इस अंक में स्वयं-सम्मोहन के बारे में कुछ प्रश्नों के उŸार दिये गये हैं। अगर आप किसी प्रश्न पर और अधिक जानकारी लेना चाहें तो ले सकते हैं।
प्रश्न: स्वयं-सम्मोहन क्या है?
उŸार: जब हम एक विश्राम की स्थिति में होते हैं तो हमारा मन सुझावों को अधिक सरलता से स्वीकार करता है। विश्राम की स्थिति में हमारे ब्रेन की गति धीमी पड़ जाती है और हम सम्मोहन की दशा में चले जाते हैं। अगर हम ध्यान लगाना और आराम करना सीख जाते हैं तो सम्मोहन में जाना सरल हो जाता है। बिना किसी दूसरे व्यक्ति के सहयोग से जब हम सम्मोहन में जाते हैं तो उसे स्वयं-सम्मोहन कहा जाता है। इसमें निपुणता पाने के लिए अभ्यास एवं कटिबद्धता की आवश्यकता होती है। बिना किसी प्रयास के भी हम दिन में कई बार सम्मोहन की दशा में जाते हैं- जैसे गाड़ी चलाते हुए, पुस्तक पढ़ते हुए या टी.वी. देखते हुए इत्यादि। इस दशा को हम स्वयं एक क्रमबद्ध प्रक्रिया करके भी प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न: सम्मोहन एवं स्वयं-सम्मोहन में क्या अंतर है?
उŸार: जब कभी सम्मोहन की बात होती है तो एक आम आदमी एक कल्पना करता है कि एक सम्मोहक किसी यंत्र या प्रक्रिया का प्रयोग करते हुए किसी को सम्मोहन में ले जा रहा है। इस प्रक्रिया में कम से कम दो व्यक्ति शामिल होते हैं। एक सम्मोहक तथा दूसरा जिसे सम्मोहित किया जा रहा है। सम्मोहक दिशा निर्देशन करता है तथा सम्मोहित उसका अनुकरण करता है। परंतु जब व्यक्ति बिना किसी दूसरे के सहयोग से सम्मोहन में जाता है तो वह स्वयं-सम्मोहन कहा जाता है। दोनों स्थितियों में मानसिक दशा एक जैसे होती है, अंतर मात्र प्रक्रिया का है।
प्रश्न: क्या स्वयं-सम्मोहन मेडिटेशन जैसा ही होता है?
उŸार: हां, स्वयं-सम्मोहन मेडिटेशन तुल्य ही होता है। एक एकाग्रता या ध्यान की दशा को मेडिटेशन कहते हैं और स्वयं-सम्मोहन भी एक एकाग्रता एवं ध्यान की ही दशा है। आमतौर पर मेडिटेशन अध्यात्मिक विकास के लिए करते हैं और स्वयं-सम्मोहन व्यक्तिगत विकास के लिए प्रयोग किया जाता है। दोनो में अनेकों प्रकार की प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है।
प्रश्न: स्वयं-सम्मोहन करते समय किन-किन सावधानियां या औपचा- रिकताओं की आवश्यकता होती है?
उŸार: बहुत लोग यह पूछते हैं कि सम्मोहन करते समय या उससे पहले क्या-क्या आवश्यक बातंे हैं जैसे खाना खायें या न खायें, खायें तो क्या खायें, बैठकर करें या लेटकर करें, किस प्रकार के वस्त्र पहनें, एकांत में करें इत्यादि। इन सब बातों को एक-एक करके लेते हैं।
खाना: जो भी आप खाते हैं खायें। किसी भी खाने पर कोई पाबंदी नहीं है लेकिन इतना खायें कि आप आराम की स्थिति में रहें। आप खाली पेट भी कर सकते हैं और खाने के बाद भी कर सकते हैं। हां, आपको प्यासा नहीं रहना चाहिए। पानी पी लेना ध्यान लगाने के लिए अच्छा होता है।
वस्त्र: किसी भी रंग के कोई भी वस्त्र पहनें जो आपको आरामदेह लगते हैं। किसी रंग या रिवाज विशेष को महत्व देने की आवश्यकता नहीं है।
आसन: कोई भी मुद्रा अनिवार्य नहीं है। आप बैठकर या लेटकर जैसे भी आरामदायक रहे कर सकते हैं। हां, सोने वाली मुद्रा में नींद आने की संभावना बढ़ जाती है।
स्थान: आप अपने घर में, कार्यालय में, पार्क, धार्मिक स्थल या कोई भी स्थान चुन सकते हैं। आमतौर पर लोग अपनी सुविधा के अनुसार स्थान का चुनाव करते हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि ध्यान तो जंगल जैसे एकांत में अच्छा लगता है। मैं इस बहस में न पड़ते हुए मात्र इतना कहूंगा कि अच्छा ड्राइवर बनने के लिए भीड़भाड़ में गाड़ी पर अभ्यास करना ज्यादा बेहतर होता है। खाली सड़क पर तो कोई भी गाड़ी चला लेगा। यही बात ध्यान की अवस्था व स्वयं-सम्मोहन पर भी लागू हो सकती है। आपको दिल को समझाने वाले किसी यंत्र, ताबीज या माला की आवश्यकता नहीं है। बस आवश्यकता है तो अपने पर ध्यान लगाने वाली प्रक्रिया को करने की।
प्रश्न: क्या स्वयं-सम्मोहन सम्मोहक के बिना किया जा सकता है?
उŸार: क्यों नहीं, सम्मोहक की मदद के बिना सम्मोहन की दशा पाना ही तो स्वयं-सम्मोहन है। लेकिन यह प्रक्रिया सीखने के लिए आपको निश्चित तौर पर सम्मोहक का दिशा-निर्देशन चाहिए। आप जब तक निपुणता प्राप्त न करें, अपने सम्मोहक से संबंध बनायें रखें और अपनी सभी आकांक्षाओं का तुरंत निवारण करें।
प्रश्न: क्या स्वयं-सम्मोहन भी सम्मोहन की तरह उपयोगी है?
उŸार: सम्मोहन प्रभावकारी है चाहे वह स्वयं किया जाये या किसी दूसरे के सहयोग से। प्रभाव तो मन की बदली हुई दशा का है न कि प्रक्रिया का। प्रक्रिया मात्र दशा प्राप्त करने के लिए की जाती है तथा प्रभाव के लिए उपचार की प्रक्रिया अलग सेे की जाती है। अतः सम्मोहन उपचार में दो प्रक्रियाएं हुईं। पहली प्रक्रिया तो सम्मोहन की दशा प्राप्त करने के लिए की जाती है और दूसरी प्रक्रिया सम्मोहन की दशा प्राप्त करने के बाद उपचार के लिए की जाती है। जिस प्रकार सम्मोहन की दशा प्राप्त करने के लिए एक प्रक्रिया की जाती है इसी प्रकार उपचार के बाद सम्मोहन की दशा से बाहर आने के लिए भी एक प्रक्रिया की जाती है। स्वयं-सम्मोहन की उपयोगिता सम्मोहन से सीमित होती है क्यांेकि स्वयं-सम्मोहन में अधिक प्रक्रियाएं करने से सम्मोहन-भंग होने की आशंका रहती है। अतः स्वयं-सम्मोहन उपचार में मात्र एक ही सुझाव दिया जाता है। जबकि सम्मोहन में ऐसी कोई सीमा नहीं है। आमतौर पर सम्मोहन उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि स्वयं-सम्मोहन व्यक्तिगत विकास हेतु प्रयोग किया जाता है। स्वयं-सम्मोहन की उपयोगिता अभ्यास के साथ अधिक बढ़ती है।
प्रश्न: स्वयं-सम्मोहन कब करना चाहिए?
उŸार: जब कभी हमें सुबह जल्दी उठना होता है तो हम सभी मन में सोचकर सोते हैं कि सुबह कितने बजे उठना है। आप ने अनुभव किया होगा कि आप सही उतने ही बजे जाग जाते हैं यह एक अनूठी सेवा है जो हम जाने-अनजाने में अपने अवचेतन मन से लेते हैं और हर बार हमें यह सेवा मिलती है। शायद हम यह समझ गये हैं कि अवचेतन मन इस प्रकार के छोटे-मोटे काम कर देता है। अवचेतन मन के लिए तो कोई भी कार्य बड़ा या छोटा नहीं है बस एक कार्य है। जैसे छोटे-छोटे काम आप अपने अवचेतन मन को दे रहे हैं तो बड़े काम भी देकर देखिये यह जरूर पूरे करेगा। धार्मिक प्रवृŸिा के लोग कहते हैं कि शाम को सोते वक्त और सुबह उठने के तुरंत बाद भगवान का नाम लेना चाहिए। इसी प्रकार कुछ आध्यात्मिक गुरु कहते हैं कि सोने से पहले और उठने के बाद उन्हें याद करने सेे वे कृपा करते हैं। इन सबके पीछे वैज्ञानिक आधार है। सोने से पहले का समय और उठने के बाद का समय दोनों ही स्वयं-सम्मोहन के लिए बहुत अनुकूल होते हैं। अतः आप प्राथमिकता के आधार पर शाम को सोने से पहले का समय प्रथम मानें और सुबह का समय उसके बाद मानें।
प्रश्न: स्वयं को सुझाव किस प्रकार दें?
उŸार: स्वयं के सशक्तिकरण के लिए हम कल्पनाओं और भावनाओं का प्रयोग करते हैं सुझाव बनाते वक्त हमें सावधानी बरतना चाहिए अन्यथा उसका परिणाम उपयोगी हो, यह आवश्यक नहीं। अतः ध्यान दें कि सुझाव सकारात्मक रूप से बना हो तो नकारात्मक प्रयोग कभी न करें। अपना झुकाव परिणाम की ओर रखें, कारण पर नहीं। अगर हम कारण पर ध्यान देते हैं तो उसको हम सक्रिय बना रहे हैं जबकि हमारी मंशा परिणाम को सक्रिय बनाने की है। हमेशा वर्तमान काल का प्रयोग करें। अवचेतन मन केवल वर्तमान को समझता है। अगर आप भविष्य की बात करते हैं तो वह उस रूप में स्वीकार नहीं करता है तथा परिणाम को आगे टाल देता है। सुझाव ऐसा हो जिस पर आप यकीन कर सकें तथा निश्चित होना चाहिए। अगर आप कहें, कि मेरा सुंदर घर है या कहें चार कमरे का घर है। इन दोनों बातों में बहुत अंतर है। क्या अच्छा घर बनाने के लिए आपने इसके आयाम भी बताने हैं। अर्थात मन को बताना है कि अच्छा किसे कहते हैं। अपने सुझाव को भावुकता से महसूस करें। बारंबारता से प्रभाव बढ़ता है।
प्रश्न: क्या स्वयं-सम्मोहन सीखना कठिन है?
उŸार: हर साधारण व्यक्ति सम्मोहन व स्वयं-सम्मोहन सीख सकता है। अधिक जानकारी के लिए आप संपर्क कर सकते हैं। स्वयं-सम्मोहन की प्रक्रिया और इससे जुड़ी हुई अन्य बातें अगले अंक में शामिल की जायेंगी।