2084 | दुर्मति | 
| 2012 | 2069 | विश्वावसु | 2028 | 2085 | दुन्दुभी | 
| 2013 | 2070 | पराभव | 2029 | 2086 | रुधिरोग्दारी | 
| (प्लवंग) | (विलुप्त) | - | 2030 | 2087 | रक्ताक्ष | 
 
यदि गणना को सूक्ष्म रूप से देखें तो शकाब्द को 22 से गुणा कर रहे हैं और 1875 से विभाजित कर रहे हैं। लब्धि को शकाब्द में जोड़ने से संवत्सर का नाम आता है। प्रतिवर्ष शकाब्द तो एक बढ़ता ही है लेकिन यदि लब्धि भी एक बढ़ जाए तो संवत्सर का क्रम टूट जाता है और एक नाम अधिक आगे बढ़ जाता है। प्रतिवर्ष 22 से गुणा करने के कारण गणना में ग में 22 की बढ़त होती जाती है। ग को 1875 से विभाजित करते हैं। इसे 1875 से अधिक होने में 85 वर्ष से अधिक लगते हैं क्योंकि - 85 ग 22 त्र 1870, 86 ग 22 त्र 1892
इस प्रकार लगभग 85 वर्ष बाद 22 का गुणनफल 1875 से अधिक हो जाता है जिस कारण एक संवत्सर अधिक हो जाता है। संवत् 1985 के बाद संवत् 1986 में भी ऐसे ही क्रम में परिवर्तन आया था। संवत् 1986 में 1875 से भाग देने के बाद लब्धि ;ल्द्ध 24 आई थी जबकि उससे पूर्व 1985 में लब्धि 23 आ रही थी। इसके बाद 2070 तक लब्धि ;ल्द्ध 24 ही बनी रही। और अब 2070 के बाद 2071 में क्रम टूटा है जब लब्धि ;ल्द्ध 25 आई है। इसके कारण प्लवंग विलुप्त हो 2071 कीलक नामक संवत्सर बन गया है।
इसके उपरान्त संवत्सर विलुप्त संवत् 2156 में होगा जब अंगिरा के बाद श्रीमुख विलुप्त हो ‘भाव’ संवत्सर आ जायेगा। संवत् 2156 अर्थात सन् 2099 में ऐसा होगा, आज से लगभग 85 वर्ष पश्चात। अतः हमारे जीवन काल में संवत्सर पुनः विलुप्त नही होंगे।