सद्दाम हुसैन का लग्न मेष, राशि वृश्चिक और जन्म नक्षत्र अनुराधा है। उनके जन्म के समय शनि की महादशा चल रही थी जिसकी 7 साल और 10 महीने की अवधि शेष थी। फांसी के समय मंगल की महादशा में गुरु की अंतर्दशा और गोचर में राशि के ऊपर मंगल एवं बृहस्पति चलन कर रहे थे। यहां प्रस्तुत उनके जन्म विवरण का ज्याेितषीय विश्लष्े ाण इटं रनटे स े प्राप्त उनकी जन्मतिथि, समय और स्थान पर आधारित है।
सद्दाम हुसैन के चरित्र और स्वभाव पर मेष लग्न और वृश्चिक राशि का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। लग्न एवं राशि के स्वामी मंगल का स्वभाव उनमें था। वह किसी से डरते नहीं थे, उनमें बदला लेने की भावना हमेशा बनी रहती थी। परंतु अपने देश पर वह अपनी जान छिड़कते थे। लग्न में उच्च का सूर्य है और अष्टम भाव में नीच का चंद्र पापकर्तरी योग में होने के कारण दूषित है, फलतः पूर्ण चंद्र को ग्रहण लग गया था।
मंगल चंद्रमा के आगे निकल चुका था। इसलिए उनका हठ स्वाभाविक था। मर गए, परंतु झुके नहीं। उनकी कुंडली के कुछ तथ्य इस प्रकार हैं। उच्च के शुक्र ने वक्री होकर उन्हें उल्टा फल दिया और नीच के चंद्र और नीच के ही गुरु के कारण उन्हें फांसी मिली। प्रकृति की विचित्र विडंबना है कि उन्हीं के देश में किसी दूसरे देश के शासक की शक्ति ने काम किया। उन्हीं के लोगों ने अन्य देश के शासक के प्रभाव में उन्हें फांसी पर चढ़ाया।
दुनिया देखती रह गई और कोई कुछ नहीं कर पाया। ऐसा कभी हिटलर के साथ भी हुआ था, परंतु उसने आत्महत्या की थी। सद्दाम की कुंडली में कुछ ग्रह अत्यधिक शक्तिशाली हैं, तो कुछ अत्यधिक कमजोर भी हैं। उन पर शुक्र की महादशा करीब 1969 से शुरू हुई और 1989 तक चली। इस दौरान वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए। सूर्य की महादशा में 1995 तक उनका पराक्रम बना रहा।
किंतु 1995 से 2005 तक चंद्र की महादशा में वह पतन की गहराइयों में उतरते चले गए और 30 दिसंबर 2006 को उन्हें फांसी दे दी गई जब मंगल की महादशा में गुरु की अंतर्दशा चल रही थी और जन्म राशि पर गोचर में गुरु एवं मंगल का चलन हो रहा था। चंद्र मेष राशि में लग्न पर गोचर कर रहा था। नीच का गुरु भाग्येश होकर कर्म स्थान में स्थित था। फिर भी इतिहास में ऐसा व्यक्ति मिलना मुश्किल है।
अपने देश के लिए, अपनी जनता के लिए जो कुछ उन्होंने किया वह एक मिसाल है। उनके अपने ही लोगों ने उनका साथ नहीं दिया अन्यथा राष्ट्रपति बुश कुछ नहीं कर पाते। जन्म कुंडली के अनुसार लग्नेश मंगल के अष्टम भाव में अपनी ही राशि में बलवान होकर चंद्र को परास्त करने और क्रूर ग्रह राहु का , साथ देने के कारण उन्हें फांसी मिली क्योंकि अष्टम भाव का मंगल दुर्घटना, जेल, मुकदमा आदि का कारक होता है। रक्तपात का कारक भी मंगल ही होता है।
अष्टम भाव पर बुध ग्रह वक्री होकर केतु के साथ दृष्टि डाल रहा है। काल सर्प दोष में दूषित राहु ने नीच चंद्र और मंगल का साथ दिया। इस लग्न के लिए केंद्राधिपति दोष से दूषित होकर नीचस्थ चंद्र को दूषित किया। शुक्र के द्वितीय सप्तमाधिपति होकर उच्च राशि में द्वादश भाव में स्थित होने के कारण उन्होंने अत्यधिक धन कमाया और उसका दुरुपयोग किया।
कालिदास के अनुसार यदि उच्च राशि का ग्रह वक्री हो तो नीच का फल देता है। जो धन कमाया उसे लेकर नहीं गए, वैसे तो कोई भी लेकर नहीं जाता, परंतु उनके देश का धन कोई और देश ले गया। तृतीय भाव के स्वामी बुध पर राहु, चंद्र और मंगल की दृष्टि ने छोटे भाई को भी फांसी दिलाई। चतुर्थ भाव के स्वामी चंद्र के नीच के अष्टम भाव में होने के कारण जनता ने भी साथ नहीं दिया।
पंचम भाव के सूर्य के उच्च राशि में होने के कारण सद्दाम अपनी युवावस्था में अत्यधिक क्रूर थे। सूर्य की इसी स्थिति ने उनकी संतान का भी नाश किया, क्योंकि पुत्र कारक गुरु भी नीच का है और सूर्य पर गुरु के केंद्र का प्रभाव है। उल्लेखनीय है कि लग्न शक्तिशाली है, चंद्र लग्न का स्वामी मंगल भी शक्तिशाली है और सूर्य लग्न का स्वामी भी मंगल है, फिर भी अष्टम भावस्थ राहु, चंद्र और मंगल सबने मिलकर उन्हंे बलि का बकरा बनाया।
भाग्य का स्वामी गुरु नीच के दशम भाव में और दशम में एकादश भाव का स्वामी शनि दोनों एक दूसरे से परिवर्तन में हैं। परंतु द्वादश भाव के शनि एवं शुक्र का अत्यधिक बलवान होना भी उनके पतन का कारण बना।
If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi